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अखिलेश सरकार के सौ दिन पर दंगे का दाग़

लोगों में भारी नाराज़गी, स्‍थानीय प्रशासन से भी निराशा

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कोसीकलां-मथुरा। कोसीकलां का एक जून 2012 शुक्रवार का दिन यानि तिथि के हिसाब से निर्जला एकादशी और समय करीब दोपहर दो बजे। यह दिन और समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सरकार के लिए प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द की दृष्टि से गहन मंथन का विषय है या यह कहिए कि एक गंभीर चेतावनी है, जिसमें अखिलेश सरकार यदि ऐसे ही चेहरे और वोट देखकर आगे बढ़ी तो पूर्ण बहुमत के बावजूद उसका चलना मुश्किल हो जाएगा। राज्य में कुछ आवाज़े उठ रही हैं, जैसे-अखिलेश यादव सरकार, जिस प्रकार और जिस दृष्टि से कोसीकलां की घटना से निपट रही है, उसे देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि वह ऐसी ही और भी झड़पों और घटनाओं की भी प्रतीक्षा कर रही है, ताकि प्रदेश की जनता का ध्यान सरकार के महंगे वायदों और दिशाहीन कार्यप्रणाली से हटकर ऐसी घटनाओं में लग जाए और उसे यह कहने का बहाना मिल जाए कि राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता कानून व्यवस्‍था और सांप्रदायिक सौहार्द कायम करना है, जिसके बाद ही बाकी मामले देखे जाएंगे। बहरहाल अखिलेश यादव सरकार के सौ दिन के कार्यकाल पर कोसीकलां में गंभीर सांप्रदायिक दंगे का दाग़ लग गया है।
लखनऊ से कोसीकलां तक लोगों की जुबान पर है कि यदि स्‍था‌नीय प्रशासन दोनों पक्षों से सख्ती से निपटता तो यह मामला वहीं दफन हो गया होता, बाकी राज्य में भी इस प्रकार की वारदात से लोग डरते, लेकिन अखिलेश सरकार कोसीकलां दंगे के दोषियों को सबक सिखाने में पूरी तरह विफल रही है। लोगों का कहना है कि मायावती सरकार में तो सांप्रदायिक शक्तियां सर नहीं उठा सकीं, एक से एक शक्तिशाली गुंडे भी अपनी औकात में रहे। अखिलेश सरकार में गैंगस्टर, और सांप्रदायिक दंगा कराने वाले सरकार में बैठे हैं, जिन्हें आम जनता अच्छी तरह से जानती है और उनका अच्छे प्रशासन एवं लोगों की जान-माल की रक्षा या उनकी कठिनाईयों से कोई मतलब नहीं है। अखिलेश यादव सरकार का राज्य की कानून व्यवस्‍था और अपराधियों या सांप्रदायिक शक्तियों पर कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता है, जिसका एक प्रमाण सपा सरकार बनने के जश्न में हिंसक गुंडागर्दी के रूप में पहले दिन ही सामने आया और अब कोसीकलां सांप्रदायिक दंगे से निपटने में विफलता सबके सामने है। यह दंगा तुरंत कुचला जा सकता था यदि राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने इसे वोट बैंक न समझा होता, जिसकी विधानसभा से लेकर राज्य के और भागों में भी काफी निंदात्मक चर्चा है।
कोसीकलां का दंगा महा भयानक था और स्‍थानीय प्रशासन इस पर काबू नहीं कर पाया। स्‍थानीय प्रशासन के अधिकारियों ने भी शासन को नाराज़गी के भयवश सही सूचनाएं नहीं दी होंगी। दंगे के बाद जरूर यहां के बेकसूर लोग गंभीर धाराओं में जेल में ठूंसे जा रहे हैं। स्‍थानीय प्रशासन से वे अपनी पीड़ा बयान नहीं कर पा रहे हैं, आगजनी में फूंके गए उनके घर, दुकान और गोदाम, हत्या का कोई मुआवजा नहीं है बल्कि प्रभावित लोगों को प्रताड़ित जरूर किया जा रहा है। मीडिया ने कोसीकलां का सही तरह से नोटिस लिया होता तो उसमें अखिलेश यादव सरकार की कानून व्यवस्‍था एवं सुरक्षा प्रबंधन के दावों का पर्दाफाश होता, इस सरकार की विफलताएं सबके सामने होतीं। राज्य मुख्यालय पर भी कोसीकलां के सच को छिपाने की कोशिश की गई, जैसे समाचार चैनलों को संबंधों के आधार पर इस घटना से दूर रहने का ‘संदेश’ दिया गया हो। सरकार के सौ दिन सफलतापूर्वक पूरे होने की निर्लज्जता भरी खुशी मना रही सपा सरकार, कोसीकलां के सांप्रदायिक दंगे को ढकने की कोशिश कर रही है। इस सरकार के लिए इन सौ दिन में इससे बड़ी विफलता और क्या हो सकती है? अखिलेश सरकार ने कोसीकलां के भयानक दंगे को एक ऐसी राख से ढकने की असफल कोशिश की है, जिसके नीचे प्रचंड ज्वाला धधकी हुई है। मथुरा और उसके आस-पास का शहरी और ग्रामीण इलाका काफी तनावग्रस्त है।
कोसीकलां के सच को विपक्ष भी विधानसभा में उठाने में विफल ही रहा है। यही स्थिति विधान परिषद में भी देखी गई। दोनों सदनों में इस मामले में सरकार से माकूल जवाब क्यों नहीं लिया जा सका या क्या कारण रहे कि कोसीकलां दंगे के बाद वहां शांति स्‍थापना के स्‍थान पर निर्दोष लोगों के खिलाफ स्‍थानीय प्रशासन की मुकदमें कायम करने जैसी जबरदस्त उत्पीड़न की शिकायतें अनसुनी की जा रही हैं? कोसीकलां इलाके का थानेदार भी इससे निपटने के लिए पूरी तरह सक्षम था, यदि उसे ऊपर के राजनीतिक दिशानिर्देशों के दबाव से मुक्त रखा जाता। कोसीकलां में ऐसा ही हुआ है, कदाचित मुस्लिम समुदाय के वोटों को रिझाना के लिए।
घटनाक्रम देखिए! जुमे की नमाज़ के समय कोसीकलां में सामान्य जीवन अपनी रोजमर्रा की गति से बढ़ रहा था। दोपहर की नमाज़ समाप्त होने के पश्चात सब्जी मंडी में देवा नाम के एक व्यापारी ने एक ग्राहक को सामान दे कर सामान्यरूप से मस्जिद के नीचे रखे ड्रम के पानी से हाथ धो लिया। उसी समय मस्जिद से नीचे उतर रहे खालिद शेख ने व्यापारी देवा को ऐसा करते देख कर उसे फटकार दिया। देवा ने कहा भी कि अगर आपका पानी ख़राब हो गया हो तो मैं क्षमा मांगता हूं और ड्रम को दोबारा भरवा देता हूं। देवा ने उस ड्रम को पानी से भरवा दिया, मगर इसके बाद भी खालिद शेख की देवा से मारपीट शुरू हो गई और इस मारपीट ने कोसीकलां को आगजनी, हत्या, लूट और दंगे की आग में झोंक दिया।
बताया जाता है कि खालिद शेख को अन्य व्यापारियों ने काफी समझाने की कोशिश की थी, लेकिन उसने मस्जिद में बैठे अन्य मुसलमानों को भी बाहर बुला लिया और वहां इक्कठा हुए बाकी व्यापारियों के साथ मारपीट करता हुआ, मस्जिद में वापस चला गया। बताते हैं कि उसके बाद खालिद शेख ने कोसी नगर के मुस्लिम बहुल इलाके ‘निकासे’ में रहने वाले मुसलमानों को बढ़ा-चढ़ाकर सूचना भिजवा दी कि मस्जिद को हिंदुओं ने घेर लिया है और वे हमला कर रहे हैं। यहीं से इस विवाद ने और ज्यादा हिंसक तूल पकड़ लिया और कोसीकलां सब जगह सांप्रदायिक तनाव की ख़बर बन गया। राजनीतिक दल सक्रिय हो गए, दोनों समुदायों की ओर से माहौल तनावग्रस्त हो गया, सांप्रदायिक स्थिति को देख स्‍थानीय पुलिस और प्रशासन के लोग अपनी नौकरी बचाने लग गए एवं ऊपर से दिशानिर्देश लेने के कारण मामला फंस गया। एक जून से बीस जून तक कोसीकलां में व्यापारी अपनी दुकाने बंद किए रहे, प्रशासन ने इसमें कोई साथ भी नहीं दिया। आज की धर्मनिर्पेक्षता की परिभाषा के हिसाब से स्‍थानीय लोगों के खिलाफ गिरफ्तारियों और मुकदमें कायम करने की कार्रवाई तो लगातार जारी है ही।
अब यह भी जान लें कि मस्जिद के ड्रम में देवा के हाथ धो लेने से आहत हुए खालिद शेख कौन हैं। इनके बारे में कोसीकलां जानता है कि ये छह महीने भारत में और छह महीने सउदी अरब में रहते हैं। इनके बारे में यह जानकारी भी आम है कि ये सउदी अरब से कोसीकलां और उसके आसपास के क्षेत्रों की कुछ मस्जिदों के लिए हवाला के जरिये धन मुहैया कराते हैं। खालिद शेख पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट होने का भी आरोप है और इनके कांग्रेस और सपा के साथ प्रगाढ़ संबंध भी जगजाहिर हैं। मथुरा जिले के कोसीकलां के मुस्लिम बहुल इलाके ‘निकासे’ को कहने वाले ‘पाकिस्तान’ कहकर भी पुकारते हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब खालिद शेख का ‘संदेश’ निकासे पहुंचा होगा, तो वहां किस प्रकार की प्रतिक्रिया हुई होगी। गुमराह होकर बड़ी संख्या में मुसलमानों की एक भीड़ विभिन्न प्रकार के घातक हथियारों से लैस होकर सब्जी मंडी मस्जिद और निकासे के बीच हिंदूबहुल क्षेत्र ‘बल्देव गंज’ पहुंची और हिंसक झगड़ा शुरू हो गया।
निकासे की सीमा पर पंजाब नेशनल बैंक में घुस कर वहां की संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया और कहा तो ये भी जाता है कि लूटपाट का भी प्रयास किया गया। इस वारदात का पूरा विवरण बैंक के सीसीटीवी कैमरे में भी जरूर होगा कि वहां कौन घुसे थे और उन्होंने क्या-क्या किया। बैंक को आग के हवाले कर दिया गया। बैंक कर्मचारियों और ग्राहकों ने इधर-उधर शरण ले कर अपनी जान बचाई। कहा जाता है कि दंगाईयों ने निकासे सीमा पर स्थित लगभग सभी घरों में घुस कर ना सिर्फ तोड़-फोड़ और लूटपाट की, बल्कि महिलाओं से भी बड़ी अश्लीलता की। घरों के नीचे खड़ी कारों को आग लगा दी गई, कई घर जल कर खाक हो गए। बल्देव गंज और निकासे सीमा पर आरके गर्ग, गुड्डू हतानियां, किशन पंडित और प्रतीक जैन इत्यादि के घर, वाहन, दुकान और गोदाम में भारी आगजनी हुई। राहगीरों के वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया। अखिलेश सरकार के स्‍थानीय प्रशासन ने सपा के चुनाव पूर्व वादे के हिसाब से मुस्लिम बस्तियों में कैंप लगाकर एक दिन में ही बड़ी संख्या में पिस्तौल के जो लाइसेंस बांटे थे, कहते हैं कि उनका पूरा प्रयोग बल्देव गंज पर हुआ।
पुलिस प्रशासन प्रभावित स्थलों पर तो पहुंचा, मगर मूकदर्शक दिखाई दिया। लोगों में यहां मायावती सरकार याद की गई और कहा गया कि मायावती सरकार ने एक भी दंगा नहीं होने दिया, जिसने भी इसकी जुर्रत की उसे कड़ी सजा दी गई। उस सरकार में कहीं भी प्रशासन इस तरह मूक दर्शक नहीं देखा गया। कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव की सरकार में ऐसा होना ही था और आगे भी ऐसा ही होगा। कोसीकलां में ऐसा लग रहा था कि दंगा करने के लिए किसी बहाने की प्रतीक्षा थी। कोसीकलां में दंगा सुनकर ग्रामीण इलाकों से लोग अपनी बंदूकें और अन्य हथियार लेकर कोसीकलां पहुंचे और उन्होंने दंगाईयों का मुकाबला किया। सैनी मोहल्ले पर हमला हुआ, इसका विरोध करने वाले माली समाज के एक युवक सोनू को गोलियों से छलनी कर दिया गया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। दंगे के बाद सुरक्षा बलों की बूटों की आवाज़ें थीं आगजनी और तबाही का ही मंजर था।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोसीकलां में कितना बड़ी आगजनी, लूटपाट, हत्या का तांडव हुआ होगा। इस घटना के बाद प्रशासनिक क्षेत्र में भी वही हुआ जिसकी पहले से उम्मीद थी। लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए और कुछ को खुश करने के लिए दंगे के दौरान ड्यूटी पर तैनात सभी प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले कर दिए गए। अब नए अधिकारियों के नेतृत्व में दंगे की जांच शुरू की गई है जिसमें मुंह देखकर छापामारी की जा रही है। दंगे वाले दिन चाहे कोई कोसीकलां में रहा हो या ना रहा हो उसे भी आरोपी बनाया जाने लगा है। जिन लोगों का नुकसान हुआ है वो भी पुलिस रिकॉर्ड में दंगाई दिखाए गए हैं और दिखाए जा रहे हैं। आस-पास के देहात के अनेक हिंदू ग्राम प्रधानों एवं संभ्रांत हिंदुओं के खिलाफ भी एफ़आइआर दर्ज की गई हैं। नई महिला एसएसपी एम पद्मजा, डीएम आलोक तिवारी और आइजी जावेद अख्तर भी किसी न किसी दबाव में दिखाई दे रहे हैं।
सपा सरकार के मंत्री आज़म खान दौरा करने आए थे। आज़म खान के जाने के बाद उसी रात कोसीकलां के रिहाइशी इलाके आर्यनगर के एक व्यवसायी के घर और उसके नीचे दुकान को किसी ने जला दिया, जिससे व्यवसायी को लाखों का नुकसान हुआ। सुबह पुलिस आई और पीड़ित व्यवसायी परिवार से लिखवा ले गई कि ये आग शार्ट-सर्किट के चलते लगी थी। इस घटना की दूसरी रात को फिर एक और बनिया व्यवसायी के बाईपास स्थित दोना-पत्तल, मुंजवान, रस्सी और झाड़ू के गोदाम को आग के हवाले कर दिया गया। इस बार भी पुलिस सुबह ही आई और पुलिस ने उस व्यापारी पर दबाव देकर लिखवा लिया कि ये आग भी शार्ट-सर्किट के चलते लगी है, जबकि सत्यता यह थी कि इस गोदाम में ना तो कोई बिजली के तार की फिटिंग थी और ना ही कोई बिजली का कनेक्‍शन था। नगर के हिंदुओं में रोष अपने चरम पर है और उनकी परेशानी ये है कि अगर वे विरोध प्रदर्शन करें तो प्रशासन बराबर धमकी दे रहा है कि उनको रासुका लगा जेल में डाल दिया जायेगा।
सांप्रदायिक दंगे की प्रचंडता से अनभिज्ञ और चार-पांच दिन बाद आए नए डीएम आलोक तिवारी से न्याय, सुरक्षा, सहायता एवं निष्पक्ष जांच का अनुरोध करने गए वहां के संभ्रांत नागरिकों और व्यवसायीयों से उनका क्या कहना था, यह भी जान लीजिएगा-‘मेरा काम है नगर में शांति व्यवस्था बनाये रखना, यह मेरा काम नहीं है कि आप हिंदू और मुसलमान आपस में कोई राजीनामा करते हैं या नहीं, आप लोग बाजार खोलो या ना खोलो इससे मेरा कोई सरोकार नहीं है, तुम्हारे ऐसा करने से मेरी कोई तनख्वाह नहीं कट रही है, अगर मुझे कोई उपद्रव करते मिल गया तो मैं पहले उसे समझाऊंगा, यदि वो नहीं माना तो उसे डंडों से समझाऊंगा और अगर तब भी नहीं समझा तो उसको मैं गोली से उड़ा दूंगा।’ नगर के व्यापारियों ने प्रशासन के इस रवैये पर क्षुब्ध होकर कोसीकलां में एक जून की शाम से बाज़ार नहीं खोले हैं, कोसीकलां में सड़कों पर केवल सुरक्षा बल के जवान ही घूमते हुए दिखाई देते हैं।
कोसीकलां में भाजपा के नेता राजनाथ सिंह आये थे, मगर उनको कोसीकलां में प्रवेश नहीं दिया गया। उन्होंने कोसीकलां के बाईपास पर एक ढाबे पर रुक कर पीड़ितों का दर्द सुना और अपनी राजनैतिक रोटियां सेकते हुए चले गए। किसी भी हिंदूवादी नेता को भी नगर में प्रवेश करने से रोका गया है। कोसीकलां के इस भीषण तांडव की भयावहता को किसी भी टीवी चैनल ने नहीं दिखाया और ना ही किसी समाचार पत्र ने इसकी भयानक सच्चाइयों को प्रकट किया है। यहां के मीडिया को तो पूरी तरह से सेंसर ही कर दिया गया। अब देखना है कि अखिलेश यादव सरकार इस मामले को किस प्रकार सुलझाती है। सरकार सभी की होती है और यदि केवल मुस्लिम वोट के लिए एकतरफा फैसले होते हैं तो अखिलेश सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि मुलायम सरकार का पहले जो पतन हुआ था, उसके ऐसे ही मिलते-जुलते कारण थे। बहरहाल कोसीकलां का दंगा सपा सरकार पर अत्यंत भारी माना जा रहा है और इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि स्‍थानीय लोगों में भारी नाराज़गी है, यह स्‍थानीय प्रशासन की शर्मनाक विफलता है और कोसीकलां के लोग स्‍थानीय प्रशासन के असहयोग, व्यवहार और फर्जी मुकदमों से भी निराश और परेशान हैं।

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