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'ग्रामीण पर्यटन' पर हुई वेबिनार श्रृंखला

'भारत के गांव पर्यटन क्षेत्र में बदलते प्रतिमान के साक्षी बने'

वेबिनार प्रस्तुतकर्ताओं ने दिखाई गांव में बसे भारत की झलक

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 29 September 2020 12:14:17 PM

webinar series on rural tourism

नई दिल्ली। पर्यटन मंत्रालय की देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला में 'ग्रामीण पर्यटनः पूर्व की विशिष्टता से लेकर भविष्य के मानक तक' विषय पर वेबिनार हुआ, जिसमें गांव, लोग, खेती, संस्कृति, स्थिरता, जिम्मेदारी और सामुदायिक जीवन के विचार के बारे में बताया गया। शहरी उद्योगों के करीब-करीब ध्वस्त होने के कारण लाखों नौकरी चली गई या उनके वेतन में कटौती हो गई। शहरों और शहरी उद्योगों में जीवनयापन करने वालों में से अधिकांश लोग ग्रामीण भारत में एक वैकल्पिक इको-सिस्टम बनाने की वास्तविक संभावना के कारण कठिन यात्रा करके अपने गांव वापस आ गए। उपभोक्तावाद से ऊब चुके शहरी लोग अब अपने प्राकृतिक और भावनात्मक नुकसान की भरपाई के लिए परंपरागत गांव की ओर देखने लगे हैं, जबकि कुछ हिप एंड कूल ग्लोकल गांव की तलाश कर रहे हैं। पर्यटन की यह नई और आगामी शैली पुराने युग और आकर्षक कारणों के कारण सहस्त्राब्दी युग में जाने की अनुमति दे रही है।
भारत के खूबसूरत गांव पर्यटन के क्षेत्र में बदलते प्रतिमान के साक्षी बने हैं। ग्रीन पुपील द गोट विलेज एंड बकरी छाप के संस्थापक रूपेश राय ने वेबिनार को प्रस्तुत किया। उन्होंने गांव से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उत्तराखंड में केदारनाथ तबाही ने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। रूपेश राय ने कहा कि तबाही ने पानी में डूबे राज्य के बड़े हिस्से वाले राज्य उत्तराखंड के पूरे स्वरूप को बदल दिया। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के बेहतर जीवन की तलाश में बाहर जाने के कारण 1800 गांव खाली हो गए। रूपेश राय ने कहा कि ग्रामीण पर्यटन वास्तव में ग्रह और लोगों को लाभांवित कर सकता है, यह सामुदायिक पर्यटन की एक छवि की तरह है। रूपेश राय ने कहा कि वृहद परिप्रेक्ष्य में भारत में लगभग 6,47,000 गांव हैं। पर्यटन संस्कृति, कृषि, कला, प्रकृति, भोजन आदि के उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है। उनके कुछ कामों में द गोट विलेज (ग्रामीण और स्थायी पर्यटन), बकरी स्वयंवर (सोशल इंजीनियरिंग द्वारा पशुधन का जीन पूल सुधार) और बकरी छाप (सीमांत हिमालयी किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक ब्रांड) शामिल हैं।
वेबिनार प्रस्तुतकर्ता रूपेश राय ने कहा कि वर्ष 1990 के दशक तक पर्यटन के केवल दो रूप मौजूद थे-तीर्थयात्रा और ग्रामीण पर्यटन। उन्होंने कहा कि सामान्य तौरपर बच्चे छुट्टी में गांव में दादा-दादी के घर जाते हैं पर धीरे-धीरे हम उपभोक्तावाद के शिकार हो गए हैं, कोविड-19 ने कई लोगों के विचारों को बदल दिया है, बुजुर्ग पीढ़ी के लोगों को गृहातुर का लाभ मिलता है और युवा वर्ग अनुभव पसंद करते हैं। रूपेश राय ने कहा कि ग्रामीण पर्यटन का सबसे अनिवार्य घटक कहानी है, एक यात्री के रूपमें स्थानीय लोगों, संस्कृति, भोजन, रीति-रिवाजों का अनुभव मिलता है और सभी देसी चीजों का आनंद लेते हैं। जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने कहा कि पार्क में सप्ताहांत पर अधिकतम दौरे होते हैं। उन्होंने कहा कि अगर जिम कॉर्बेट के गांवों के आसपास आने-जाने वाले की संख्या को बढ़ाया जाए तो ग्रामीण पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। दूसरे प्रस्तुतकर्ता 23 वर्षीय मणि महेश ओरोरा थे, जो हिमालय में एक आत्म प्रत्यक्षीकरण विश्राम पर थे। उन्होंने ग्रीन पीपुल के साथ एक ट्रेकर के रूपमें अपनी शुरुआत की थी, उसके बाद वे एक रेसिडेंट स्वयंसेवक बन गए और आखिरकार वह बकरी छाप एंड द हाइडआउट के एक सह संस्थापक की भूमिका में आ गए।
गांव के जीवन की सादगी की सराहना करते हुए मणि महेश ओरोरा ने शहरों में घुटन भरी जिंदगी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि हमें रहने और कमाई के देसी-स्वदेशी पारंपरिक तरीकों को एकीकृत करने की आवश्यकता है, एक आदर्श बदलाव के लिए भारी पैमाने पर सतत पर्यावरणीय गतिविधियां जरूरी हैं। मणि महेश ओरोरा ने बताया कि जब ग्रीन पीपुल टीम ने गांव का दौरा किया तो ज्यादातर स्थानीय लोग अपना घर तोड़ रहे थे और मजदूर घर बनाने के काम में लगे हुए थे, लगभग 20 प्रतिशत लोग खेती और मोनो क्रापिंग में लगे हुए थे। उन्होंने बताया कि पुरानी परंपराओं को पुनर्जीवित करने और बकरी पालन, मधुमक्खी पालन, विजातीय सब्जियों की कटाई और पारंपरिक वास्तुशिल्प की स्थापना के आर्थिक साधनों के माध्यम से सतत विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक कृषि-पर्यटन पहल की स्थापना की गई है। उन्होंने कहा कि अब 80 प्रतिशत आबादी पारंपरिक खेती में वापस आ गई है, ग्रीन पीपुल के हैपियर हिमालयन विलेज का उद्देश्य केवल शहरी और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को खेत की मेड़ के दूसरी तरफ जीवन का स्वाद देना नहीं है, वे स्थायी इको-सिस्टम बना रहे हैं, जो उनके मौजूदा संसाधनों पर दबाव डाले बगैर गांव में रहने वाले लोगों के लिए आय के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करते हैं।
बकरी स्वयंवर बिना खर्च का समारोह है। उत्तराखंड के कई गांव ऐसे क्षेत्रों में हैं, जो अनुपजाऊ या असिंचित हैं, जो पशुधन को स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को चलाने के लिए सबसे व्यवहार्य विकल्प बनाते हैं। बकरियां, भेड़ से अधिक हैं। ज्यादातर मालिक हाशिए पर पड़े किसान हैं, जो जानवरों को चरने और मुफ्त में घूमने देते हैं। जीन पूल को व्यापक बनाने और स्वस्थ प्रजनन प्रथाओं के बारे में पर्याप्त जागरुकता नहीं होने के कारण यहां बहुत व्यवस्थित विकास नहीं हुआ है। ग्रीन पीपुल अपने प्रमुख कार्यक्रम बकरी स्वयंवर का आयोजन करके इस क्षेत्र में बकरी आबादी के लिए आनुवंशिक विविधता को बढ़ावा देने में मदद करता है और किसानों को पशुपालन के उच्च ग्रेड के बारे में शिक्षित करता है। बकरी स्वयंवर एक सरल वैज्ञानिक रूपसे समर्थित विचार है, जो उत्पादन के स्थानीय पैटर्न के लिए समर्पित है और ग्रीन पीपुल के भारतीयों के उन्नति के लिए किए गए प्रयासों के लिए उसे 2019 में इंडियन रिस्पाउंसेबुल टूरिज्म अवार्ड मिल चुका है। वेबिनार की तीसरी प्रस्तुतकर्ता सुनीता कुडले 23 साल से होटल के क्षेत्र में काम कर रही हैं और एक आतिथ्य पेशेवर हैं। सुनीता कुडले वर्तमान में एक एनजीओ केईईएन की सचिव हैं, जो मसूरी और लण्ढोर शहर में कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में सबसे आगे है और पूरे शहर के लिए घर-घर जाकर कचरा संग्रहण, उन्हें अलग करने और निपटारे का काम कर रही हैं।
सुनीता कुडले मडहाउस टू मडहाउस कम्युनिटी की प्रवक्ता भी हैं, जो ग्रामीण मानसिकता वाला एक शहरी समुदाय है। इसका लक्ष्य भारत की अगली विकास कहानी लिखने की है, जो सीधे अपने गांवों से है। सुनीता कुडले ने गोल्डेन ट्राइंगल और केरल के शोकेज के लिए किए जाने वाले प्रयासों के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति मूल रूपसे आरामदायक क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए यात्रा करता है, किलों, महलों के अलावा भारत में रंग-बिरंगे त्योहार जैसेकि लट्ठमार होली, दिवाली आदि, उत्तराखंड और सिक्किम में रोडोडेंड्रन जैसा एक अनोखा फल है। सुनीता कुडले ने कहा कि कुछ खेल आयोजनों को बढ़ावा दिया जा सकता है जैसेकि किला रायपुर में ग्रामीण ओलम्पिक, जल्लीकट्टू त्योहार आदि। उन्होंने कहा कि भारत में फसल का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाए जाता है चाहे वह पंजाब, तमिलनाडु, गुजरात, असम आदि हो, हमें ऐसे अनुभव बनाने होंगे जो प्रदाता और उपभोक्ता के दिल को छू ले। सुनीता कुडले ने कहा कि ग्रामीण गांवों का दौरा करने वाले ट्रैवेलर्स स्थानीय लोगों के आत्मसम्मान को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। पर्यटन मंत्रालय के अतिरिक्त महानिदेशक रुपिंदर बराड़ ने वेबिनार की सराहना की और पर्यावरण का सम्मान करने की बात कही, ताकि पूरी मानवता को प्रकृति का अनुभव मिल सके। 

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