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Friday 11 July 2025 01:25:01 PM
सारनाथ। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और भारतीय महाबोधि सोसायटी के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने बड़े धूमधाम से आषाढ़ पूर्णिमा का उत्सव मनाया। इस दिन को धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के रूपमें भी जाना जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध ने इसी स्थान पर अपना पहला उपदेश दिया था। इस दिवस पर सारनाथ के पूज्य मूलगंध कुटी विहार में विशेष समारोह का आयोजन किया गया, इसमें विश्वभर से बड़ी संख्या में ख्याति प्राप्त भिक्षु, विद्वान और श्रद्धालु उपस्थित थे। इस आयोजन से बौद्ध भिक्षुओं केलिए पारंपरिक मठवासी 'वर्षावास' की भी शुरुआत हुई। इस अवधि को आत्मनिरीक्षण, आध्यात्मिक साधना और अनुशासन का समय माना जाता है। कार्यक्रम की शुरुआत धमेख स्तूप की परिक्रमा (प्रदक्षिणा) से हुई। भिक्षु, भिक्षुणियां और श्रद्धालुओं ने मौन होकर और श्रद्धापूर्वक स्तूप की परिक्रमा की। अस्त होते हुए सूर्य की सुनहरी रोशनी में नहाया यह स्तूप भगवान बुद्ध की शिक्षाओं की शाश्वत प्रतिध्वनि का साक्षी है। मूलगंध कुटी विहार के प्रभारी सुमित्रानन्द थेरो ने इस अवसर पर कहाकि सारनाथ की सदियों से संरक्षित पवित्रता और शांति पर प्रकाश डाला, जिसने धम्म को अक्षुण्ण रखा है।
वियतनाम की वरिष्ठ नन दियु त्रि ने वियतनाम में हालही में आयोजित बुद्ध अवशेषों की प्रदर्शनी पर अपने विचार व्यक्त किए, जिसमें नौ शहरों से 17.8 मिलियन (1 करोड़ 70 लाख) श्रद्धालु श्रद्धांजलि अर्पित करने केलिए आए। आईबीसी की बनाई गई एक लघु फिल्म में इस आध्यात्मिक यात्रा और वियतनामी अनुयायियों ने पवित्र अवशेषों की भावनात्मक पूजा को प्रदर्शित किया है। केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान के कुलपति वांगचुक दोरजी नेगी ने धम्म में ज्ञान और व्यवहार के गहन अंतर्संबंध तथा आषाढ़ पूर्णिमा से जुड़ी घटनाओं के प्रतीकात्मक संगम जैसे भगवान बुद्ध के गर्भाधान से लेकर उनके प्रथम उपदेश और मठवासी संघ की स्थापना तकपर गहन चिंतन प्रस्तुत किया। भारत-श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संघ के अध्यक्ष सुमेधा थेरो ने आषाढ़ पूर्णिमा उत्सव केलिए सारनाथ जैसे ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व वाले स्थान को चुनने केलिए भारत सरकार केप्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने भारत-श्रीलंका केबीच स्थायी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों पर जोर दिया, जो सदियों से भगवान बुद्ध के दिखाए रास्ते से पोषित हुए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध महासंघ के महासचिव शारत्से खेंसुर जंगचुप चोएडेन रिनपोछे के प्रभावशाली भाषण केसाथ कार्यक्रम का समापन हुआ। उन्होंने बौद्ध एकता और अंतर धार्मिक सद्भाव के वैश्विक लक्ष्य को दोहराया तथा शांतिपूर्ण विश्व की स्थापना केलिए सहानुभूतिपूर्ण और समावेशी संवाद का आह्वान किया। महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के पाली एवं बौद्ध धर्मदूत कॉलेज के प्राचार्य सीलावंसो थेरो ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया, जिसमें सामूहिक कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त की गई, जो इस कार्यक्रम की भावना का प्रतीक थी। सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा उत्सव ने एकबार फिर तथागत भगवान गौतम बुद्ध की शाश्वत शिक्षाओं को प्रतिध्वनित किया, साथही विश्व को ज्ञान, करुणा और सचेत सहअस्तित्व के मार्ग पर चलने केलिए आमंत्रित किया।