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देवमणि के संग्रह अपना तो मिले कोई का लोकार्पण

रमा पांडेय

Monday 11 February 2013 08:52:42 AM

lokarpan-apna to mile koi

लखनऊ। मुंबई के शायर देवमणि पांडेय के ग़ज़ल संग्रह ‘अपना तो मिले कोई’ का लोकार्पण साहित्यकार एवं उप्र हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह ने किया। हिंदी संस्थान के प्रेमचंद सभागार में 9 फरवरी की शाम को आयोजित इस कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के रूप में बोलते हुए उदय प्रताप सिंह ने कहा कि हिंदी और उर्दू दरअसल एक ही भाषाएं हैं, राज दरबारों में बोली जाने वाली ज़बान को उर्दू नाम दिया गया जबकि समाज में बोली जाने वाली भाषा को हिंदी कहा गया, कवि देवमणि पांडेय की ग़ज़लों की ज़बान भी यही है, इसे आप चाहे हिंदी, चाहे उर्दू कह सकते हैं, इसी आम फ़हम ज़बान में उन्होंने अपने समय और समाज की सच्चाइयों को असरदार तरीके़ से अभिव्यक्त किया है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष जाने-माने शायर अनवर जलालपुरी ने कहा कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लों में एक तरफ़ तो गाँव की ज़िंदगी मुस्कराती है तो दूसरी तरफ़ शहरों का अजा़ब (दर्द) भी चहलकदमी करता दिखाई देता है। उन्होंने आगे कहा कि उर्दू के अधिकतर शायरों ने हिंदी में लिखना-पढ़ना सीख लिया है, अगर हिंदी के 25 प्रतिशत शायर भी उर्दू स्क्रिप्ट सीख लें तो दोनों ज़बानों में बहुत अच्छा तालमेल हो जाएगा और दोनों की तरक़्की़ होगी, देवमणि पांडेय ने उर्दू सीखकर इस दिशा में क़ाबिले-तारीफ़ काम किया है। कार्यक्रम की शुरूआत में कवयित्री नीतू सिंह ने सरस्वती वंदना की। नीतू ने देवमणि पांडेय की एक ग़ज़ल भी तरंनुम में पेश की-
जो मिल गया है उससे भी बेहतर तलाश कर
क़तरे में भी छुपा है समंदर तलाश कर
हाथों की इन लकीरों ने मुझसे यही कहा
कोशिश से अपनी अपना मुक़द्दर तलाश कर
शायर आमिर मुख़्तार ने भी देवमणि पांडेय की एक ग़ज़ल पेश की-
प्यासी ज़मीं थी और मैं बादल नहीं हुआ
इक ख़्वाब था मगर वो मुकम्मल नहीं हुआ
ख़ुशबू मेरी निगाह की तुझसे लिपट गई
क्या बात है कि दिल तेरा संदल नहीं हुआ
उर्दू माहनामा ला-रैब के संपादक रशीद कु़रैशी ने ‘अपना तो मिले कोई’ पर इज़हारे ख़याल करते हुए कहा कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लें ऊपर से देखने में बेहद सरल और आसान लगती हैं, लेकिन उनके भीतर गहरा अर्थ छुपा होता है। पत्रकार व शायर हसन काज़मी ने कहा कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लें दिल से निकली हुई ग़ज़लें हैं और दिल को छूती हैं। कथाकार दयानंद पांडेय, व्यंग्यकार सूर्य कुमार पांडेय और ईटीवी के वरिष्ठ संपादक, शायर तारिक़ क़मर ने भी कवि देवमणि पांडेय को बधाई दी।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन-मुशायरे में हिंदी-उर्दू के प्रमुख कवियों-शायरों ने शिरकत की। प्रमुख अतिथि उदय प्रताप सिंह ने चुनिंदा शेर सुनाए-
न मेरा है न तेरा है, ये हिंदोस्तान सबका है
नहीं समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है
श्रोताओं की मांग पर देवमणि पांडेय को कई ग़ज़लें पेश करनी पड़ीं। दो शेर देखिए-
सजा है इक नया सपना हमारे मन की आँखों में
कि जैसे भोर की किरणें किसी आँगन की आँखो में
सुलगती है कहीं कैसे कोई भीगी हुई लकड़ी
दिखाई देगा ये मंज़र तुम्हें बिरहन की आँखों में
शायर अनवर जलालपुरी, रशीद क़ुरैशी, डॉ मेराज साहिल, इमरान अनवारवी, आमिर मुख़्तार, इस्लाम फ़ैसल, अहमद फ़राज़, सलमान ज़फ़र, ओपी तिवारी, मनोज श्रीवास्तव, जनेश्वर तिवारी और नीतू सिंह के कविता पाठ का श्रोताओं ने जमकर लुत्फ़ उठाया। पत्रकार-शायर हसन काज़मी ने अपनी लोकप्रिय ग़ज़ल पेश की-
खू़बसूरत हैं आखें तेरी रातों को जागना छोड़ दे
खु़द बखु़द नींद आ जाएगी तू मुझे सोचना छोड़ दे
डॉ हारून रशीद ने कार्यक्रम का रोचक संचालन किया। संयोजन वीरेंद्र नारायण सिंह ने और नराकास (लखनऊ) के अध्यक्ष संजय पांडेय ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में अच्छी तादाद में लखनऊ महानगर के रचनाकार-पत्रकार और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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