स्वतंत्र आवाज़
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मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को सबक

भारतीय मुस्लिम महिलाओं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त

तीन तलाक पर कोर्ट के फैसले से बोर्ड औंधे मुंह गिरा

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 10 May 2017 05:21:57 AM

paves the way for the liberation of indian muslim women

इलाहाबाद/ नई दिल्ली। तीन तलाक और हलाला भारत के मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के गले की हड्डी बन गया है और वह दिन दूर नहीं दिखता है, जब भारत के मुसलमानों और भारतीय संविधान के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कोई अहमियत नहीं रहेगी। पूरा देश तीन तलाक और हलाला के‌ खिलाफ है और अब तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी खुलकर कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश के संविधान से ऊपर नहीं है। आगरा के एसीजेएम के 28 नवंबर 2016 को पति को भेजे गए समन को सही ठहराते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आकिल जमील की अपील और आगरा की दारुल इफ्ता जामा मस्ज़िद के कथित फतवे को दरकिनार कर दिया है। आकिल जमील ने पत्नी सुमायला को आठ नंवबर 2015 को तीन बार बोलकर तलाक दे दिया था और सुमायला ने पति के खिलाफ उत्पीड़न और दहेज उत्पीड़न की थाने में एफआईआर करा दी थी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में तलाक के रिवाज़ का पास देते हुए आकिल जमील ने अदालत से कहा था कि एफआईआर रद्द की जाए और समन वापस लिया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर जो कहा है वह सारे देश ने सुन लिया है। आकिल जमील को कोई राहत नहीं मिली अलबत्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अहमियत पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की तलवार और लटक गई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का तीन तलाक पर आया फैसला मुसलमानों के लिए एक बड़ा संदेश है, जबकि अभी सुप्रीमकोर्ट का अंतिम फैसला आना बाकी है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक और उससे जुड़े मामलों पर जबसे अपनी राय दाखिल की है, भारत का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने अस्तित्व और विघटन की राजनीति पर उतर आया है। भारत सरकार का नज़रिया बिल्कुल साफ है कि वह तीन तलाक के कतई खिलाफ है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है, जिसके मद्देनज़र भारत सरकार अंतिम रूपसे सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पालन कर सकती है। भारत सरकार ने तीन तलाक पर जिस तरह अपना रुख साफ किया है, उससे तो यही लगता है कि सुप्रीमकोर्ट तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों पर कड़ाई से रोक लगाता है तो बहुत ही अच्छा है, अन्यथा भारत सरकार पूरी तरह से तीन तलाक, हलाला और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अहमियत को कानूनी रूपसे खत्म कर देने के लिए तैयार बैठी है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन तलाक पर फैसले, सुप्रीमकोर्ट में तीन तलाक पर सुनवाई और भारत सरकार की तीन तलाक पर प्रकट की जा चुकी मंशा के फलस्वरूप भारतीय मुस्लिम महिलाओं को यह दोज़ख से निकालने की बड़ी पहल मानी जा रही है, इसपर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और तीन तलाक एवं हलाला पसंद लोग तलाक के तौरतरीकों के पक्ष में तरह-तरह से दलीलें और सरकार को धमकियां देने पर उतर आए हैं, जिनकी सब तरफ आलोचनाएं ही हो रही हैं, उनके तलाक के तर्क कटते जा रहे हैं, जिससे माना जा रहा है कि मुसलमानों में तीन तलाक और हलाला अब गुज़रे ज़माने की यातनाओं की कहानी बनकर रह जाएगा। भारतीय मुस्लिम महिलाएं उन्हें इस दोज़ख से बाहर निकलने के लिए सब तरफ की पहलों से बहुत खुश हैं उनके बयान आ रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि वे भी सम्मान, अधिकार और अपने नारी होने के महत्व को इज्ज़त और खुले दिल से जी सकेंगी।
भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और देश के उलेमाओं का एक ना एक दिन यही हाल होना था कि एक समय बाद उनकी कोई परवाह नहीं करेगा। भारत में अनेक बेहतरीन तंज़ीमें, नरमपंथी और सुधारों के पक्षधर उलेमा मौजूद हैं, लेकिन आज उनकी कोई नहीं सुन रहा है, उन्हें बोलने ही नहीं दिया जाता है। भारतीय सरकारों को अपनी धौंस में रखने की सफल कोशिशें करता आ रहा पर्सनल लॉ बोर्ड और देश की मस्ज़िदों में नमाज़ अदा कराने वाले कुछ मौलाना, मौलवी और उलेमा यह ही भूल गए थे कि भारत में एक कानून है, देश कानून से चल रहा है, जिसकी ज़द में हर कोई है और उससे ऊपर कोई भी पर्सनल लॉ नहीं है और जिस दिन सरकार या भारतीय सुप्रीमकोर्ट ने इसका संज्ञान ले लिया तो उनका उससे बुरा दिन कोई और नहीं होगा। भारतीय मुस्लिम ‌महिलाओं को तीन तलाक और हलाला ने जिस तरह घुट-घुट कर मरने को मजबूर किया है, उसका यह हस्र होने का समय आ गया है कि भारत के तलाक और हलाला पसंद मुस्लिम धर्मगुरूओं का आम मुसलमानों और खासतौर से मुस्लिम महिलाओं में कोई भय नहीं रहेगा, सबकुछ भारतीय संविधान के अनुसार तय होगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन तलाक से जुड़े आगरा के मामले में स्पष्ट टिप्पणियां की हैं। तीन तलाक और फतवे को लेकर कोर्ट ने कहा है कि इस नाम पर मुस्लिम महिलाओं सहित किसी के भी मूल अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भारत के संविधान से ऊपर नहीं है। आकिल जमील का तर्क था कि चूंकि सुमायला को तलाक दिया जा चुका है, जिसके बाद वह स्वतंत्र है और तीन तलाक के बाद दर्ज मामले में उसे समन करने का आदेश सही नहीं है, इसलिए उसके खिलाफ दहेज उत्पीड़न की एफआईआर को रद्द किया जाए। आकिल जमील के तर्क को हाईकोर्ट ने नहीं माना। तलाक दे दी गई आगरा की मुस्लिम सुमायला के निजी जीवन में न्याय की रौशनी दिखाते हुए हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि जो समाज महिलाओं का सम्मान नहीं करता, उसे सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता।
हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ केवल संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है, ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है, जो न्याय व्यवस्‍था के विपरीत हो, फतवे को कानूनी बल प्राप्त नहीं है, जिसे मुस्लिम महिलाओं पर जबरन नहीं थोपा जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई इसे लागू करता है तो वह अवैध है, एसीजेएम आगरा का समन आदेश सही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में खलबली मची हुई है, क्योंकि आदेश से सुप्रीमकोर्ट में तलाक पर चल रही सुनवाई को कानूनी बल मिल गया है। ध्यान रहे कि मुसलमानों में तीन तलाक या दहेज उत्पीड़न के अनेक मामलों में अदालतों का नज़रिया मुस्लिम महिलाओं के सम्मान और उनके अधिकारों के पक्ष में रहा है। शाहबानो का केस भी ऐसा ही था, जिसे कांग्रेस की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने कानून में संशोधन करके पलट दिया था। यदि शा‌हबानो का कोर्ट का फैसला लागू कर दिया गया होता तो भारत में मुस्लिम ‌महिलाओं के लिए भी यह स्वर्णिमकाल होता।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कल फिर मुस्लिम समाज से कहा है कि वे तीन तलाक के मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होने दें और समुदाय के किसी अग्रणी संगठन को इस दिशा में सुधार के लिए नेतृत्व की भूमिका निभाएं। नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेताओं से बातचीत करते समय यह बात कही। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेताओं ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी। इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि उलेमाओं के प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा है कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत सद्भावना और मेल-जोल में है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार को नागरिकों में भेदभाव का कोई अधिकार नहीं है और भारत की विशेषता विविधता में एकता की है। तीन तलाक के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोहराया कि मुस्लिम समुदाय को इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होने देना चाहिए। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से इस दिशा में सुधार शुरू करने की जिम्मेदारी लेने को भी कहा।
उलेमा प्रतिनिधिमंडल ने तीन तलाक के मुद्दे पर प्रधानमंत्री के रुख की सराहना की है। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति खत्म होने के कगार से थर्राए माकपा नेता सीताराम येचुरी ने एक बयान दिया था कि तीन तलाक के खिलाफ प्रधानमंत्री का अभियान एक सांप्रदायिक मुहिम है। प्रधानमंत्री ने इसका भी जवाब देते हुए कहा कि भारत में नई पीढ़ी को उग्रवाद की वैश्विक बयार का शिकार नहीं होने देना चाहिए। नरेंद्र मोदी की सोच की तारीफ करते हुए उलेमा प्रतिनिधिमंडल ने उम्मीद जताई कि जनता में उनके प्रति जो राष्ट्रव्यापी विश्वास है, वह समाज के सभी तबकों की समृद्धि और कुशलता सुनिश्चित करेगा। उलेमाओं ने यह भी कहा कि मुस्लिम समुदाय ‘न्यू इंडिया’ के निर्माण में बराबर का साझेदार बनना चाहता है। उलेमाओं ने कहा कि आतंकवाद एक बड़ी चुनौती है उन्होंने इसके खिलाफ अपनी पूरी ताकत से लड़ने का संकल्प व्यक्त किया।
भारत सरकार और देशवासियों ने हमेशा चाहा है कि मुस्लिम उलेमा या पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक या हलाला को रोकने के लिए खुद कदम उठाए, लेकिन मुस्लिम उलेमा या पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने वोट बैंक की धौंस से भारत सरकार को डरा दिया और चुप कर दिया, मगर भारत में हुए प्रचंड राजनीतिक परिवर्तन ने इनकी चूलें हिला दी हैं, नतीजतन बोर्ड और उलेमा बैकफुट पर हैं, कोई भी इनकी ध‌मकियों में नहीं आ रहा है और जिस प्रकार सामाजिक हालात करवट लेते जा रहे हैं, उससे भारत में मुस्लिम राजनीति टुकड़े-टुकड़े हो जानी तय मानी जा रही है, जिसमें भारत के राजनीतिक दलों के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति भी कतई संभव नहीं हो सकेगी।

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