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यूपी में 'भाड़े' पर सक्रिय है आम आदमी पार्टी?

लखनऊ में 'आप' और मनीष सिसौदिया की राजनीतिक उदंडता

मीडिया के सवालों और पुलिस से तिलमिलाए मनीष सिसौदिया

Wednesday 23 December 2020 05:46:04 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

manish sisodia's indecency in lucknow

लखनऊ। आम आदमी पार्टी की उत्तर प्रदेश की राजनीति में उदंडतापूर्ण सक्रियता, भाजपा सरकार के खिलाफ अतिरेक एजेंडों, बयानबाज़ियों और हर जगह हंगामों से बड़े सवाल उठ रहे हैं कि दिल्ली के ईमानदार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया एवं आप के उत्तर प्रदेश प्रभारी संजय सिंह अपने कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा और योगी सरकार के खिलाफ क्या भाड़े पर सक्रिय हैं? यूपी में आम आदमी पार्टी के नेताओं की गतिविधियों और उनके राजनीतिक एजेंडों से तो ऐसा ही निष्कर्ष निकल रहा है। इस मंगलवार को मनीष सिसौदिया, संजय ‌सिंह ने लखनऊ के गांधी भवन में बैठकर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार के शिक्षा मॉडल और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के शिक्षा मॉडल पर इकतरफा बहस का ड्रामा रचकर मीडिया के सामने योगी सरकार और उनके मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह को बहस में आने के‌ लिए ललकारते रहे। यही नहीं दिल्ली सरकार के शिक्षामंत्री महोदय मनीष सिसौदिया एवं आप नेता संजय सिंह ने इसके बाद बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के यहां से निकलकर लखनऊ के उतरटिया में स्कूल देखने जाने की ज़िद लगाकर हंगामा काटा जिसे पुलिस ने रोक दिया। इस तरह मनीष सिसौदिया एवं आप नेता संजय सिंह की लखनऊ में खूब छीछालेदर हुई।
दिल्ली में रोजी-रोटी के लिए लंबे समय से रहते आ रहे यूपी बिहार और झारखंड के मजदूरों युवाओं और कामगारों को मुफ्त बिजली पानी और रहने जैसी बुनियादी सुविधाओं के लालच में फंसाकर दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाने के लिए उनका प्रचंड वोट लेकर सरकार बनाने के बाद कोरोना लॉकडाउन में उन्हें सुविधाएं देने के बजाए उन्हें धक्के देकर दिल्ली यूपी बार्डर पर धकेल देने वाली और दो करोड़ की आबादी वाली देश की राजधानी दिल्ली में उच्चस्तरीय संसाधनों के बावजूद कोरोना पर नियंत्रण पाने में पूरी तरह विफल अरविंद केजरीवाल सर‌कार उत्तर प्रदेश में भाजपा और योगी सरकार के खिलाफ मानों भाड़े पर अराजकतापूर्ण राजनीतिक उदंडता करने पर उतरी है। आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया एवं आप के यूपी प्रभारी संजय सिंह ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा मॉडल एवं उसके साथ-साथ बिजली और स्वास्‍थ्य पर निशाने साधते हुए राजधानी लखनऊ में खूब ड्रामा किया। उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने शिक्षा के संदर्भ में कभी दिल्ली सरकार को केजरीवाल के शिक्षा मॉडल और यूपी के योगी मॉडल पर खुली बहस की बात कह दी थी, जिसके फलस्वरूप दिल्ली के बड़बोले उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया अपनी तरफ से खुली बहस की बाइस दिसंबर तय करके लखनऊ आ गए और वीवीआईपी गेस्ट हाउस एवं गांधी भवन में बैठकर मीडिया को बुलाकर यूपी के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ललकारने लगे।
मनीष सिसौदिया की सिद्धार्थनाथ सिंह से बिना किसी कार्यक्रम के यह एकतरफा खुली बहस तो नहीं हो पाई अलबत्ता मनीष सिसौदिया दिल्ली सरकार के केजरीवाल स्कूल मॉडल की तारीफों में मीडिया के सवालों में जरूर उलझ गए। उन्होंने प्रोजेक्टर पर दिल्ली के सरकारी स्कूलों की कुछ ब‌िल्डिंगें दिखाई और स्वीमिंग पूल एवं कुछ बच्चे दिखाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार पर हमला बोला और कहा कि उत्तर प्रदेश में शिक्षा का बहुत बुरा हाल है। मनीष सिसौदिया आप कार्यकर्ताओं एवं मीडिया की मौजूदगी में यूपी के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बार-बार नाम लेकर यूपी की बिजली और स्वास्‍थ्य सेवाओं पर भी कटाक्ष करते हुए उन्हें गांधी भवन बहस में आने के लिए ललकारते रहे। मनीष सिसौदिया ने कहा कि दिल्ली सरकार मुफ्त बिजली दे रही है और उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर प्रदेश की जनता को मुफ्त बिजली पानी शिक्षा और सेवाएं दी जाएंगी। मनीष सिसौदिया कह रहे थे कि जब हम दो करोड़ की आबादी दिल्ली को संभाल सकते हैं तो बाइस करोड़ आबादी के उत्तर प्रदेश को भी संभाल सकते हैं। इस पर उनसे ज‌ब मीडिया के सवाल शुरु हुए तो वे बौखला गए और सवालों का सीधे जवाब न देते हुए दाएं-बाएं करने लगे। केजरीवाल स्कूल मॉडल पर वे ऐसे घिरे कि मीडिया के लोगों को बीजेपी के लोग और फोटोशॉप छाप कहने लगे। अपने को और ज्यादा सवालों से घिरते देख प्रेस कॉंफ्रेंस से उठ लिए एवं यह कहते हुए निकल लिए कि हमें उतरटिया स्कूल देखने जाना है।
मनीष सिसौदिया गांधी भवन से एक काफिला बनाकर अपनी ज़िद पर लखनऊ के पास उतरटिया में स्कूल देखने जाने निकले तो लखनऊ पुलिस की अधिकारी डॉ बीनू सिंह ने उन्हें यह कहकर रोका कि उनके कार्यक्रम में वहां का कार्यक्रम नहीं है, इसलिए और कोरोना जागरुकता के कारण वे वहां नहीं जा सकते। मनीष सिसौदिया इसपर पुलिस से भिड़ गए। उनकी लखनऊ पुलिस कमिश्नर से बात कराई गई तो वे झल्लाहट में बेतुके प्रश्न और तर्क देने लगे, बहरहाल पुलिस ने उन्हें बगैर कार्यक्रम के नहीं जाने दिया, इससे मनीष सिसौदिया की यहां भी छीछालेदर हुई। मनीष सिसौदिया और संजय सिंह के इस पूरे हंगामे से एक ही बात निकलकर सामने आई कि वे यूपी में भाजपा और योगी सरकार को घेरकर, सरकार के स्‍थानीय प्रशासन से टकराव करके आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की न्यूसेंस वैल्यू बढ़ा रहे हैं, जिसके तरीके और भी ज्यादा टकराव वाले हो सकते हैं, क्योंकि मंगलवार को इन नेताओं ने लखनऊ में जिस तरह का हुड़दंग काटा, उसकी पोल खुलती नज़र आई। मीडिया ने इनसे जो सवाल किए उनके उत्तर इन्होंने नहीं दिए। मनीष सिसौदिया से सवाल हुआ कि इस बहस के लिए क्या सिद्धार्थनाथ सिंह ने भी आज का समय दिया था, जो आपने उनके नाम की भी ‌कुर्सी लगाई है तो मनीष सिसौदिया ने इस सवाल को नज़रअंदाज करने की कोशिश की और अंततः माना कि उनसे बहस का यह समय निर्धारित नहीं था।
मनीष सिसौदिया से सवाल हुआ कि अगर दिल्‍ली के सरकारी स्कूल अच्छे हुए हैं तो सरकारी स्कूल छोड़कर प्राइवेट स्कूलों में जाने वाले बच्चों की संख्या क्यों बढ़ी? क्योंकि दिल्ली सरकार के इकॉनोमिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014-15 में जहां दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों का शेयर केवल 31% था, वर्ष 2017-18 में वह बढ़कर 45.5% से भी अधिक हो गया है, फिर जहां एक तरफ दिल्ली की जनसंख्या बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में दसवीं और बारहवीं की परीक्षा देने वाले बच्चों की संख्या लगातार क्यों कम होती चली गई? मनीष सिसौदिया इस सवाल से भाग खड़े हुए। एक संवाददाता ने उनसे पूछा कि वर्ष 2014 में 1 लाख 66 हजार बच्चे बारहवीं की परीक्षा में बैठे, 2015 में 1 लाख 40 हजार, 2016 में 1 लाख 31 हजार, 2017 में 1 लाख 21 हजार, 2018 में केवल 1 लाख 11 हजार बच्चे ही बारहवीं की परीक्षा में बैठे? दिल्ली के परीक्षार्थियों में ये निराशाजनक कमी आखिर क्यों और कैसे आई? इसपर भी मनीष सिसौदिया संवाददाता से कुतर्कों पर उतर आए और कोई जवाब दिए बिना दूसरे संवाददाता की ओर बढ़ गए। एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि 2014 के मुकाबले अबतक 1 लाख 40 हजार छात्र सरकारी स्कूलों से निकलकर प्राइवेट स्कूलों में क्यों गए? 2014 की तुलना में सरकारी स्कूल के 42,000 छात्र बोर्ड में क्यों कम पास हुए? दसवीं का रिजल्ट अच्छा दिखाने के लिए लगभग 50% बच्चों को 9वीं में क्यों फेल किया जा रहा है? यह सवाल भी मनीष सिसौदिया के लिए मुसीबत बन गया।
मनीष सिसौदिया अपने केजरीवाल शिक्षा मॉडल पर बहस रखकर मीडिया के सवालों में बुरे फंस जाएंगे यह उन्हें कोई अंदाजा नहीं था। उन्होंने समझा होगा कि मी‌डिया उनकी झूंठी-सच्ची सुन लेगा, लेकिन हुआ इसके उल्टा। मीडिया ने केजरीवाल शिक्षा मॉडल पर इतने सवाल दागे कि मनीष सिसौदिया झल्लाहट में मीडिया पर ही तंज कसने लगे और उनकी एक न चली। मनीष सिसौदिया से शिक्षा पर ही एक सवाल हुआ कि दिल्ली में 2017-17 में 47.7% बच्‍चे 9वीं क्लास में फेल हुए और दसवीं पास करके ग्यारहवीं में आए बच्चों में से भी 20% बच्चे फेल हुए यानी नौवीं की तुलना में केवल आधे बच्चे दसवीं में और केवल एक तिहाई बच्चे बारहवीं कक्षा में पहुंचे, दिल्ली के स्कूलों का यह आंकड़ा आजादी के बाद का सबसे खराब आंकड़ा है, क्या सरकारी विज्ञापनों में दसवीं और बारहवीं का रिजल्ट अच्छा दिखाने के लिए लाखों बच्चों को नौवीं और ग्यारहवीं में फेल किया जा रहा है? इसपर भी मनीष सिसौदिया बौखला गए। मीडिया के बीच में आम आदमी के कार्यकर्ता भी बैठाए गए थे जो मीडिया के सवालों को बाधित भी कर रहे थे। मनीष सिसौदिया ने केजरीवाल शिक्षा मॉडल पर बहस के लिए यूपी के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह की कुर्सी डालकर अपने लिए आफत ही मोल ले ली।
दिल्ली सरकार बड़े-बड़े विज्ञापन देकर अपने यहां शिक्षा के बजट की घोषणाएं करती है, लेकिन बजट खर्च कितना होता है? 2017-18 में शिक्षा बजट में से 2000 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं हुए। पिछले पांच साल में शिक्षा बजट ना खर्च करने का आंकड़ा हर साल 2000 करोड़ रुपये के आसपास ही है यानी केवल बजट की घोषणा हुई और काम कुछ नहीं हुआ। दिल्ली में कितने नए सरकारी स्कूल बने? बने बनाए स्कूलों में कमरे नहीं, वास्तव में कितने नए स्कूल बने? दिल्ली में पहले से बने स्कूलों में लगभग 15000 अस्‍थायी कमरे बनाए गए। औैसत एक स्कूल में पांच नए कमरे बने। सात साल में एक स्‍कूल में पांच नए कमरे बनाए वो भी अस्‍थायी? क्या ये दिल्ली में शिक्षा क्रांति है? मनीष सिसौदिया के पास झूंठी बयानबाजी और कभी कांग्रेस का एजेंडा बताने या कभी योगी सरकार और भाजपा पर हमला करने के अलावा उनसे सवालों का कोई उत्तर नहीं था। सात साल में कितने टीचर्स की भर्ती हुई? क्यों दिल्ली के बहुत सारे स्कूलों में प्रिंसिपल नहीं हैं, अध्यापकों की कमी है? 76 फीसदी स्कूलों में पीने का पानी का कनेक्‍शन तक नही है? ये वो सवाल थे, जिनका जवाब मनीष सिसौदिया के पास नहीं था। दिल्‍ली में सरकार स्कूलों में खेल मैदानों की कमी, साइंस लैब की कमी, पुस्तकालयों की कमी यानी छात्रों के लिए सुविधाएं बढ़ने की जगह लगातार कम हो रही हैं, केजरीवाल सरकार केवल विज्ञापन और मीडिया मैनेजमेंट से ही दिल्ली में शिक्षा क्रांति दिखाना चाहती है? मनीष सिसौदिया इन सवालों के जवाब देने में विफल रहे।

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