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निचली अदालतों में सुधार की जरूरत है-प्रधानमंत्री

मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों का संयुक्त सम्मेलन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 07 April 2013 09:27:52 AM

manmohan singh lighting the lamp to inaugurate the joint conference of chief ministers and chief justices of high courts

नई दिल्‍ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि तेजी से न्याय दिलाने के लिए निचली अदालतों में सुधार की जरूरत है। उन्‍होंने मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्र का निचली अदालतों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए राज्य सरकारों को अधिक राशि देने का आश्वासन दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सम्मेलन कई मायनों में सर्वोच्च स्तर पर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच विचार-विर्मश का अनूठा अवसर है, ताकि देश में न्याय प्रदान करने की सशक्त व्यवस्था निर्माण के लिए हम सब मिलकर तौर तरीकों का पता लगा सकें। उन्‍होंने कहा कि यह अंत्यत राष्ट्रीय महत्व का कार्य है, जिस पर तत्काल ध्यान दिया जाना जरूरी है, चार वर्ष के अंतराल के बाद ऐसा सम्मेलन आयोजित किया गया है, इस दौरान शीघ्र और कम खर्च पर न्याय उपलब्ध कराने की और अधिक जरूरत महसूस की गई।
प्रधानमंत्री ने संविधान में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुरूप न्याय की भावना को कार्यरूप देने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की सराहना की। उन्‍होंने कहा कि भेद भाव नहीं करने, सामाजिक न्याय, नागरिक स्वतंत्रता के प्रति समग्र और अडिग प्रतिबद्धता संविधान की आत्मा के प्रमुख तत्व हैं, जिनसे समाज और राष्ट्रीय आत्मा की आवाज़ को स्वरूप देने में उल्लेखनीय योगदान मिला है, सर्वोच्च न्यायालय ने मूलभूत अधिकारों और राज्य की नीति के निर्देशक सिद्धांतों को कानूनी सशक्तीकरण का घोषणा पत्र मानते हुए बार-बार संवैधानिक मूल्यों और आदर्शों में संरक्षक की इसकी भूमिका का सही ठहराया है।
उन्‍होंने कहा कि किसी भी प्रगतिशील राष्ट्र और न्यायपूर्ण समाज के लिए नागरिकों को सशक्त बनाकर और न्याय तक उनकी पहुंच बनाना महत्वपूर्ण माना गया है, हमें मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे कानून राज्यों के लिए यह कर्तव्य तय करें कि मानवीय अधिकारों का सम्मान और रक्षा कर उन्हें अमल में लाना चाहिए, इसके अलावा न्याय की प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया से उपेक्षित वर्ग को अलग नहीं रखा जाना चाहिए, साथ ही हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारे नागरिकों के दैनिक जीवन पर लागू कानून स्पष्ट, स्थिर और तर्कसंगत होने चाहिएं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब न्यायिक सुधारों और कानूनी प्रक्रिया में सुधार की तत्काल मांग महसूस की जा रही है, तब हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विवेक और तर्क की आवाज़ तात्कालिक आवेश में दब न जाए, कानून और प्राकृतिक न्याय के मूल और समय पर खरे उतरे सिद्धांत शोरशराबे में कमजोर नहीं होने चाहिएं, ऐसा शोरशराबा अक्सर हमारे राजनैतिक प्रवचन में शामिल होता है और कई बार तर्क और न्याय की अपीलों को डुबो देता है। दिल्ली में हाल की सामूहिक बलात्कार की त्रासदी पर राष्ट्रीय आक्रोश हमें अपने कानून और न्याय प्रदान करने की प्रणाली के बारे में आत्म चिंतन करने को मजबूर करता है लेकिन हमें अपनी कानूनी प्रणाली में कुछ खामियों पर वेदना की भावना को भी हावी नहीं होने देना। खुशी की बात है कि सम्मेलन की कार्यसूची में लिंग भेद के मुद्दों पर न्याय पालिका को जागरूक बनाने का विषय भी शामिल है।
उन्‍होंने कहा कि वर्तमान में विभिन्न अदालतों में तीन करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं और इनमें से 26 प्रतिशत पांच वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। अक्तूबर 2009 के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में स्वीकार किए गए वक्तव्य और कार्य योजना में न्यायिक सुधार के दो प्रमुख लक्ष्य तय किए गए थे। ये थे-न्याय प्रदान करने की प्रणाली में लंबित मामलों और देरी में कमी लाकर न्याय तक पहुंच बढ़ाना और संरचना संबंधित परिवर्तनों तथा कामकाज के मानदंड और सक्षमता तय करने से जवाबदेहता बढ़ाना। सम्मेलन ने तत्काल अमल के लिए नौ पहल का सुझाव दिया था। इनमें से कुछ पर अमल किया गया और कुछ पर अमल की तैयारी की जा रही है। सरकार ने अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में कमी लाने के लिए न्याय विभाग में न्याय प्रदान करने और कानूनी सुधार के राष्ट्रीय सुधार मिशन की स्थापना की है और न्यायालयों की उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय रूपरेखा विकसित करने के वास्ते राष्ट्रीय न्यायालय प्रबंधन प्रणाली स्थापित की है। इस रूप रेखा से गुणवत्ता के लिए न्यायालयों के लिए कामकाज के मानक और समय सीमा निर्धारित की जाएगी। न्यायिक प्रक्रियाओं को इस्तेमालकर्ताओं के लिए सुविधाजनक बनाने के वास्ते केस मैनेजमेंट सिस्टम भी विकसित किया जाएगा।
उन्‍होंने कहा कि न्याय प्रदान करने के लिए जजों की संख्या में काफी बढ़ोतरी किये जाने की जरूरत है, वर्तमान में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 15.5 जजों का अनुपात दरअसल बहुत अपर्याप्त है, इस अनुपात को बढ़ाना होगा, ताकि लंबित मामलों और उनके निपटान में हो रही देरी की समस्या का हल निकाला जा सके। इस बारे में राज्य सरकारों को पहल करनी होगी। उन्‍होंने मुख्यमंत्रियों से अपील की कि वे इस महत्वपूर्ण पहल में पूरा समर्थन दें। केंद्र सरकार की ओर से यह विश्वास दिलाया कि निचली न्यायपालिका के बुनियादी ढाँचे के लिए राज्य सरकारों को मिलने वाली राशि में समुचित बढ़ोतरी की जाएगी। उन्‍होंने 14वें वित्त आयोग से आग्रह किया कि न्यायिक क्षेत्र के लिए अलग से राज्य सरकारों के लिए राशि तय की जाए, इसके अलावा वे फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन के लिए राशि तय करें, इन अदालतों से न केवल घृणित अपराधों के मामलों बल्कि वृद्धों, महिलाओं और बच्चों जैसे कमजोर वर्ग के प्रति हो रहे अपराधों के मामलों में तेजी से मुकदमा चलाया जा सकेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका ने मिलकर सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की सक्षमताओं के लिए अदालतों को निवेश में महत्वपूर्ण प्रगति करने में मिलकर काम किया है। सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों और 14249 जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में आईसीटी बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और उच्च न्यायालय पूरे तालमेल से काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड इस परियोजना का महत्वपूर्ण नतीजा होगा, जिससे देश भर में वास्तविक तौर पर लंबित मामलों के आँकड़ों के संकलन का अनूठा माध्यम विकसित होगा, इससे लोगों को मुक़दमों के बारे में सूचना मिलेगी और मामलों के बेहतर निपटान और प्रबंधन के ज़रिये अदालतों में सुधार लाया जा सकेगा। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड में निचली अदालतों के कामकाज में परिवर्तन लाने और निचली अदालतों में बड़ा सुधार तथा लोगों को न्याय प्रदान करने की व्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार लाने की क्षमता है। उन्‍होंने सम्मेलन के आयोजन की पहल करने के लिए मुख्य न्यायाधीश अल्‍तमश कबीर और अपने कानून मंत्री डॉ अश्विनी कुमार को बधाई दी।

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