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अग्नाशय के कैंसररोधी तत्व का पता चला

आईआईआईएम जम्मू के शोधार्थियों को मिली कामयाबी

आईआईआईएम-290 तत्व के परीक्षण को मिली मंजूरी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 11 June 2020 05:02:01 PM

pancreatic anticancer detected

जम्मू। कैंसर की दवा के विकास से जुड़े अध्ययन में अग्नाशय के कैंसररोधी तत्व का पता चला है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद से संबद्ध इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटिग्रेटिव मेडिसिन (आईआईआईएम) जम्मू के शोधकर्ताओं को यह महत्वपूर्ण सफलता मिली है। शोधकर्ताओं ने एक ऐसे तत्व का पता लगाने का दावा किया है, जिसमें अग्नाशय के कैंसर से संबंधित शुरुआती अध्ययनों में कैंसररोधी गुण देखे गए हैं। कैंसररोधी नई रासायनिक इकाई के रूपमें पहचाने गए इस तत्व को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के न्यू ड्रग्स डिविजन से इंवेस्टिगेशनल न्यू ड्रग के रूपमें मंजूरी मिली है, जिसके बाद अग्नाशय के कैंसर से पीड़ित मरीजों पर आईआईआईएम-290 नामक इस तत्व के चिकित्सीय परीक्षण के रास्ते खुल गए हैं। प्रस्तावित चिकित्सीय परीक्षण का उद्देश्य अग्नाशय के कैंसर से ग्रस्त रोगियों में इस तत्व के सुरक्षित उपयोग, सहनशीलता और जोखिम का आकलन करना है।
आईआईआईएम के निदेशक डॉ राम विश्वकर्मा ने बताया है कि पश्चिमी घाटी में पाए जाने वाले सफेद देवदार की पत्तियों से अग्नाशय का यह कैंसररोधी तत्व प्राप्त किया गया है। डॉ राम विश्वकर्मा ने बताया कि कैंसर सेल लाइन पैनल एनसीआई-60 और चिकित्सकीय रूपसे मान्य कैंसर में शामिल प्रोटीन काइनेज के खिलाफ कैंसररोधी परीक्षण में प्राकृतिक रूपसे प्राप्त तत्व रोहिटुकीन को प्रभावी पाया गया है। एनसीआई-60 कैंसर सेल लाइन पैनल संभावित कैंसररोधी गतिविधि का पता लगाने के लिए यौगिकों की स्क्रीनिंग के लिए उपयोग की जाने वाली मानव कैंसर सेल लाइनों का एक समूह है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने फाइटोकेमिकल परीक्षण किए हैं। आईआईआईएम के शोधकर्ता संदीप भराटे ने कहा है कि चिकित्सीय परीक्षण के लिए एनिमल मॉडल्स में इस तत्व की कैंसररोधी गतिविधि पर्याप्त नहीं थी, इसीलिए प्राकृतिक रूपसे प्राप्त इस तत्व में संशोधन करके कुछ नई रासायनिक इकाइयां प्राप्त की गई हैं।
शोधकर्ता संदीप भराटे ने बताया कि इन रासायनिक इकाइयों का परीक्षण प्रोटीन काइनेज पर किया गया है, यह प्रोटीन मनुष्य के ऊतकों में पाया जाता है और कैंसरग्रस्त ऊतकों में इस प्रोटीन की मात्रा सामान्य से अधिक पाई जाती है। उनका कहना है कि काइनेज को वास्तव में कैंसर के प्रसार के लिए जिम्मेदार माना जाता है, शोधकर्ताओं ने जिस दवा उम्मीदवार तत्व को अलग किया है, वह काइनेज को बाधित करने के साथ-साथ उसकी सघनता को कम करने में भी प्रभावी पाया गया है। डॉ शेखर सी मांडे महानिदेशक सीएसआईआर ने इस उपलब्धि पर आईआईआईएम के शोधकर्ता संदीप भराटे, सोनाली भराटे, दिलीप मोंढे, शशि भूषण और सुमित गांधी की सराहना की है, जो डॉ राम विश्वकर्मा के नेतृत्व में इस अध्ययन में शामिल थे। इन शोधकर्ताओं ने अग्नाशय के कैंसर के खिलाफ चिकित्सीय परीक्षणों के लिए विनियामक अनुमोदन प्राप्त करने से पहले करीब एक दशक तक अनुसंधान किया है।
अग्नाशय का कैंसर दुनिया के सबसे आम कैंसर रूपों में 12वें स्थान पर है, लेकिन यह कैंसर से होने वाली मौतों का चौथा प्रमुख कारण है। भारत में अग्नाशय के कैंसर की दर प्रति एक लाख पुरुषों पर 0.5-2.4 और प्रति एक लाख महिलाओं पर 0.2-1.8 है। वैश्विक रूपसे यह सालाना एक लाख से अधिक मौतों का कारण बनता है। इस कैंसर को अनुपचारित कैंसर के प्रकार में से एक माना जाता है, क्योंकि इसका निदान बहुत देर से हो पाता है। अग्नाशय के कैंसर के उपचार के लिए दवाओं की कमी भी एक समस्या है। गौरतलब है कि इन दिनों कैंसर पर कई शोध अध्ययन सामने आए हैं, जिनमें मुख और जीभ के कैंसर दवा विकसित की गई हैं और दावा है कि ये दवाएं इन कैंसरों का समुचित इलाज हैं।

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