Saturday 21 June 2025 06:50:35 PM
दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। भारत के विभाजन से बने पड़ौसी देश पाकिस्तान के निर्माण की कहानी पाकिस्तान के ‘लाल टोपी’ के नाम से विख्यात जैद हामिद की ज़ुबानी। जी हां! यद्यपि ‘लाल टोपी’ जैद हामिद ने अकेले यह थ्योरी पेश नहीं की है, वास्तव में इसमें भारत के अनेक दिग्गज मुसलमान लीडर शामिल थे और आजभी चाहते हैं कि भारत इस्लामिक जेहाद से फिरसे इस्लामिक देश बन जाए। जैद हामिद की थ्योरी का भी निष्कर्ष यही हैकि हिंदुस्तान के स्वतंत्रता आंदोलन का उद्देश्य अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिलने केबाद हिंदुस्तान से छीनी गई इस्लामिक रियासत फिरसे स्थापित करना था, नाकि हिंदुस्तान को अंग्रेजों से आज़ाद कराकर हिंदुस्तान की सत्ता हिंदुओं (काफिरों) को सौंप देना था, मगर अफगानिस्तान के तत्कालीन इस्लामिक किंग मोहम्मद नादिर शाह का पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना और अल्लामा इकबाल को इस योजना में कोई सहयोग नहीं मिलने से हिंदुस्तान पर फिरसे इस्लामिक रियासत का उद्देश्य विफल हो गया और इन्हें इस्लाम धर्म पर आधारित ‘टू नेशन थ्योरी’ से पाकिस्तान देश के निर्माण पर संतोष करना पड़ा, जो आज एक विफल देश बनकर रह गया है। यह नज़रिया पाकिस्तान के एक इस्लामिक कट्टरपंथी, सामाजिक और पॉलिटिकल स्कॉलर और यूट्यूबर जैद हामिद का है, जो अक्सर पाकिस्तानी टीवी चैनलों की डिबेट में पाकिस्तानी फौज और इस्लामिक कट्टरपंथियों की भाषा बोला करता है। इस जैद हामिद की पाकिस्तानी फौज और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के तोते के रूपमें पहचान है। वह पाकिस्तानी फौज की पसंद हैं और पाकिस्तानी फौज उसकी जान है। जैद हामिद में ग़ज़ब की वाकपटुता है और इस्लामिक जेहाद गजवा-ए-हिंद से गैर मुसलमानों और खासतौर से भारत और उसमें भी केवल हिंदुओं पर ज़हर उगला करता है। वह इस्लामिक जेहाद के जरिए भारत के कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने का सपना देखता है।
पाकिस्तानी जैद हामिद ने अपने वीडियो में यह सिद्ध करने की कोशिश की हैकि आजादी के बाद फिरसे हिंदुस्तान पर इस्लामिक शासन इसलिए स्थापित नहीं हो पाया, क्योंकि अफगानिस्तान के पश्तून किंग मोहम्मद नादिर शाह पाकिस्तान के मुसलमानों से घोर नफरत करते थे, आज भी पश्तून अफगानी पाकिस्तान पर नहीं, बल्कि हिंदुस्तान पर भरोसा करते हैं। जैद हामिद कहता हैकि मोहम्मद अली जिन्ना और सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा नज़्म के रचयिता मोहम्मद अल्लामा इकबाल ने हिंदुस्तान के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अफगानिस्तान के किंग नादिर शाह की बहुत मिन्नतें कींकि हिंदुस्तान आजाद होने वाला है और उसपर फिरसे इस्लाम का शासन आने वाला है, लिहाजा वे जिस तरह हो सके उनके साथ आ जाएं, मगर किंग नादिर शाह उनके साथ नहीं आए। जैद हामिद का कहना हैकि अगर उस वक्त पाकिस्तान के निर्माण में अफगानिस्तान के किंग का साथ मिल जाता तो फिर एशिया और हिंदुस्तान पर हमेशा केलिए इस्लामिक शासन कायम हो गया होता। जैद हामिद के यूट्यूब चैनल पर संबंधित वीडियो को जरा ध्यान से सुनिए और उसके नज़रिए पर अपनी राय दीजिएगा। जैद हामिद ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना, मोहम्मद अल्लामा इकबाल और पाकिस्तान में इस्लामिक शासन के ख्वाब को कड़ी-दर-कड़ी जोड़कर सिद्ध किया हैकि कैसे जिन्ना और अल्लामा इकबाल अफगानिस्तान और पाकिस्तान को मिलाकर हिंदुस्तान को एशिया का इस्लामिक राष्ट्र बनाने में विफल हो गए।
जैद हामिद की इस थ्योरी को लोग बड़े गौर से सुनते हैं। जैद हामिद को कहने वाले कुछ भी कहें, लेकिन इतना तय है कि वह कंटेंट पर मजबूत पकड़ रखता है और उसे सिद्ध कर देता है। जैद हामिद का दूसरा सच यह हैकि वह पाकिस्तान में इस्लामिक जेहाद का गजवा-ए-हिंद के रूपमें भारत पर फुंकारता हुआ एक भुजंग है, जो सबसे ज्यादा ज़हर गैर मुसलमानों और खासतौर से हिंदुओं पर फेंका करता है। वह पाकिस्तान में बैठकर हिंदुस्तान पर इस्लामिक शासन का ख्वाब देखता है। भारत का कश्मीर उसके लिए जीने-मरने का सबब है, इसलिए जाहिर हैकि वह किन-किन की पसंद है और मुसलमान और पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और उसकी फौज उसे क्यों गले लगाती है। अपवाद को छोड़कर इस्लामिक इतिहास की यह कड़वी सच्चाई है, जिसे पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना और अल्लामा इकबाल जैसे इस्लामिक नेताओं के इरादों, हिंदुस्तान की आजादी को उसमें शामिल हिंदू मुसलमान के संदर्भ में जानना समझना बहुत जरूरी है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौर के कुछ मुस्लिम इतिहासकारों, नेताओं और इस्लामिक नेताओं के मनसूबों पर भी जरा गौर कीजिएगा, जो अंग्रेजों से आजादी के आंदोलन की सफलता के अंतिम चरण में ही हिंदुस्तान पर इस्लामिक राज स्थापित कर देना चाहते थे, जैसाकि उन्होंने अपनी तकरीरों, लेखों और किताबों में कहा है।
इस्लामिक लेखक मौलाना मौदूदी ने अपनी किताब मीनिंग ऑफ पाकिस्तान में पृष्ठ 51-53 पर कहा हैकि ‘हमतो पूरे भारत को ही इस्लामिक देश बनाना चाहते थे, यहां के मुस्लिम भारत की स्वतंत्रता के उतने ही इच्छुक थे, जितने दूसरे लोग, वह पाकिस्तान के निर्माण को हिंदुस्तान पर फिरसे इस्लामिक रियासत कायम करना एक साधन मानते हैं, उसे एक पड़ाव मानते हैं, मंजिल नहीं’। इतिहासकार एफके दुर्रानी ने अपनी किताब में पृष्ठ 53 पर कहा हैकि-‘पाकिस्तान का निर्माण इसलिए आवश्यक थाकि उसे पड़ाव यानी शिविर बनाकर संपूर्ण भारत को इस्लाम केलिए विजय किया जा सके’। कांग्रेस नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी किताब में पृष्ठ 51 पर कहा हैकि-‘भारत जैसे देश को जो एक बार मुसलमानों के शासन में रह चुका है, कभीभी त्यागा नहीं जा सकता, प्रत्येक मुस्लिम का कर्तव्य हैकि भारत पर खोई हुई मुस्लिम सत्ता को पुन: प्राप्त करने का प्रयास करे’। कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हकीम अजमल खां ने 1921 में खिलाफत कॉंफ्रेंस के अहमदाबाद अधिवेशन में भारत पर फिरसे इस्लामिक शासन की वकालत करते हुए खुलेतौर पर कहा थाकि-‘अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने की बात वह इसलिए करते हैंकि भारत में फिरसे मुस्लिम सत्ता को फिर से स्थापित किया जा सके।’ हकीम अजमल खां को उस समय भी फिरको में बंटे हिंदुओं के कारण भारत में इस्लामिक शासन स्थापित होने की जबरदस्त उम्मीद थी, जिसे अंग्रेजों ने विफल किया था, क्योंकि अंग्रेज हिंदुओं को मुरदार और यहां की हिंदू रियासतों को भौतिक सुखों की लोभी लालची मानते थे और हिंदू मुसलमानों के उकसावे में आकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते थे, जबकि अंग्रेज हिंदुओं के उतने विरुद्ध नहीं थे।
एफके दुर्रानी ने इस्लामिक राष्ट्र की इच्छा की पुष्टि करते हुए अपनी किताब में लिखा हैकि-‘संपूर्ण भारत हमारी पैतृक संपत्ति है और उसका अंग्रेजों से स्वतंत्रता आंदोलन के जरिए फिरसे इस्लाम केलिए विजय करना बहुत आवश्यक है’। लाहौर से निकलने वाली सर फजले हसन की पत्रिका ‘मुस्लिम आउटलुक’ ने सितंबर 1925 के अंकों में मुसलमानों में हिंदुस्तान को फिर से इस्लामिक राष्ट्र बनाने के विचार का खुला प्रचार किया। ‘मुस्लिम आउटलुक’ ने जो उस समय बड़ी संख्या में पढ़ी जाती थी, उसमें लिखा गया-‘अंग्रेज या तो राजी से ही भारत को मुस्लिम राज्य बनाने देंगे, अन्यथा उनके यहांसे जातेही यहांके मुसलमान अफगानों के सहयोग से हिंदुओं से तलवार के बलपर सत्ता हासिल कर लेंगे। ‘मुस्लिम आउटलुक’ का कहना थाकि ‘हिंदुओं के साझे में इस्लामिक राज्य संभव नहीं है, क्योंकि हिंदुओं से इस्लाम के अनुसार आचरण करने की आशा की ही नहीं जा सकती’। डॉ किचलू ने सन् 1925 में लाहौर में एक जनसभा में हिंदुओं को कठोर चेतावनी दी थीकि ‘सुनो मेरे प्यारे हिंदू भाईयों सुनो! तुम यदि हमारी तंजीम में रोड़ा अटकाओगे तो हम अफगानों या किसी दूसरे मुस्लिम देश की सहायता से भारत में इस्लामिक राज्य स्थापित कर लेंगे’। हामिद दलवाई का कहना थाकि भारत में इस्लाम का धर्मांतरण सर्वप्रथम आवश्यकता है, ताकि हिंदुओं का सपना भंग हो सके। क्या संसार में कोई ऐसा दूसरा स्वतंत्र देश होगा, जहां उसके नागरिक उसे शत्रु देश बताकर उसीकी भूमिपर बैठकर उसीकी संवैधानिक सरकार के विरुद्ध युद्ध जैसा आचरण करते रहें, एक वर्ग को अराजकता केलिए उकसाते रहें और संविधान में बदलाव के नामपर सरकार का विरोध करते हुए राज्यों के शासन में भी बने रहें?
इसका जवाब है-कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, राजद, आम आदमी पार्टी, वामपंथी, समाजवादी पार्टी, शिवसेना उद्धव। इनके राजनीतिक एजेंडों ने देश को आज ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है, जहां धर्मनिर्पेक्षता के नामपर विघटन का नंगा नाच हो रहा है। जैद हामिद ग़लत नहीं बोल रहा है, उसके कथन की यहां पुष्टि होती है। भारत की नई पीढ़ी जरा भारत पर मुसलमानों के वर्चस्व की तैयारियों को ध्यान से समझे, जो आज हर तरफ प्रासंगिक समझी जा सकती हैं। क्या यह सच नहीं हैकि अगर उस वक्त मोहम्मद अली जिन्ना और अल्लामा इकबाल के इस्लामिक राष्ट्र के प्लान पर अफ़गानिस्तान के किंग मोहम्मद नादिर शाह तैयार हो गए होते तो आजाद हिंदुस्तान पर फिर से इस्लाम का राज स्थापित हो जाता और फिर यहां मुसलमान के अलावा हिंदू या हिंदू संस्कृति नामका कहीं कोई परिंदा भी नज़र नहीं आता। भारतीय संस्कृति का इतिहास मटियामेट हो गया होता, लेकिन समय बहुत बलवान होता है, उसने अपना काम किया। अफगानिस्तान के इस्लामिक शासनकर्ता नादिर शाह ने मोहम्मद अली जिन्ना और अल्लामा इकबाल को कोई भाव नहीं दिया। माना तो यहां तक जाता हैकि अल्लामा इकबाल ने मोहम्मद नादिर शाह को यह प्रस्ताव दिया थाकि जल्द ही हिंदुस्तान अंग्रेजों से आज़ाद होने वाला है, जिसके बाद वह हिंदुस्तान पर इस्लाम के शासन की बागडोर संभालें। बहरहाल हिंदुस्तान का धर्म के आधार पर विभाजन हो गया और पाकिस्तान बन गया, मगर हिंदुस्तान पर इस्लामिक राज का जिन्ना और इकबाल का ख्वाब पूरा न होने का दंश पाकिस्तान आज भी झेल रहा है।
पाकिस्तान और हिंदुस्तान के मुसलमान कंवर्टेड मुसलमान कहलाते हैं। इस्लामिक दुनिया उन्हें असली मुसलमान मानती ही नहीं है। ये स्वयं भी स्वीकार करते हैंकि उनके पूर्वज हिंदू थे, जिस कारण वे न मुसलमानों के वफादार हैं और हिंदुओं के वफादार रहे हैं। कई इस्लामिक देशों ने इस बात को खुले तौरपर कहा है, इसीलिए पाकिस्तान की अपनी कोई ऐतिहासिक संस्कृति या पहचान नहीं है। पाकिस्तान के पास बलूचिस्तान, पंजाब, सिंध और खैबरपख्तून छोड़कर अपना कुछ नहीं है पंजाब को छोड़कर। पाकिस्तान जब बना तो मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी संस्कृति और प्राकृतिक संसाधानों से समृद्धशाली बलूचिस्तान को जबरन पाकिस्तान में शामिल किया था, लेकिन बलूचिस्तान एक पूर्ण इस्लामिक कल्चर होते हुए अपने को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं मानता। बलूचिस्तान आज भी अपने को एक देश मानता है। एक इस्लामिक कल्चर होने के बावजूद बलूचिस्तान के लोग भारत को अपना परम हितैषी मानते हैं, लेकिन पाकिस्तान को नहीं मानते। इस्लाम के नामपर पाकिस्तान का कब्जाया हुआ बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से सबसे ज्यादा समृद्धशाली है। वहां के जितने भी प्राकृतिक संसाधन हैं, उनका पाकिस्तान का पंजाब ही दोहन करता है या फिर एक सीपैक के जरिए चीन उनका दोहन करता है। बलूचिस्तान को कुछ नहीं मिलता, जिस कारण पाकिस्तान के भीतर विघटन की जबरदस्त लड़ाई है और बलूचिस्तान पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई लड़ रहा है।
अफगानिस्तान एक अलग देश और ऐतिहासिक ताकतवर इस्लामिक भाषा संस्कृति है। अफगानिस्तान की आज भी पाकिस्तान से बिल्कुल नहीं बनती है। अफगानिस्तान में बड़ी संख्या में पख्तून हैं, जिनकी पाकिस्तानियों से गहरी दुश्मनी चलती आ रही है और आएदिन दोनों देशों की सीमाओं पर इनमें खूनी झड़पें होती हैं। पाकिस्तानी मोहम्मद अली जिन्ना और अल्लामा इकबाल लाख कोशिशों के बावजूद इस्लाम के वास्ते अफगानिस्तान को कभीभी प्रभावित नहीं कर पाए। अफगानिस्तान एक इस्लामिक देश है, मगर उसकी संस्कृति भाषा जीवनशैली पाकिस्तान से कोई मेल नहीं खाती है। अफगानिस्तान एक इस्लामिक देश होनेके बावजूद हर स्थिति में भारत का एक परम हितैषी दोस्त है। दोनों देश के लोगों में अभिन्न मित्रता मिलना जुलना है। अफगानिस्तान के विकास में भी भारत का उल्लेखनीय योगदान है। अफगानिस्तान भी यह जानता और मानता हैकि भारत किसी भी दृष्टि से इस्लाम विरोधी नहीं है, जैसाकि पाकिस्तान हर मंच पर भारत के खिलाफ यह दुष्प्रचार किया करता है। भारत और पाकिस्तान में जब भी झड़पें होती हैं तो अफगानिस्तान भारत केसाथ ही खड़ा दिखता है। अब आती है पंजाबी संस्कृति। पाकिस्तान का यह दुर्भाग्य हैकि वह भी दो हिस्सों में बटी है। पंजाबी संस्कृति का एक हिस्सा भारत में है और दूसरा हिस्सा पाकिस्तान में है। पाकिस्तान के हिस्से वाला पंजाब पूरे पाकिस्तान पर राज करता है, जिससे पाकिस्तान के बाकी राज्यों में हाहाकार मचा रहता है। पाकिस्तानी सेना में भी पंजाब का वर्चस्व है।
बांग्लादेश केबारे में तो सब जानते ही हैं। यह मुसलमानों की एक भाषा संस्कृति है, जो इस्लाम को छोड़कर पाकिस्तान से कोई मेल नहीं खाती है। यह कभी पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था। इस बांग्ला संस्कृति के नेता शेख मुजीबुर्ररहमान थे। शेख मुजीबुर्ररहमान की ख्वाहिश पाकिस्तान का शासनकर्ता बनने की ही थी, जो पूरी नहीं होने पर उन्होंने विद्रोह कर दिया और सन 1971 में भारत के समर्थन से पूर्वी पाकिस्तान एक अलग देश बांग्लादेश बन गया। पाकिस्तान की अपनी कोई संस्कृति नहीं है। पाकिस्तान आज कंवर्टेड मुसलमानों के देश के रूपमें ही जाना जाता है, जिनकी दुनिया में कोई भी इज्जत नहीं है। दुनिया में मुसलमानों का यह एक भिखारी देश कहलाता है। पड़ोसी भारत से इसकी घोर शत्रुता है। यह भारत में इस्लामिक आतंकवाद का विख्यात पोषणकर्ता है। इस्लाम के नामपर भारत के मुसलमानों को भारत के हिंदुओं के खिलाफ भड़काया, उकसाया करता है, बम धमाके किया करता है और भारत के हिस्से वाले कश्मीर को अपना बताकर वहां हिंदुओं की सामूहिक हत्याएं कराता है। यही कारण हैकि दुनिया में और मुस्लिम देशों में भी पाकिस्तान एक गैर भरोसेमंद देश है। भारत की देखादेख इसने परमाणु बम बना रखा है, जिसकी वह आएदिन भारत को धमकी दिया करता है। भारत के शत्रु चीन से इसकी गहरी दोस्ती है, क्योंकि चीन भारत का दुश्मन है। पाकिस्तान की यह नियति बनकर रह गई हैकि उसके पास दूसरे देशों के टुकड़े तोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, मगर जैद हामिद और भारत के भी ज्यादातर मुसलमान पाकिस्तान को इस्लामिक देशों का नेता मानते हैं और उम्मीद करते हैंकि गजवा-ए-हिंद पर चलकर एकदिन पाकिस्तान भारत और इस्लामिक देशों पर परचम फहराएगा। जैद हामिद का यह वीडियो इस सच्चाई को बयां करता है। https://www.youtube.com/watch?v=NtSLwleFeqE&t=623s