कैट के कामकाज और खाली पदों पर नियुक्ति पर की चर्चा
लंबित मामलों को सुलटाना प्राथमिकता-जस्टिस रेड्डीस्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 6 July 2018 04:19:23 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल यानी कैट के नए अध्यक्ष जस्टिस एल नरसिम्हा रेड्डी ने पीएमओ, कार्मिक, लोकशिकायत एवं पेंशन विभाग में राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह से मुलाकातकर उनके साथ कैट के कामकाज से लेकर ट्रिब्यूनल में मौजूदा खाली पड़े पदों पर नियुक्ति जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की। डॉ जितेंद्र सिंह ने जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी से उम्मीद जताई है कि वे अपने अनुभव और प्रतिबद्धता से कैट के कामकाज और उसकी क्षमता को और अधिक मजबूत एवं सुदृढ़ करने में सफल होंगे। राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि कैट भारत सरकार का एक अहम हिस्सा है और सरकार कैट में देशभर में खाली पड़े पदों को तुरंत भरने की जरूरत के प्रति सचेत है और इसके लिए उचित प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी को हैदराबाद हाईकोर्ट में बतौर न्यायाधीश काम करने का लंबा अनुभव है और वे पटना हाईकोर्ट में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी ने प्रतिउत्तर में राज्यमंत्री से कहा कि कैट में लंबित मामलों को सुलटाना उनकी प्राथमिकता होगी और प्रशासन में काम कर रहे अधिकारियों और सदस्यों को संतोषजनक न्याय दिलाने की वह पूरी कोशिश करेंगे। डॉ जितेंद्र सिंह ने बताया कि इसका गठन 1985 में किया गया था और इसकी स्थापना के पीछे भारत सरकार में काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को अपनी शिकायतों और विवादों को लेकर अपनी समस्याएं दर्ज कराना और उन्हें अदालतों का चक्कर लगाए बिना समाधान दिलाना मुख्य उद्देश्य है। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की प्रमुख पीठ दिल्ली में है, इसके अतिरिक्त विभिन्न राज्यों में अतिरिक्त पीठें भी हैं। इस समय इसकी 17 नियमित पीठ और 30 डिविजन बेंच हैं। कैट में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य होते हैं, न्यायिक और प्रशासनिक क्षेत्रों से कैट के सदस्यों की नियुक्ति होती है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। इनकी सेवा अवधि 5 वर्ष या अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए 65 वर्ष और सदस्यों के लिए 62 वर्ष जो भी पहले हो तक होती है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कैट का कोई भी अन्य सदस्य अपने कार्यकाल के बीच में ही अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज सकता है।
कार्मिक प्रबंधन को नियंत्रित करने वाले नियमों और विनियमों की विस्तृत व्यवस्था के बावजूद भी कुछ सरकारी कर्मचारी कभी-कभी सरकार के निर्णयों से व्यथित हो जाते हैं, जिनसे संबंधित मामलों का निपटान करने में न्यायालयों को कई वर्ष लग जाते थे और इनपर मुकद्दमेबाजी बहुत महंगी थी। सरकार के निर्णयों से व्यथित कर्मचारियों को शीघ्र और सस्ता न्याय उपलब्ध करवाने के प्रयोजन से ही सरकार ने कैट स्थापित किया था, जो अब सेवा से सम्बंधित ऐसे सभी मामलों पर विचार करता है, जिनपर पहले उच्च न्यायालयों सहित उनके स्तर तक के न्यायालयों द्वारा कार्रवाई की जाती थी। कैट के पास कुछ खास ही सेवा क्षेत्र के मामलों में अधिकार है, जैसे-अखिल भारतीय सेवा का कोई भी एक सदस्य, संघ के किसी भी सिविल सेवा या संघ के तहत किसी भी सिविल पद पर नियुक्त एक व्यक्ति, रक्षा सेवाओं में नियुक्त कोई भी नागरिक या रक्षा से जुड़ा कोई भी एक पद किंतु रक्षाबलों के सदस्य, अधिकारी, सुप्रीम कोर्ट और संसद के सचिवालय के स्टाफ कर्मचारी कैट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं।