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भूमंडलीकरण और हिंदी-कविता पर व्याख्यान

मानवता के पक्ष में खड़ी हो कविता-डॉ बाबू जोसफ

मलय पानेरी

Friday 18 January 2013 04:11:46 AM

उदयपुर। केंद्रीय हिंदी निदेशालय की ओर से आयोजित प्राध्यापक व्याख्यानमाला कार्यक्रम के अंतर्गत दिसंबर में माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसरफेसर बाबू जोसफ का व्याख्यान हुआ। भूमंडलीकरण और हिंदी-कविता विषयक व्याख्यान में प्रोफेसर बाबू जोसफ ने कहा कि आज जब विश्व गांव की परिकल्पना साकार हो रही है, ऐसे में साहित्य की चुनौतियां और भी बढ़ गई हैं। कुमार अंबुज, वेदव्रत जोशी, राजेश जोशी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि की कविताओं पर सविस्तार बातचीत करते हुए डॉ जोसफ ने कहा कि आज कविता की सबसे बड़ी आवश्यकता मानवता के पक्ष में खड़े होने की है। यह सच है कि कविता अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि सुखाड़िया विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग के अध्यक्ष और आचार्य प्रोफेसर माधव हाड़ा ने कहा कि समय के साथ आ रहे बदलावों के प्रति यदि हम नकारात्मक रूख रखते हैं तो भी परिवर्तन होकर रहेगा, हमारे अवचेतन में आत्मसातीकरण की प्रवृत्ति है, लेकिन बाहरी रूप से विरोध भी जारी रहता है, ऐसा नहीं होना चाहिए। डॉ एसके मिश्रा ने हिंदी-कविता पर बाजारवाद के प्रभाव की चर्चा की। उन्होंने कहा कि बाजार आज की व्यवस्था का सच है, इसे स्वीकार करना ही होगा। कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ प्रदीप पंजाबी ने कहा कि आज हम बाजार मुक्त समाज की कल्पना नहीं कर सकते हैं, आज के आर्थिक युग में बाजार हमारी आवश्यकता भी है।
विभागाध्यक्ष डॉ मलय पानेरी ने विषय-परिवर्तन करते हुए कहा कि भूमंडलीकरण का प्रभाव आम आदमी पर भी पड़ रहा है, तो इससे मनुष्य सापेक्ष साहित्य के मुक्ति का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ ममता पालीवाल ने भूमंडलीकरण और साहित्य के अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला। डॉ राजेश शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कविता-रचना में निरंतर हो रहे परिवर्तनों को आत्मसात् करने पर बल दिया।

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