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महबूबा मुफ्ती को कश्मीर का ताज!

मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन से घाटी में शोक

महबूबा मुफ्ती के सामने अवसर और चुनौतियां

Thursday 7 January 2016 12:47:18 AM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

mehbooba mufti

नई दिल्ली/ श्रीनगर। विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली देश की जनतादल सरकार में केंद्रीय गृहमंत्री रहे और उस दौरान कश्मीर में अपनी बेटी डॉ रूबिया सईद के अलगाववादियों के हाथों अपहरण और जेल में बंद कुछ आतंकवादियों के बदले उसकी सकुशल नाटकीय रिहाई के बाद देशभर में और ज्यादा सुर्खियों में आए कश्मीरी नेता और इस समय जम्मू-कश्मीर में भाजपा पीडीपी गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का गुरुवार की सुबह दिल्ली में निधन हो गया। मुफ्ती मोहम्मद सईद उम्र के आखिरी वर्षों में फेफड़ों में संक्रमण से घिरे थे और गंभीर अवस्‍था में करीब 15 दिन से दिल्ली एम्स में वेंटिलेटर पर थे। वे 79 साल के थे। उनके निधन से कश्मीर घाटी शोकमग्न है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे उमर अब्दुल्ला और उनके पिता फारूख अब्दुल्ला सहित भाजपा-पीडीपी गठबंधन के नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया है। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने इस इतिहास के साथ महाप्रस्‍थान किया ‌है कि उन्होंने घाटी देश के सबसे बड़े हिंदूवादी दल भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार चलाई है।
मुफ्ती मोहम्मद सईद ने इस बार घाटी में विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस को पराजित किया था और पूर्ण बहुमत के अभाव में भाजपा से गठबंधन कर जम्मू-कश्मीर में अपने नेतृत्व में गठबंधन सरकार का गठन किया था। यूं तो मुफ्ती मोहम्मद सईद कश्मीर की राजनीति में टक्कर का नाम रहा है और वे इससे पहले भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन चुके हैं, तथापि उनकी इस राजनीतिक जीवन यात्रा में उनकी बेटी महबूबा मु‌फ्ती महत्वपूर्ण किरदार मानी जाती हैं और वही अब भाजपा-पीडीपी गठबंधन की ओर से जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं। मुफ्ती मोहम्मद सईद दरअसल काफी समय से अस्वस्‍थ थे और उनकी इच्छा महबूबा मु‌फ्ती को ही मुख्यमंत्री बनाने की थी, किंतु उस समय की राजनीतिक विषमताओं से निपटने के लिए मुफ्ती मोहम्मद सईद को ही आगे आना पड़ा, किंतु उनके निधन के बाद महबूबा मु‌फ्ती को ही पीडीपी और राज्य की मुख्यमंत्री का ताज मिलने जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर में उदारवादियों और अलगाववादियों के बीच गंभीर गतिरोध के कारण वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया कभी बाधित नहीं हुई, यह अलग बात है कि अलगाववादियों ने हमेशा मतदान प्रक्रिया में अड़ंगेबाजी की है, हिंसक वारदाते की हैं, लोगों को मतदान में जाने से रोका है, तथापि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की ही विजय हुई, जिसमें कभी नेशनल कांफ्रेंस तो कभी पीडीपी और कभी कांग्रेस ने गठबंधन से सरकार बनाई। यह पहला मौका था कि जम्मू-कश्मीर में दुनिया ने लोकतंत्र का परचम लहराते देखा और वहां अप्रत्याशित मतदान में भाजपा और पीडीपी को भारी सफलता मिली। किसी को भी पूर्ण जनादेश का अभाव इस बार भी रहा, लेकिन कुछ समय के राष्ट्रपति शासन के बाद भाजपा और पीडीपी मिलकर कश्मीर में सरकार बनाने निकले। मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री हुए। वे उदारवादी नेता माने जाते थे। उन्होंने यह गठबंधन सरकार चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती घाटी के राजनीतिक मामलों में कुछ हार्ड मानी जाती हैं, मगर अब देखना होगा कि जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री बनने के बाद वे अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों का किस प्रकार निर्वहन करेंगी।
सब जानते हैं कि मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री तो थे, किंतु बेटी महबूबा मुफ्ती का उनकी सरकार में पूरा दखल रहा है और अब तो उनपर सीधे जिम्मेदारी आ गई है, जिसके लिए वो ही जवाबदेह होंगी। भाजपा-पीडीपी गठबंधन में कुछ मुद्दों को लेकर गतिरोध है, जिसे संभालना महबूबा मुफ्ती के लिए एक परीक्षा के समान होगा। केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी घाटी में कश्मीरी हिंदुओं और पंडितों के लिए एक अलग शहर बसाना चाहती है, जिसका अलगाववादी विरोध कर रहे हैं, इस शहर के बसने के बाद घाटी के राजनीतिक हालात अलगाववादियों के हाथ से निकल जाएंगे, महबूबा मुफ्ती की घाटी के अलगाववादी खेमे से सहानुभूति रही है, लिहाजा घाटी में अलग शहर बसाने का मामला महबूबा मुफ्ती के लिए मजबूरी होगा, जिसमें यह तय है कि केंद्र इस प्रस्ताव से पीछे नहीं हटेगा और महबूबा मुफ्ती के सामने तालमेल बैठाने की चुनौती होगी। मुफ्ती मोहम्मद सईद के जाने के बाद घाटी में राजनीतिक हालात और वहां पाकिस्तान एवं उसके आतंकवादी संगठनों की गतिविधियां क्या होंगी यह महबूबा प्रशासन की कार्यप्रणाली से पता चलेगा, किंतु यह निश्‍चित है कि महबूबा मुफ्ती को पहाड़ के नीचे ऊंट का असली एहसास अब होगा, जिसमें या तो वे घाटी से देश की बड़ी राजनेता बनकर निकलेंगी या फिर औरों की तरह राजनीति के बियावान में भटकती ही रहेंगी।
महबूबा मुफ्ती ने हालांकि जन्मते ही राजनीति की उछलकूद और उतार-चढ़ाव देखे हैं, जिनके अनुभव का वे लाभ उठाएंगी, लेकिन कुछ अनुभव उन्हें अब होंगे, जो उनकी राजनीतिक दशा और दिशा तय करेंगे। महबूबा मुफ्ती इस मामले में भाग्यशाली कही जाएंगी कि उनके सामने केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार है, जो उन्हें घाटी में हर तरह से बचाएगी, केंद्र सरकार इस समय उनके लिए एक सुरक्षा कवच के समान है और वह उन्हें काम करने की पूरी स्वतंत्रता देगी। वैसे भी यह पहला मौका होगा, जब देश के इस संवेदनशील राज्य में वे पहली महिला मुख्यमंत्री होंगी, जिससे उनको देश की भी सहानुभूति मिलेगी, किंतु देश को यह स्वीकार नहीं होगा कि महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर के मामलों में हिंदुओं और कश्मीरी पंडितों के मामले में अलगाववादियों के गीत गाने लगें। महबूबा मुफ्ती के सामने अपने को घाटी की श्रेष्ठ राजनेता स्‍थापित करने का अवसर आ गया है, जिसका वे कितना सदुपयोग करेंगी, यह समय बताएगा। फिलहाल मुफ्ती मोहम्मद सईद की राजनीति और उनके योगदान की चर्चा हो रही है। पीडीपी शोक में डूबी है और मुफ्ती साहब को श्रद्धांजलियां दी जा रही हैं।

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