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कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन के आसार?

कर्नाटक में किसी भी दल के पास बहुमत नहीं

बीएस येदियुरप्पा की भूमिका अभी भी अहम

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 19 May 2018 05:12:30 PM

karnataka assembly

बैंगलुरु। कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने विधानसभा में अपनी सरकार का बहुमत सिद्ध करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया। सुप्रीमकोर्ट ने आज सायं चार बजे तक उन्हें विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का समय दिया था, लेकिन उन्होंने सदन में एक भावना प्रधान भाषण में कर्नाटक के किसानों और कर्नाटक के विकास के लिए काम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए कहा कि वे विधानसभा में बहुमत नहीं जुटा पाने के कारण राज्यपाल को अपना इस्तीफा देने जा रहे हैं। इसीके साथ कर्नाटक में सरकार के गठन का मामला एकबार फिर राज्यपाल की कोर्ट में चला गया है और अब ऐसा लगता है कि आज नहीं तो कल कर्नाटक राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि राज्यपाल वाजुभाई वाला के पास कांग्रेस और जेडीएस के चुनाव बाद के गठबंधन पर भी स्‍थाई सरकार देने से संतुष्ट नहीं होने का एक महत्वपूर्ण कारण है, लिहाजा वह विधानसभा को निलंबित कर सकते हैं और राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर स‌कते हैं। इस संपूर्ण घटनाक्रम का एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि यदि राज्यपाल ने कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाया भी तो इस सरकार का भविष्य भी उज्जवल नहीं है, दोनों में कभी भी सत्ता की मलाई को लेकर जंग हो सकती है, तब कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में इस बार त्रिशंकु विधानसभा आई है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी 104 सीट पाकर बहुमत से सात सीटें दूर है और कांग्रेस 78 सीट पाकर बहुमत से बहुत दूर है एवं जनतादल एस 38 सीटें पाकर तीसरे नंबर पर है, जबकि 2 निर्दलीय विधायक हैं। राज्यपाल ने विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी विधानमंडल दल के नेता बीएस येदियुरप्पा को सबसे बड़े दल के नाते पहले सरकार बनाने का अवसर देते हुए मुख्यमंत्री नियुक्त किया था और उन्हें पंद्रह दिन में बहुमत सिद्ध करने का अवसर दिया था, लेकिन कांग्रेस इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट गई और सुप्रीमकोर्ट ने बीएस येदियुरप्पा को आदेश दिया कि वे आज सायं चार बजे तक बहुमत सिद्ध करके दिखाएं। कांग्रेस और जेडीएस ने चुनाव बाद एक गठबंधन बनाया और दावा किया कि उसके पास बहुमत है और राज्यपाल उसके नेता कुमार स्वामी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें। गौरतलब है कि जेडीएस जिसके नेता कुमार स्वामी हैं, उसे विधानसभा में महज 38 सीटें मिली हैं और जेडीएस ने कांग्रेस को लक्ष्य बनाकर उसके खिलाफ चुनाव लड़ा था। कर्नाटक में एक दूसरे के ध्रुवविरोधी ये दोनों दल सत्ता का अवसर सामने देखकर एक हो गए, इनका सरकार बनाने का बहुमत हो गया, इसीके आधार पर इन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश किया। भाजपा बहुमत से केवल सात सीटें पीछे रह गई। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद स्थितियां तेज़ी से बदलीं और दोपहर बाद एक सुनियोजित रणनीति के तहत बीएस येदियुरप्पा ने विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का इरादा त्यागकर राज्यपाल के यहां जाकर इस्तीफा सौंपने की घोषणा कर दी।
कुमार स्वामी के पिता एचडी दैवगौड़ा जनतादल गठबंधन की सरकार में देश के प्रधानमंत्री रहे हैं, वे कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी रहे हैं, इस नाते कर्नाटक में कुमार स्वामी को वहां की जनता जानती है। पिताश्री की लाईजनिंग के अलावा कुमार स्वामी में बाकी और कोई राजनीतिक पराक्रम नहीं माना जाता है। कांग्रेस ने कर्नाटक में अपनी पराजय के बाद भाजपा के खिलाफ एक कुटिल चाल से कुमार स्वामी को समर्थन दिया है और कुमार स्वामी कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन बैठे हैं। माना जाता है कि यदि एचडी देवगौड़ा की पुत्र कुमार स्वामी को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर देखने की इच्छा और महत्वाकांक्षा न होती और उनमें राजनीतिक नैतिकता दिखाने का साहस होता तो वह कांग्रेस से हरगिज़ गठबंधन नहीं करते। इस गठबंधन के बाद जेडीएस के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है, जिसका असर कुछ समय बाद दिखाई भी देगा। बहरहाल राज्यपाल ने भारतीय जनता पार्टी के नेता बीएस येदियुरप्पा को पहले सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, जिसमें स्‍थाई सरकार का गठन हो सकता हो और जो उस समय का सबसे बड़ा दल हो। इसके बाद कर्नाटक में जमकर कोर्ट कचहरी हुई। कांग्रेस और जेडीएस ने कर्नाटक में अपने बहुमत का दावा करते हुए सरकार बनाने के लिए दबाव बनाया, ल‌ेकिन बीएस येदियुरप्‍पा को ही अवसर दिया गया, लेकिन उन्होंने विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया।
कर्नाटक में राजनीतिक संकट है और कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन केवल कर्नाटक में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए हुआ है, इसलिए यह गारंटी नहीं है कि यह दोनों स्‍थाई रूपसे पांच साल साथ-साथ रह सकते हैं। राज्यपाल इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं, लेकिन यह गठबंधन स्‍थायित्व सरकार के लिए कहीं से भी भरोसेमंद नहीं है, इसमें अवसरवादी कांग्रेस जो शामिल है और जो राज्य में प्रशासनिक एवं राजनीतिक अराजकता पैदा कर सकती है, लिहाजा यह संभावना बढ़ गई है कि कांग्रेस जेडीएस गठबंधन के नेता कुमार स्वामी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के बावजूद विधानसभा में कुछ भी हो सकता है, जरूरी नहीं कि यह सरकार भी बहुमत सिद्ध कर ले। यह संभावना है ज्यादा है कि राज्य में लोकप्रिय सरकार के गठन में भाजपा जैसे एक बड़े दल के विफल होने के ‌कारण उसके बाद के किसी गठबंधन को सरकार बनाने का अवसर न दिया जाए। यह मामला गठबंधन की स्थिति और स्‍थायित्व से संबंधित है, जिसमें राज्यपाल का संतुष्ट होना जरूरी है कि यदि इस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाया गया तो वह स्‍थाई सरकार देगा, चूंकि कांग्रेस और जेडीएस चुनाव बाद का गठबंधन है, इसलिए इसके स्‍थायित्व की कोई गारंटी नहीं है।
कर्नाटक के राज्यपाल वाजुभाई वाला को मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने अपना इस्तीफा दे दिया है, लिहाजा अब गेंद राज्यपाल के पाले में है, देखना ह‌ै कि कर्नाटक की राजनीति क्या करवट लेती है। लगता है कि कांग्रेस जेडीएस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाने के बजाए राज्यपाल कर्नाटक में सरकार बनाने की अगली संभावनाओं तक विधानसभा का निलंबन और यहां राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं या ऐसा भी कर सकते हैं कि इस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुला लें और फिर कांग्रेस एवं जेडीएस में जंग देखी जाए, जिसके बाद इस गठबंधन की छीछालेदर के साथ विदाई देखी जाए। ज्ञातव्य है कि शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय के तीन जजों न्यायमूर्ति एके सिकरी न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए शक्ति परीक्षण का समय घटा दिया था। बीएस येदियुरप्पा कानूनी तौरपर अल्पमत में थे और वे के‌वल जोड़तोड़ पर ही बहुमत सिद्ध कर सकते थे, लेकिन समय घटने के कारण भाजपा की इस रणनीति को नुकसान पहुंचा और बीएस येदियुरप्पा को बहुमत सिद्ध करने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ गया। इस घटनाक्रम में एक और भी विवाद खड़ा हुआ, जिसमें कर्नाटक के गवर्नर ने केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त कर दिया, जिसे कांग्रेस ने संविधान के खिलाफ बताया और वह केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर बनाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। चूंकि विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने की नौबत ही नहीं आई, इसलिए प्रोटेम स्पीकर की भूमिका विधायकों को शपथ दिलाने तक ही रह गई। कर्नाटक का राजनीतिक परिदृश्य बहुत नाटकीय रूप ले चुका है, जिसमें देखना है कि आगे और क्या विचित्र होने वाला है।

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