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Friday 11 July 2025 01:09:04 PM
नई दिल्ली। गुरु पूर्णिमा पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली के कलाकोश प्रभाग ने बड़े उत्साह केसाथ अपना स्थापना दिवस मनाया। कला केंद्र के समवेत सभागार में स्थापना दिवस कार्यक्रम हुआ, जिसमें भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की अध्यक्ष प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार और लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर गोपाल प्रसाद शर्मा मुख्य अतिथि थे। मुख्य समारोह केबाद अतिथियों ने भगवान जगन्नाथ के पवित्र परिवर्तन अनुष्ठान पर 'भगवान जगन्नाथ के नवकलेवर' नामक एक अनूठी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। आईजीएनसीए के वृहत्तर भारत एवं क्षेत्रीय अध्ययन प्रभाग की यह प्रदर्शनी 22 जुलाई तक आम जनता केलिए खुली रहेगी। कलाकोश प्रभाग के प्रमुख प्रोफेसर सुधीर लाल ने 2024-25 की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करके कार्यक्रम की शुरुआत की और कलाकोश प्रभाग की प्रमुख गतिविधियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। इस मौके पर कई महत्वपूर्ण प्रकाशनों का विमोचन भी किया गया, जिनमें अर्धवार्षिक शोध पत्रिका कलाकल्प, कलामूलतत्व श्रृंखला का आठवां खंड, भारतगाथा, भारतकथा श्रृंखला के शीर्षक और दूसरी विद्वत्तापूर्ण कृतियां शामिल हैं।
प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार ने कार्यक्रम में उद्गार व्यक्त करते हुए कहाकि ‘पर्व’ शब्द अपने आपमें एक ‘जोड़’ का प्रतीक है, जैसे गन्ने के डंठल में एक गांठ में जहां मिठास एकत्रित होती है, उसी प्रकार जब जीवन नीरस हो जाता है तो एक पर्व आता है और आनंद एवं प्रेरणा लेकर आता है। उन्होंने कहाकि पर्व न केवल आध्यात्मिक और भावनात्मक कायाकल्प प्रदान करते हैं, बल्कि हमें विकास और उत्कृष्टता की ओर भी ले जाते हैं। उन्होंने कहाकि भारत एक ज्ञान आधारित सभ्यता है। उन्होंने कहाकि जो हमें असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले जाए, वही सच्चा गुरु है। प्रोफेसर गोपाल शर्मा ने कहाकि भारतीय ज्ञान परंपरा में गुरु पूर्णिमा का गहरा महत्व है, इसे भगवान वेदव्यास के सम्मान में व्यास पूर्णिमा के रूपमें भी मनाया जाता है, जिनके व्यापक योगदान को व्यक्त करना कठिन है। उन्होंने कहाकि सत्य, त्रेता और द्वापर युगों में वेद एक ही थे, जबकि कलियुग में वेदव्यास ने ही उन्हें चार भागों में विभाजित किया। उन्होंने कहाकि हमारी ज्ञान परंपरा गुरु के माध्यम से प्रसारित होती है, भारतीय धर्मग्रंथों में गुरु को समर्पित स्तोत्र मुख्यतः दीक्षा गुरु का उल्लेख करते हैं। उन्होंने शिक्षण करने वाले गुरु और दीक्षा देने वाले गुरु केबीच के अंतर को विस्तार से समझाया और कहाकि यदि शिक्षा, दीक्षा केसाथ जुड़ जाए तो यह ‘परमसत्य’ की खोज को सुगम बनाती है। उन्होंने दत्तात्रेय के 24 गुरुओं का भी उल्लेख किया और भारतीय परंपराओं में गुरु के विविध रूपों और महत्व की व्याख्या की।
प्रोफेसर गोपाल शर्मा ने कहाकि प्रत्येक गुरुकुल की अपने रीति-रिवाज, श्लोक और विश्वास प्रणालियां होती हैं, इनका संरक्षण एक सामूहिक, किंतु चुनौतीपूर्ण ज़िम्मेदारी है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। डॉ सच्चिदानंद जोशी ने एकही वर्ष में 16 पुस्तकें प्रकाशित करने केलिए कलाकोश प्रभाग को बधाई दी और कहाकि ये साधारण ग्रंथ नहीं, बल्कि भारत की ज्ञान परंपरा में मूल्यवान संदर्भ ग्रंथ हैं। उन्होंने बताया कि 500 से अधिक विद्वत्तापूर्ण खंडों के प्रकाशन केसाथ आईजीएनसीए भारतीय बौद्धिक परंपरा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। डॉ सच्चिदानंद जोशी ने आग्रह कियाकि गुरु पूर्णिमा पर न केवल अपने गुरु को याद करें, बल्कि अपनी माता काभी सम्मान करें, जो जन्म देती है, प्रारंभिक शिक्षा देती है और आध्यात्मिक दीक्षा प्रदान करती है। उन्होंने कहाकि कोईभी समाज अपने गुरुओं केप्रति श्रद्धा के अभाव में वास्तव में विकसित या समृद्ध नहीं हो सकता। कार्यक्रम का संचालन कलाकोश प्रभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ योगेश शर्मा ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ अरविंद शर्मा ने किया। कार्यक्रम में अनेक विद्वानों, शोधकर्ताओं, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं और कला प्रेमियों ने भाग लिया। गुरु पूर्णिमा समारोह भारत की गुरु-शिष्य परंपरा और उसकी चिरस्थायी ज्ञान विरासत का स्मरण कराता है, जिससे यह सांस्कृतिक चेतना की सच्ची अभिव्यक्ति बन गया है।