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गुरूदेव टैगोर का मार्ग अपनाइए-राष्ट्रपति

रबिंद्रनाथ की जयंती पर राष्ट्रपति की पुष्पांजलि

'एक महान आत्मा थे गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर'

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Tuesday 9 May 2017 04:47:32 AM

president's wreath on the birth anniversary of rabindranath

नई दिल्ली/ कोलकाता। गुरूदेव रबिंद्रनाथ टैगोर जी हां! आठ साल की उम्र से ही कविता, छंद और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का लोगों को आभास कराते हुए केवल सोलह साल की उम्र में विख्यात लघुकथा लिखने वाले, भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगदृष्टा गुरूदेव रबिंद्रनाथ टैगोर की आज कोलकाता से लेकर दिल्ली तक सारे देश और विदेश में जयंती मनाई जा रही है। राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर की जयंती पर राष्ट्रपति भवन में उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर की जयंती पर मैं देशवासियों के साथ भारत के इस महान व्‍यक्तित्‍व को श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं, जिन्‍होंने शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया, राष्‍ट्रीय गान की रचना की और शिक्षा एवं साहित्‍य के क्षेत्र में एशिया का पहला नोबल सम्मान प्राप्‍त किया। उन्होंने कहा कि महान बुद्धिजीवी गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर, अपनी संस्‍कृति और साहित्य के बारे में ज्ञान के आदान-प्रदान के माध्यम से सभ्यताओं के मध्‍य बातचीत के विचार से मंत्रमुग्‍ध थे, वह ऐसे समय में अपने देश के एक आदर्श राजदूत थे, जब बाहरी दुनिया में भारत के बारे में बहुत कम जानकारी थी।
राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर ने शांति और बिरादरी का रचनात्मक दृष्टिकोण स्‍थापित किया है, जिसकी प्रासंगिकता वैश्विक अपील में लगातार जारी है। उन्होंने कहा कि जाति, पंथ और रंग से भरी दुनिया में गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर ने विविधता, खुले दिमाग, सहिष्णुता और सहअस्तित्व के आधार पर एक नई विश्व व्यवस्था के लिए अंतर्राष्ट्रीयवाद को बढ़ावा दिया। राष्ट्रपति ने कहा कि गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर एक महान आत्मा थे, जिन्‍होंने न केवल अपने जीवनकाल को प्रकाशमय बनाया, बल्कि वे आज भी मानवता के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि आइए हम इस अवसर का गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर के मानवता की एकता के विचार से प्रेरणा प्राप्‍त करने के लिए उपयोग करें। उन्होंने कहा कि हम सभी के जीवन में गुरूदेव का मार्ग श्रेष्ठ है, हम सभी को सही राह दिखाता है।
गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर का जन्म कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर ने बचपन में ही उनकी विलक्षण प्रतिभा को भांपकर उन्हें अच्छी शिक्षा दीक्षा दिलाई और बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया। उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया, लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही स्वदेश वापस आ गए। सन 1883 में मृणालिनी देवी से उनका विवाह हो गया। सोलह वर्ष की उम्र में शिक्षा साहित्य क्षेत्र में उन्हें वो हासिल हुआ, जो किसी विरले को ही नसीब होता है। देश और विदेश के सारे साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि उन्होंने आहरण करके अपने अंदर समेट लिए थे। पिता के ब्रह्मसमाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्मसमाजी थे, पर अपनी रचनाओं और कर्म से उन्होंने सनातन धर्म को भी प्राथमिकता दी।
रबींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं में मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है, वह अलग-अलग रूपों में उभर आता है। साहित्य की शायद ही ऐसी कोई शाखा हो, जिनमें उनकी रचना न हो कविता, गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबंध, शिल्पकला सभी विधाओं में उन्होंने रचना की। उनकी सृजन कृतियों में गीतांजलि, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा पूरे विश्व में फैली। उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिए तो उन्हें सन 1913 में साहित्य का नोबेल सम्मान मिला। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल सम्मान पाने वाले विजेता हैं। वे बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल से सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं, जिसकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्रगान जन गण मन और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएं हैं।

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