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'लापता देवी-देवता' ही आमिर के काम आए!

'पीके' फिल्म ने आमिर खान को बना द‌िया है अरबपति

आमिर खान की 'फना' फिल्म भी एक बार और देखिए!

Monday 29 December 2014 05:26:38 AM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

amir khan in pk movie

भारतीयों के आराध्यों और सनातन धर्म की एकता अखंडता के साथ बड़े ही सुनियोजित और सुविचारित तरीके से खेल होता आया है। उदाहरण के लिए फिल्म अभिनेता आमिर खान की फिल्म ‘फना’ जरा फिर से देखिए। इस फिल्म को जानबूझ कर कश्मीर से जोड़ा गया है, जिसमें बहुत स्पष्ट और चालाक तरीके से दर्शकों के सामने कश्मीर विवाद को रखा गया है। ‘फना’ फिल्म कहती है कि कश्मीर में जो हो रहा है, वह कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिए है न कि इसे पाकिस्तान में मिलाने के लिए या भारत का अभिन्न अंग बने रहने के लिए। घाटी की खूबसूरत वादियों को दिखाते हुए आमिर खान और उनके फिल्म निर्माता इस फिल्म को अलगाववादियों के ‌जेहाद को सौंप देते हैं। ‘फना’ को देखकर हर कोई समझ सकता है कि आमिर खान कहां उड़ रहे हैं। दुनिया के सामने भारत का पक्ष बहुत ही स्पष्ट है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, किंतु भारत के धर्मनिर्पेक्ष फिल्म सेंसर बोर्ड ने कश्मीर पर भारतीय संसद की दिशा के विपरीत बनी फिल्म को पास कर दिया। कश्मीरी अलगाववादी बहुत खुश हुए और आमिर खान की ‘फना’ से कमाई भी माशाअल्लाह अच्छी खासी हुई। आमिर खान ने ऐसी ही जेहादी फिल्म 'पीके' बनाई है, जिसकी कहानी में इस बार हिंदू देवी-देवता हैं, जो कहानी के हिसाब से 'लापता' हैं और उनके भरोसे एक प्रेम संबंध होकर बिखर जाता है। कॉमेडी-कॉमेडी में फिल्म के हीरो ने हिंदू धर्म के आराध्य देवी-देवताओं और उनके मानने वालों पर व्यंग्य के साथ जोरदार हमला किया है।
'पीके' में आमिर खान ने एक भारतीय हिंदू लड़की को पाकिस्तान के मुसलमान लड़के से एक ही मुलाकात में उसका इतना दीवाना बना दिया है कि फिल्म एक व्यवहारिक सच्चाई से भागकर भारत-पाकिस्तान के लड़की-लड़के के टूटे प्रेम को रिश्तों में बदलने का बीड़ा उठाती है और देवी-देवताओं को मानने वालों को दोष देते हुए फिल्म की कहानी लोगों को हिंदू देवी-देवताओं के पीछे चलने से रोकती है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी की भतीजी ने भी मुसलमान से शादी की है और जबसे वह शादी हुई है, तबसे लालकृष्‍ण आडवाणी भी ज्यादा ही धर्मनिर्पेक्ष हो गए हैं, इसलिए उन्हें आमिर खान की हिंदू देवी-देवताओं पर हमलावर फिल्म 'पीके' में कुछ भी गलत नहीं दिखा। बहरहाल, 'पीके' को हिंदूवादी नेता लालकृष्‍ण आडवाणी का सर्टिफिकेट मिल जाने के बावजूद देशभर के सिनेमाघरों में इस फिल्म के प्रदर्शन का विरोध हो रहा है। भारत में भाजपा सरकार की मजबूरी देखिए कि वह 'पीके' की सच्चाई को समझ रही है, मगर इसके बावजूद 'पीके' पर खामोश रहना उसकी लाचारी है, अन्यथा देश के धर्मनिर्पेक्ष भेड़िए, लकड़बग्‍घे और लोमड़ियों के झुंड, बिकाऊ टीवी चैनलों पर बैठकर देश-दुनिया के सामने भाजपा और हिंदुओं के खिलाफ ज़हरीली उल्टियां ही करेंगे। वैसे भी अब कुछ नहीं होना है, क्योंकि आमिर खान का ज़ेहाद तो सफल हो गया है। करीब दो सौ करोड़ रुपए से ज्यादा उसकी जेब में आ गए हैं, यानी 'लापता देवी-देवता' उसके खूब काम आए।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने 'पीके' फिल्म पर जो आपत्ति दर्ज़ की है, वह बहुत विचारणीय है और भारत सरकार को उसका गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए। शंकराचार्य भारतीय हिंदू सनातन धर्म के पथ प्रदर्शक हैं। वह धर्म और आध्यात्म के रास्ते में आए संकटों और समस्याओं के निराकरण का एक श्रेष्ठ माध्यम हैं। वे भारतीय हिंदू समाज के अनसुलझे सवालों का समाधान प्रस्तुत करते हैं। सर्वज्ञ पीठ पर विराजमान शंकराचार्य के रूप में जो भी विराजमान हैं, वह हिंदू समाज के लिए अमूल्य हैं और उनसे अपेक्षा भी की जाती है कि वे हिंदू समाज का सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शन करेंगे। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने भी 'पीके' फिल्म में जरूर कुछ ऐसा पाया कि जिसके प्रदर्शन के कारण जनसामान्य में धर्म की हानि होगी। भारतीय देवी-देवताओं को मानने वाले यदि उनका मजाक उड़ते हुए देख रहे हैं तो उन्हें तुरंत उन देवी-देवताओं से अपने को अलग कर लेना चाहिए। शंकराचार्य का यही तो अभिमत है कि जिससे व्यक्ति अपनी जीवनशैली और जीवनदर्शन को धर्मपूर्वक नियंत्रित करता है, यदि उसके पथ-दर्शकों के मार्ग पर ही विश्वास नहीं है तो फिर धर्मानुशासन नहीं रह पाएगा और वही होगा, जो आज इस्लाम के नाम पर दुनिया के कुछ मुस्लिम देशों में हो रहा है। योगगुरू बाबा रामदेव ने भी 'पीके' फिल्म का विरोध किया है और अपने को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद की चिंता से जोड़ा है।
'पीके' फिल्म भारतीय सनातन समाज के सामने कई गंभीर प्रश्न खड़े करती है। आमिर खान इस फिल्म में लक्ष्मी, गणेश, हनुमान, दुर्गा इत्यादि आराध्य देवी-देवताओं के चित्रों को लापता लिखकर लोगों को परचे बांट रहे हैं और उनके पोस्टर चिपका रहे हैं। वह कहना चाहते हैं कि वह अपनी समस्याओं के समाधान के लिए या अपने काम के लिए उनको खोज रहा है और वे उनको कहीं नहीं मिल रहे हैं। आमिर खान ने एक पत्‍थर को भी भगवान बनाकर देख लिया और परिणाम न मिलने पर उसकी उपयोगिता को चुनौती दी है। आपको यह तो पता है ही कि मुसलमानों में बुतपरस्ती मना है। आमिर खान को यह दृश्य फिल्माते समय राज कपूर की सत्यम शिवम सुंदरम फिल्म के उस प्रारंभिक भाग को देखना चाहिए था, जिसमें राज कपूर कहते हैं कि इस पत्‍थर को भगवान किसने बनाया? और तर्क देते हुए स्वयं उत्तर भी देते हैं कि आपकी आस्‍था ने। यदि आपकी या एक समुदाय की या समाज की आस्‍था किसी में या किन्हीं में है तो हां, यह आपका या उनका विश्वास और निजी मामला है। पत्‍थर से दिल लगा है तो हीरे का क्या करना? यह बात यहां से लेकर पूरी दुनिया तक मानी जाती है। आपकी मान्यता है तो देवी-देवता लापता नहीं हैं और यदि मान्यता नहीं है तो पुत्र-पुत्री, पति-पत्नी, नाते-रिश्तेदारों नाम की संस्‍था का भी कोई सामाजिक वजूद नहीं है।
अफसोस! विभिन्न पंथों और मान्यताओं के इस समाज और देश में अपने को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ नहीं, बल्कि सामने वाले को नीचा दिखाने और उसके अस्तित्व को नकारने की और वश चले तो उसके विध्वंस की होड़ है। यहां इस तथ्य की सदियों से अनदेखी होती आई है कि विशाल गुब्बारे का एक छोटी सी सुईं पलभर में अस्तित्व खत्म कर देती है, अर्थात उसकी भी शक्ति को समझने की जरूरत है, इसलिए किसी की छोटे और बड़े के रूप में या दृश्य अदृश्य मान्यताओं और आस्‍थाओं की उपेक्षा भी एक गंभीर दोष है। 'पीके' फिल्म के तथ्य और उनका प्रस्तुतिकरण केवल उपहासस्वरूप दोषारोपण करता है और लोगों को कुतर्कों से गुमराह करता है। विश्व में प्रेम और शांति के देवता भगवान बुद्ध तो साक्षात देखे गए हैं, जो मर कर भी कभी मर नहीं सकते। देश और दुनिया आज उनके चित्रों और मूर्तियों को नमन करती है। अब यदि आप कहें कि वो लापता हैं तो आपका क्या उत्तर होगा? उनके उपदेश उनकी उपस्थिति हैं। जो आमिर खान की तरह इस ज्ञान से दूर हैं वे उन्हें न कभी मिले हैं और न कभी दिखे हैं। वे आज भी उनके ही करीब हैं, जो उनके चरित्र को आत्मसात करते हैं।
अफगानिस्तान के बामियान में एक बड़े पहाड़ में सैकड़ों साल पुरानी बुद्ध की विशाल प्रतिमा को गोले बरसा कर ध्वस्त कर दिया गया, यह कृत्य पूरी दुनिया ने देखा। क्या वो लापता थे? और वो कौन थे और किस धर्म के मानने वाले थे, जिन्होंने बामियान में उनकी प्रतिमा पर गोले बरसाए। उनकी प्रतिमा किसी के रास्ते का रोड़ा भी नहीं थी। आमिर खान इस पर कुछ बोलेंगे? भगवान बुद्ध की वह प्रतिमा अपने ऊपर गोलाबारी होते हुए कहां बोली? लेकिन उसकी आध्यात्मिक शक्ति और आस्‍था ने अपना काम कर दिया और इसी दुनिया ने इसी दौर में देख भी लिया कि भगवान बुद्ध की प्रतिमा पर गोलीबारी करने वालों का क्या हस्र हुआ है और हो रहा है। जिन्होंने उनकी प्रतिमा पर गोले बरसाने का दुस्साहस और गंभीर कृत्य किया था, वे जेहादी ही थे, जिनके जेहादी सरगना ओसामा बिन लादेन का क्या हुआ? इसलिए आमिर खान बताएं कि भगवान बुद्ध क्या लापता हैं?
इसीलिए आमिर खान की 'पीके' एक आपत्तिजनक प्रतिक्रियावादी फिल्म कही जा रही है, जिसे लोकप्रिय बनाने के लिए ऐसे समाज को लक्ष्य बनाया गया है, जिसके आराध्यों और अधिपतियों की धज्जियां उड़ाने से ज़ेहाद का उद्देश्य पूरा होता है और धन भी व्यापक रूप से कमाया जा सकता है। 'पीके' में मजारों, गिरिजाघरों और उनके संचालकों को भी फिल्माया गया है, यह सिद्ध करने के लिए कि ताकि कोई आमिर खान पर भेदभाव की उंगलियां न उठाए, किंतु फिल्म की दिशा तो बिल्कुल साफ है और इरादों पर उंगलियां उठ चुकी हैं। उसका उद्देश्य साफ समझ में आता है कि विवादास्पद प्रसंगों के बिना फिल्म चलने वाली नहीं है, इसलिए फिल्म में वही काम हुआ, जिससे हिंदू समाज खौल जाए और 'पीके' देखने वालों की लंबी कतार लग जाए। बहुत से हिंदू संगठनों ने 'पीके' पर अपना तीखा आक्रोश व्यक्त कर दिया है और कुछ समय बाद सबकुछ सामान्य भी हो जाएगा। यह हिंदू समाज की एक अतुल्य शक्ति है, जिस पर सदियों से आक्रांताओं के हमले ही होते आए हैं, मगर तब भी यह सभी को पालता-पोसता आया है, जिसक सहारे आमिर खान जैसे भी पल रहे हैं।
आमिर खान को हिंदू धर्म और समाज के उन देवी-देवताओं का शुक्रिया अदा करना चाहिए, जिनपर उनके हमलों के कारण उनकी फिल्म को दो सौ करोड़ रुपए का व्यवसाय मिल गया है। आमिर खान उन देवी-देवताओं का शुक्रिया अदा नहीं भी करेंगे तो देवताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वे ऐसे ही हमलों को सहन कर देवी-देवता कहलाए हैं। वैसे भी वे उनके हिसाब से लापता हैं। हिंदू देवी-देवताओं पर हमलों का इतिहास मौजूद है। चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को हिंदू देवी-देवताओं के अपमानित और गंदे चित्र बनाने से ही प्रसिद्धी मिली थी और जब मरा तो उसे अपने वतन की मिट्टी तक नसीब नहीं हुई। ऐसा ही जेहाद कुछ जगहों पर भी चला और चल रहा है। रोजाना अख़बारों में आस्‍थाओं को आहत करने वाले, महापुरूषों पर हमलावर कार्टून बनाते रहते हैं। मिया आमिर खान आपने जन्नत का सही रास्ता पकड़ रखा है। सत्यमेव जयते के बैनर तले भी आप अपना ज़ेहाद जारी रखिएगा। अगली बार फिर ऐसी ही फिल्म लेकर आइए, भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड में आपके चाहने वाले बैठे ही हैं। आपकी लॉटरी फिर लगेगी। हिंदू धर्म के देवी-देवताओं का अपमान आपको तहेदिल से मुबारक हो!

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