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सूचना का विस्फोट प्रो पुरुषोत्तम के लिए संदेह!

हिंदू कालेज दिल्ली में हुआ दीपक सिन्हा स्मृति व्याख्यान

'देशप्रेम को हल्के नारों व खेलों में हार-जीत से न जोड़ें'

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Tuesday 25 September 2018 04:18:09 PM

professor purushottam agrawal

नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध आलोचक और भक्ति साहित्य के विद्वान कहे जाने वाले प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने यह कहकर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है कि 'यह सूचना का युग है, लेकिन सूचना का विस्फोट ज्ञान का प्रसार है या नहीं, इसमें संदेह है।' सवाल है कि इस विवाद पर उछलते सवालों का उत्तर किनसे मांगा जाए, क्योंकि प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल स्वयं में एक सामाजिक विचारक हस्ती मानी जाती हैं, इसलिए इस 'संदेह' का निवारण भी तो उन्हें ही करना चाहिए! प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने हिंदू कालेज दिल्ली में दीपक सिन्हा स्मृति व्याख्यान में 'हमारे समय में कबीर' विषय पर व्याख्यान देते हुए जब यह बात कही तो श्रोताओं के गलियारे से इस प्रश्न ने सर उठाया। प्रोफेसर साहब को इस संदेह पर इसलिए भी जवाब देना होगा, क्योंकि जब हम सवाल उठा रहे हैं तो उसका मुकम्मल उत्तर भी हमारे पास होना चाहिए, एक आलोचक का काम केवल प्रश्न खड़े करना ही नहीं होता, बल्कि य‌ह माना जाता है कि उस प्रश्न का श्रेष्ठ उत्तर भी आलोचक के पास होगा। तर्क है कि कबीर क्या रहस्यवादी थे? संदेहवादी थे? या स्पष्टवादी? उन्होंने प्रश्न उछाले तो उसके उत्तर भी पेश किए, इसीलिए कहा जाता है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण सबसे सरल रास्ता है, जिसमें संदेह और प्रश्न का उत्तर भी सहज और सामने होता है। प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने सूचना की शक्ति पर संदेह तो खड़ा कर दिया, लेकिन संदेह की काट नहीं बताई।
प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल हिंदी के एक प्रमुख आलोचक, चिंतक और कथाकार भी हैं और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय दिल्ली ने हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह के निर्देशन में 'कबीर की भक्ति का सामाजिक अर्थ' विषय पर पीएचडी की उपाधि भी प्रदान की है, इसलिए उनपर और भी ज्यादा जिम्मेदारी आ गई है कि वे इस संदेह का समाधान पेश करें। कबीर व्याख्यान में उनके संदेह पर सवाल के बादल मंडराएं। विचारवान लोगों के बीच कोई धीरे से कुछ बोला तो किसी ने मुस्कुराहटभरे अंदाज में उनके संदेह पर सवाल छोड़ा। प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल को समझना इतना आसान नहीं है। बहरहाल उन्होंने कहा कि हमारे समय में तर्क और विवेक का संकुचन हुआ है। सवाल पूछने में संकोच का अहोना इस संकुचन का लक्षण है। उन्होंने कहीं इशारा किया कि तर्क और विवेक के घटने से इंसानियत में भी कमी आई है, ऐसे समय में कबीर को पढ़ना है और उस मर्म को जानना है, जिसे हम भूलते जा रहे हैं। प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने हमारे समय में कबीर पर कहा कि विवेक के प्रत्यावर्तन के इस समय में कबीर को याद करना आवश्यक है, क्योंकि कबीर केवल अपने समय के पाखंडियों-सत्ताधारियों की खिल्ली नहीं उड़ाते थे, अपितु उनकी कविता किसी भी समय के पाखंड और सत्ता की निरंकुशता के खिलाफ है।
प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने पोस्ट ट्रुथ के मुहावरे को सत्यातीत बताते हुए कहा कि यह ऐसा समय है, जब दिल पत्थर का हो गया है और भावनाएं अद्भुत कोमल हो गई हैं। उन्होंने इसे आहत भावनाओं का समय बताते हुए कहा कि कबीर को धर्म के प्रचलित अर्थ की चिंता नहीं थी और यही नहीं उनकी भक्ति भी परम्परा से चली आ रही भक्ति से भिन्न है। उन्होंने कहा कि वास्तविक भक्ति विवेक के समर्पण में नहीं है। प्रोफेसर अग्रवाल ने कबीर को मूलत: तर्क और विवेक की संवेदना का कवि बताते हुए कहा कि कबीर की आलोचना का आधार अनुभव सिद्ध ज्ञान है जो उपलब्ध ज्ञान से असहमति दर्शाते हुए आई है। प्रोफेसर अग्रवाल ने कबीर के समय की चर्चा करते हुए उसे मध्यकाल मानने से इंकार करते हुए कहा कि उस समय भारत में व्यक्ति सत्ता का सम्मान होने लगा था, वहीं से हमारे समय में प्रबोधन के प्रधान मूल्यों का तेजी से क्षरण होना चिंता का विषय है। हमारे समय की व्यक्ति सत्ता को उन्होंने मनुष्य विरोधी ठहराते हुए कहा कि जब हमें दूसरे मनुष्य की जरूरत ही नहीं है तो दूसरे मनुष्य का दर्द भी हमारे पास नहीं पहुंच सकता। उन्होंने इसे ही विवेक के लौटने और भावनाओं के हावी होने का समय बताया।
कबीर व्याख्यान के बाद युवा विद्यार्थियों से सवाल-जवाब सत्र हुआ, जिसमें एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पंजाब या दुनिया में कहीं भी ईश निंदा जैसे कानूनों का विरोध होना चाहिए, क्योंकि ईश्वर भक्ति के सिद्धांतों के आधार पर ही यह कानून उचित नहीं है। देशप्रेम और राष्ट्रविरोधी नारों के सम्बन्ध में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि देश के कानून में हम सबको भरोसा रखना चाहिए, जिसमें ऐसे किसी भी अपराध के लिए सजा के प्रावधान हैं। उन्होंने कहा कि देशप्रेम बहुत बड़ी और गहरी भावना है, जिसे हलके नारों और खेलों में हार-जीत से जोड़ देना नासमझी है। हिंदी विभाग के सह आचार्य डॉ रामेश्वर राय ने दीपक सिन्हा से जुड़ी यादों को साझा किया और एक अध्यापक तथा मनुष्य के रूपमें दीपक सिन्हा की असाधारणता की चर्चा की।
डॉ बिमलेंदु तीर्थंकर ने पौधा भेंटकर प्रोफेसर अग्रवाल का स्वागत किया। डॉ पल्लव ने उन्हें स्मृति चिन्ह के तौर पर कलाकृति भेंट की। व्याख्यान आयोजन में हिंदी विभाग की प्रभारी डॉ रचना सिंह और अध्यापकों डॉ अभय रंजन, डॉ हरींद्र कुमार, विद्यार्थी तथा शोधार्थी उपस्थित थे। व्याख्यान का संयोजन बीए प्रतिष्ठा के विद्यार्थी सौरभ सिंह ने आभार व्यक्त किया। दीपक सिन्हा व्याख्यान के आयोजन के साथ प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने महाविद्यालय के भरतराम सेंटर में राजकमल प्रकाशन समूह की पुस्तक प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया। यह प्रदर्शनी 28 सितंबर तक चलेगी। प्रदर्शनी के संयोजक आमोद महेश्वरी ने बताया कि लगभग एक हजार पुस्तकों की इस प्रदर्शनी में साहित्य, भाषा और विद्यार्थियों के लिए उपयोगी विषयों की मानक किताबें प्रदर्शित की जा रही हैं।

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