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यतीमखाने से अपने घरबार हुई हिना!

हिना जीवन के अनगित संघर्ष की जीती-जागती दास्तान

यतीमखाने में संरक्षण और सुखद वैवाहिक जीवन मिला

रज़िया बानो

हिना परवीन-hina parveen

लखनऊ। कहते हैं कि रिश्ते ऊपर से बनकर धरती पर आते हैं। 'हिना परवीन' उन खुशनसीब लड़कियों में से एक है, जिसने यतीमखाने में संरक्षण पाकर 26 अक्टूबर को अपने सुखद और वैवाहिक जीवन के सपने को पूरे होते देखा। अपनी संघर्षभरी आत्मकथा में उसने कभी नहीं सोचा होगा कि उसे और लड़कियों की तरह सम्मान और रीति-रिवाज़ के साथ डोली में बैठाकर रूख़सत किया जाएगा। एक ग़रीब और बचपन से ही अपनों से तिरस्कार पाई हिना प्रारम्भिक जीवन के अनगित संघर्षों की जीती-जागती दास्तान है। अपने जीवन के बाल्यकाल से ही घरेलू और सामाजिक उतार-चढ़ाव के दौर को जीती आ रही हिना किस तरह लखनऊ के अंजुमन इस्लाहुल मुस्लिमीन के बैतुन निस्वां यानि यतीमखाने में पहुंची, यह उसकी दास्तान-ए-ज़िंदगी को दीगर कोई नहीं जान पाएगा।
शादी में मांझा (उपटन) की रस्म और निकाह तक के सफर में हिना का आत्मविश्वास लौट आया और उसके आगे की खुशियां उसके चेहरे पर नज़र आ रही थीं। जाहिर है कि उसे आगे का सफर अपने शौहर के साथ पूरा करना है, जहां उसे अब कोई यतीम नहीं कहेगा। यतीम का यह दर्द हिना का कब से पीछा कर रहा था, वह किसी को भाई किसी को बहन किसी को चाचा या बुआ कहने के लिए तरसती रही थी, मगर अब उसे ये सारे रिश्ते मिल गए हैं। मैं उसी हॉस्टल में रहती हूं जहां से हिना की डोली उठी। मीडिया में काम करने की मेरी व्यस्तता और हॉस्टल में एक कड़े अनुशासन के बीच जाकर सबसे मिलना और उनकी दिनचर्या में शामिल होना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है, इसलिए अपनी सहयोगी लड़कियों के बीच में भावनाओं के आदान-प्रदान का भी समय निकल जाए तो बहुत बड़ी बात है।
हिना को बैतुन निस्वां में चार साल हो गए थे। कई दिन से हिना की शादी की चर्चा हॉस्टल की लड़कियों के बीच में थी और सभी ने इस मौके को देखने के लिए अपनी-अपनी तरह से मन बनाया हुआ था। दो साल से मैं हिना को देख रही थी। छह महीने पहले उसकी शादी की चर्चा शुरू हो गई थी। एक रोज़ यतीमखाने के सेकेट्री ज़फरयाब जिलानी ने वार्डेन को ख़बर की कि हिना के लायक दूल्हा ढूंढ लिया गया है, इसलिए उसके निकाह की तैयारियां शुरू की जानी हैं। हिना को इस खुशखबरी ने उत्साह से भर दिया और शुरू हुआ उसको बधाईयों का सिलसिला जोकि उसकी डोली उठने तक चलता रहा। हिना यूं तो कक्षा छह तक पढ़ी हुई है, लेकिन है बहुत हुनरमंद। घरेलू काम में उसका कोई जवाब नहीं है, वह अत्यंत सामाजिक है।
हिना में हुनर का जहां तक सवाल है तो कढ़ाई, बुनाई और सिलाई में उसने अपने को आत्मनिर्भर बना लिया है। यतीमखाने की वार्डेन, टीचरें और लगभग सभी लड़कियों के बारे में जानती हैं कि किसमें कितना और क्या हुनर है। यहां लड़कियों को अपनी शिक्षा बढ़ाने और अपने भीतर छिपी प्रतिभा को रोज़ी-रोटी से जोड़ने के लायक बनाने पर काफी ध्यान दिया जाता है, इसलिए हिना ने यहां के परिवेश में कक्षा छह तक पढ़कर बचपन में ही सीखे अपने हाथ के काम को भी जारी रखा। घरेलू स्तर पर खाली समय के लिए ऐसे काम काफी सहारा होते हैं और यदि इन्हें रोज़गार से जोड़ लिया जाए तो एक मध्यमवर्गीय परिवार की घर बैठे आय का ज़रिया भी बनते हैं। बहरहाल, हिना को अंजुमन की ओर से दिये जाने वाले ज़ेवरात, कपड़े और बुनियादी सामान के अतिरिक्त भी लोगों से दुल्हा-दुल्हन को तोहफ़े मिले हैं जिनमें सोने का सेट, हार, कड़े, नथ, पाज़ेब आदि लगभग बाईस जोडे़ कपडे़, टीवी, सोफ़ा सेट, अलमारी, सिंगारदान, डबल बेड, रज़ाई-गद्दा, तांबे, स्टील और फाइवर के बर्तन, ट्रंक, गैस चूल्हा, साइकिल, वाशिंग मशीन।
यतीमखाने की लड़कियों की शादी में भी ऐसे ही जरूरी घरेलू सामान दिया जाता है जैसे अन्य शादियों में मां-बाप हैसियत और परंपरा के अनुसार देते हैं। इस मौके पर मेहमान भी होते हैं जो अपनी सुविधानुसार कुछ न कुछ देते हैं। यतीमखाने की टीचरें और सदस्य भी तोहफे देकर लड़की को रूख़सत करते हैं। किसी भी लड़की के लिए यह समय बहुत उम्मीदों भरा और भावना प्रधान होता है, ख़ासतौर से उस लड़की के लिए जिसका कि यतीमखाना ही एक सहारा रहा हो। यहां तो उसे सभी में सारे रिश्ते-नाते दिखाई दिए हैं। हिना के लिए ऐसी ही स्थितियां रही हैं। उसकी मेंहदी के अवसर पर उसे सहेलियों का असीम प्यार और साथ मिला। यतीमखाने की लड़कियों और स्टाफ ने हिना को घर जैसा वातावरण दिया था। हिना के चेहरे पर जहां अपने विवाह की खुशी दिखाई दे रही थीं तो दूसरी ओर उसमें एक टीस भी उभर रही थी, जिसमें उसको अपनी साथियों से बिछड़ने का भी मलाल था।
हिना को इस खास मौके पर अपने माता-पिता की बहुत याद आई, जिस कारण वो इस खुशी में थोड़ी उदास भी दिखी। हिना बाराबंकी की रहने वाली थी। वह अपने घर में सबसे छोटी थी, बचपन में ही मां के गुज़र जाने के कारण उसे उसकी नानी ने पाला था, इसलिए उसका अतीत बहुत परेशानियों से भरा है। नानी के भी गुज़र जाने से उसने और जिन परेशानियों का सामना किया उनसे परेशान होकर हिना को वह घर भी छोड़ना पड़ा। दूर के एक रिश्तेदार ने लखनऊ में सहारा दिया और कुछ दिन बाद उसे बैतुल निस्वां में भेज दिया, जहां उसे अपने भविष्य के सुखद रास्ते मिले। यहां आने के बाद हिना बैतुल निस्वां की लड़कियों में किसी की दोस्त, हमदर्द और उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गई। हिना को यहां से घर जैसा प्यार और आदर सम्मान मिला है। अंजुमन इस्लाहुल मुस्लिमीन, लखनऊ के तत्वावधान में चलाए जा रहे लड़कियों के 'घर' बैतुल निस्वां में हिना परवीन की शादी का कार्यक्रम अंजुमन के मौलाना हाशिम मियां फिरंगी महली हाल में रखा गया था।
हिना का निकाह बांसमंडी लखनऊ के रहने वाले मोहम्मद यासीन के साथ हुआ है, जो ईदगाह के नायब इमाम और अंजुमन के सदस्य मौलाना खालिद रशीद निज़ामुद्दीन मियां फिरंगी महली ने पढ़ाया। बैतुल निस्वां में तालीम और तरबियत हासिल करने वाली हिना सातवीं लड़की है, जिसकी शादी बैतुल निस्वां से हुई है। इससे पूर्व बैतुल निस्वां की छह बेसहारा लड़कियों की शादी अंजुमन इस्लाहुल मुस्लिमीन की जानिब से और लखनऊ के गणमान्य नागरिकों के सहयोग से हो चुकी हैं। ग्यारह मई 1999 को अंजुमन इस्लाहुल मुस्लिमीन के तत्वावधान में बैतुल निस्वां को स्थापित किया गया था। इस समय बैतुल निस्वां में छियालीस बेसहारा लड़कियां हैं, जिनकी शिक्षा-दीक्षा का पूर्ण प्रबंध अंजुमन इस्लाहुल मुस्लिमीन करता है। निकाह के बाद मेहमानों के लिए बारातियों के साथ खाने का भी प्रबंध किया गया था। निकाह में बड़ी संख्या में नगर के गणमान्य नागरिकों और महिलाओं ने भाग लिया।
अंजुमन इस्लाहुल मुस्लिमीन के ओहदेदारान, सदस्य और स्टाफ़ अंजुमन, मुमताज़ कालेज, इस्लामिया कालेज की प्रबंध समिति के पदाधिकारियों और इन कालेजों के शिक्षकों आदि ने निकाह समारोह में शिरकत की। इसमें शिरकत करने वालों में हाजी मुशर्रफ़ हुसैन, फज़ले आलम एडवोकेट, मोहम्मद सुलेमान, चौधरी शर्फुद्दीन, ज़फ़रयाब जीलानी एडवोकेट, आयशा सिद्दीकी, हमीद इक़बाल सिद्दीक़ी, सैय्यद हुसैन एडवोकेट अतिरिक्त महाधिवक्ता उप्र, मुहम्मद आरिफ़ नगरामी, मोहम्मद हसीन खां, सैयद क़फ़ील अहमद एडवोकेट, फज़लुल बारी, अनीसबाबू भाई, अब्दुस सलाम सिद्दीक़ी पूर्व प्रधानाचार्य, डॉ एनएच रहमानी, मुहीउद्दीन सिद्दीक़ी एडवोकेट, जावेद सिराज, नजम ज़फ़र एडवाकेट, कबीर अहमद एडवोकेट, दिलशाद हुसैन एडवोकेट, मसूद जीलानी, शफ़ात हुसैन, इंतेखाब आलम जीलानी, हम्माद अनीस नगरामी, गुफ़रान नसीम, मेहताब अली खां, एडवोकेट, हशमत अली खां एडवोकेट ने भी इस जोड़े को सुखद वैवाहिक जीवन का आर्शीवाद दिया।

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