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ईसा ने कहा-‘तुम सत्य को जानो’

गुड फ्राइडे अर्थात क्षमा करने का पर्व

आरएल फ्रांसिस

यीशु दुख/jesus’s suffering

देश, भाषा, संस्कृति, सभ्यता अलग-अलग हो सकते हैं, परंतुजो अलग नहीं है वह है-मानवीय करुणा। मनुष्य कामनुष्य से शोषण, धनवानों द्वारा निर्धनों का दमन, शासकों का न्याय मांगने वालों को बंदीगृह में डालना, मनुष्य के अधिकारों की अहवेलना, धर्मपालन करने पर लोगों का उत्पीड़न करना, मानव इतिहासका दुखद पक्ष रहा है। इसके विपरीत बहुत से व्यक्तियों एवं धर्मपरिवर्तकों ने अपने प्राणोंकी आहुति देकर एक ऐसा सामाजिक, आर्थिकऔर राजनीतिक वातावरण पैदा करने की चेष्टा की है, जिसमेंमनुष्य खुली हवा में सांस ले सके। बाजारीकरण के इस दौर में ईसा का बलिदान आज भी याददिलाता है कि समाज में बदलाव की चाहत रखने वालों को सत्ता प्रायः देशद्रोही ठहरा करप्राणदंड की सजा सुनाती रही है, लेकिन अंततःविजय सत्य की ही होती है।
ईसाई समाज में गुड फ्राइडे का खास स्थान है। इस दिन ईसा ने सलीब पर अपने प्राण त्यागे थे।निर्दोष होने के बावजूद, जब उन्हेंसलीब पर लटका कर मारने का दंड दिया गया तो उन्होंने सजा देने वालों को उलाहना नहींदी, वरन प्रार्थना करते हुए यह कहा कि‘हे ईश्वर इन्हें क्षमा कर, क्योंकिये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।’ दो हजार वर्ष पूर्व ईसा को इसलिए मृत्युदंडदिया गया, क्योंकि उन्होंने यथास्थिति को स्वीकारकरने से इनकार कर दिया था। प्राचीन रोमवासियों ने लड़ने-भिड़ने की संस्कृति में नागरिकहित के नाम पर भू-मध्यसागर के चारों ओर अपनेसाम्राज्य की स्थापना की थी। प्रारंभ में लूट के धन को जनता की भलाई के लिए खर्च कियाजाता था, लेकिन कालांतर में इसे भुला दियागया। जैसे ही उन्होंने जनता की भलाई की बात भुला दी, वहांअन्याय का वर्चस्व हो गया, अन्यायऔर घोर विलासिता ही जीवन की संतुष्टि का मकसद बन गया, अज्ञानताका अंधकार बढ़ने लगा, ऐसे समय में ईसा ने नई शिक्षादेनी प्रारंभ की, तो रोमन साम्राज्य ने उन्हेंनष्ट करने की ठानी। ईसा परिवर्तन के पक्षधर थे, उन्होंनेमानव प्रेम की सीमा नहीं बांधी, वरन् अपनेबलिदान से उसे आत्मकेंद्रित एवं स्वार्थ से परे बताया। ईसा के महाप्रयाण दिवस को दुनियाभर के ईसाई लोग गुड फ्राइडे के रुप में याद करते हैं। 
यह दिन दरअसल मातम का दिन होता है। इस दिन चर्च में घंटा नहीं बजाया जाता, बल्कि उसके एवज में लकड़ी के खटखटे से आवाज़ की जाती है। अनुमानहै कि ईसा की मृत्यु के डेढ़ सदी बाद गुड फ्राइडे मनाना शुरु हुआ, चर्च ने चौथी सदी में इसे मान्यता देकर खास पूजन विधि कीशुरुआत की। इसका मौजूदा स्वरूप सोलहवीं शताब्दी में उभरा, जबअधिकतर ईसाई देशों में इस दिन शराब खाने और डांस हाल बंद रखने शुरू कर दिए और सरकारीअवकाश घोषित होने लगे, गुड फ्राइडे के समय दुनियाभर के ईसाई चर्च में सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देने के लिए दान देते हैं। अनुमान हैकि दुनियाभर में जमा यह चंदा लगभग पांच हज़ार करोड़ रूपये का होता है, इसमें बिल गेट्स जैसे दुनिया के सबसे अमीर से लेकर छोटे बच्चेऔर झोपड़ पट्टी एवं गांवों में रहने वाले गरीब ईसाई भी शामिल हैं। 
गुड फ्राइडे के दिन सामाजिक कार्यो के लिए चर्च में चंदा देने का मकसद समानता के सिद्धांतको लागू करना भी है, केवल इसलिए नहीं कि ईश्वरऔर मनुष्य के बीच खास रिश्ता है, बल्कि इसलिएभी कि समस्त मनुष्यों में भाई-चारा एकमूल सिद्धांत है, जो इस विचार पर आधारित हैकि सब मानव उस ईश्वर की संतान है, फिर उनमेंछोटे बड़े का भेद कैसे हो सकता है। ईसा के समानता पर आधारित उपदेशों के कारण ही दुनियाभर के करोड़ों वंचित चर्च की शरण में आये हैं। भारत में भी करोड़ों लोगों ने ईसा के उपदेशोंको मानकर चर्च की शरण ली है, पर यह दुखःदहै कि वह आज चर्च के अंदर ही भेद-भाव, उत्पीड़न, ऊंच-नीचका शिकार हो रहे हैं। ईसाइयत का जामा पहनाने के बाद चर्च नेतृत्व ने उनका जमकर शोषणकिया है, इस कारण यह करोड़ों वंचित जीवन केप्रत्येक क्षेत्र में पीछे रह गए हैं और आज अपने लिए चर्च ढांचें में समान अधिकारोंकी मांग कर रहे हैं।
ईसा ने असहाय और शोषित जनता के जीवन में क्रांति लाकर दमन, दासता, निर्धनता, शोषण समाप्तकरने को ईश्वरीय कार्य बताया है। आराधनालय में प्रवचन देते हुए ईसा कहते हैं-प्रभुकी आत्मा मुझ पर है उसने मुझको (यीशु मसीह) इस सेवा के लिए अभिषिक्त किया है, कि मैं गरीबों को शुभ संदेश सुनाऊं, प्रभु ने मुझे इस कार्य के लिए भेजा है कि मैं बंदियों कोमुक्ति का और अंधों को दृष्टि पाने का संदेश दूं, मैंदलितों को स्वतंत्रता प्रदान करुं, (लूका4:18-19) दरअसल ईसा के कार्य अनिवार्यरुप से दलितों को स्वतंत्रता प्रदान करने के ही कार्य थे। वह सदैव ही पापियों, दलितों, निर्बलोंऔर निर्धनों के प्रति सहानुभूति रखते थे। उन्होंने नेक सामरी के कार्य की प्रशंसा कीऔर पुरोहित वर्ग के अहम की निंदा भी की।
बाजारीकरण के इस दौर में आज मनुष्य एक न रुकने वाली दौड़ में शामिल हो गया है, जहां हर तरफ बेरुखी, निराशा, हताशा एवं चिंता हमें घेरे हुए हैं। ईसा ने कहा है-तुम पृथ्वीके नमक हो, परंतु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाएतो वह किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? वह किसीकाम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए। आजमनुष्य अपना प्रेम व आत्मीयता खोता जा रहा है, संसारिकवस्तुओं को पाने के लिए जीवन को ईर्षा, दुखः, बैर, क्लेश, द्वेष, और शत्रुताका अखाड़ा बना अपना अस्तित्व खो, चिंता मेंडूबता जा रहा है। गुड फ्राइडे का संदेश यही है कि हम दूसरों की गलतियों को क्षमा करनासीखें, हमारे कारण किसी अन्य को कष्ट नहो। बिना शर्त प्रेम, बलिदान और क्षमा-यही गुडफ्राइडे का सार है।

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