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बच्चों का साहित्य-भवन

राष्ट्रबंधु

Friday 21 December 2012 07:13:52 AM

आओ बच्चो! बालकाव्य का सुंदर भवन दिखाए;
कैसे बना विशाल-कहानी इसकी तुम्हें सुनाए।
जब से ममता भरी लोरियां हम मां की सुनते हैं-
परी-लोक की मधुर कथाएं मन ही मन गुनते हैं;
सूर तथा तुलसी ने मिलकर जब से लीला गाई;
पड़ी भवन की नींव तभी से सबने खुशी मनाई।
श्रीधर, श्री हरिऔध आदि ने साथी कई जुटाए
ईंटा गारा चूना लाकर खम्भे गये उठाए
पण्डित बदरीनाथ भट्टजी 'बालसखा' बन आए।
'शिशु' लाए आचार्य सुदर्शन कवि लेखक उपजाए।
पण्डित रामनरेश त्रिपाठी ने पहनाई माला।
शरण रामलोचन ने 'बालक' से कर दिया उजाला।
बनने लगा भवन फिर ऊंचा बढ़िया शोभाशाली।
कर श्रमदान बढ़ाई सबने इसकी छटा निराली।
कविवर सोहनलाल द्विवेदी बना राष्ट्र-कविताएं-
लिखने लगे बालकों के हित नई-नई रचनाएं।
बच्चो! पढ़ना 'बाल-भारती', 'बिगुल', 'बांसुरी', 'झरना;'
'दूध बताशा', 'नेहरू चाचा' याद ध्यान से करना।
निरंकार सेवक जी ने तो बना दिए दरवाजे-
जिनसे होकर बच्चे आते, बजा-बजा कर बाजे।
ये 'मुन्ना के गीत' सुनाते, 'माखन मिसरी' देते।
'दूध जलेबी', 'रिमझिम' से भी सबका मन हर लेते।
चन्द्रपाल यादव 'मयंक' जी बच्चों की महफिल में-
बच्चे बन जाते हैं बिलकुल, बस जाते हैं दिल में।
'राजा बेटा', 'हिम्मतवाले' 'बिगुल बजा' रचनाएं;
'सैर सपाटा', 'वीर सेठानी,' सभकक्ष सजवाएं।
कवि 'अशोक' जी की रचनाएं ऊंची मीनारें हैं-
जिन पर 'तितली' मंडराती है, सुरभित दीवारें हैं।
देवसरे हरिकृष्ण रंगीले, गुब्बारे लटकाते।
सब 'सफेद रसगुल्ला' खाकर, चट चट्टी चटकाते।
'स्वर्ण सहोदर' स्वर्ण-कलश हैं 'विभु' का यश अनुपम है।
बच्चों के साहित्य-भवन में इनकी कृति उत्तम है।
श्री योगेन्द्रकुमार बनाते, चित्र विचित्र अनोखे।
शब्द-चित्र की चहल पहल में कार्टून हैं चोखे।
'मधुर' मधुर हैं बड़े, 'प्रेम' जी से उद्यान हरा है।
विष्णुकांत पांडेजी ने भी वैभव-ज्ञान भरा है।
रामवचन 'आनंद', 'विकल', 'राकेश', 'विनोद', 'कलाधर'।
श्री 'अनंत' चौरसिया, 'दीपक' का सब करते आदर।
बहिन 'सुभद्रा' और 'सुमित्रा', 'शकुंतला', औ 'सुषमा'-
सजा आरती थाल पूजतीं, इनकी कहीं न उपमा।
बच्चों के साहित्य-भवन में, अनुपम उजियारी है।
नाथ सिंह ' श्री, बच्चन, दिनकर की संख्या भारी है।
बालसखा बन बालसखा बच्चों के मन को भाता।
'बाल भारती', 'अमर कहानी' 'मनमोहन' 'मनमोहन' इठलाता।
'चन्दा मामा', 'चुन्नू मुन्नू', 'बालक' मन बहलाता।
यहां 'पराग' महकता रहता, 'राजा भैया' गाता।
ताजमहल से बढ़कर सुंदर, उच्च हिमालय जैसा।
बच्चों का साहित्य-भवन है, अनुमप लाल किले-सा।
इसके भीतर राजा रानी, रहते राज-पुरोहित।
जनता रहती, पंडित रहते, होता है सबका हित।
इसके पहरेदार निरंतर इसकी करते रक्षा।
एक बार तो देखा आकर सबसे सुंदर कक्षा।

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