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सीकर में महिला स्वयं सहायता समूहों ने किया कमाल !

मनोहर कुमार जोशी

Tuesday 30 July 2013 11:50:54 AM

self help group

सीकर-राजस्थान। सीकर जिले में स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर चार हजार से भी अधिक महिलाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संबल प्रदान करने में लगी हुई हैं। महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में मजबूती से कदम रखने वाली इन ग्राम्य महिलाओं में अधिकांश गौ पालन, आटा चक्की, आम, नींबू, मिर्ची, केर, लेसुआ, आंवला इत्यादि का अचार, सिलाई, कढ़ाई एवं बुटिक का काम, मिट्टी के बर्तन, मनिहारी, साबुन बनाने का कार्य एवं सब्जी की दुकान लगा रही हैं। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड एवं जमनालाल कनीराम बजाज ट्रस्ट सीकर के सहयोग से इस जिले में करीब 350 स्वयं सहायता समूह का गठन हो चुका है। इन समूहों में ज्यादातर समूह गौ पालन एवं गायों से प्राप्त होने वाले गोबर आधारित बायो-गैस संयंत्र के हैं।
सीकर के हर्ष, पिपराली, रेवासा, काशी का वास सहित कुछ अन्य गांवों में समूह की महिलाओं से बात करने से लगा कि इन महिलाओं में काम करने का ग़जब की इच्छा शक्ति है। महिलाओं को प्रोत्साहित कर समूह से जोड़ने में लगी सोनिया एवं संजना बताती हैं कि छोटे-छोटे गाँवों में महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन कर इन्हें गतिशील और सक्रिय रखना शुरू में चुनौती पूर्ण था, लेकिन अब हमारा परिश्रम दिखाई देने लगा है। महिलाओं के हाथ में पैसा है, वे खुश हैं। इन महिलाओं का बैंक में खाता खुलवा दिया गया है तथा समय-समय पर पास बुक में एंट्री कराई जाती है, ताकि अपने पैसों से वे वाकिफ रहें। संजना कहती है-महीने में एक दिन समूह की महिला सदस्यों की बैठक कर उनके समूह के पास कितना पैसा है, आगे क्या करना है, सरकारी योजनाओं से महिलाएं कैसे लाभान्वित हो सकती हैं, जैसी आवश्यक जानकारियां दी जाती हैं।
सोनिया बताती है-मैंने देसी नस्ल की गाय एवं भैंस खरीद रखी है, गाय एक वक्त पांच किलो दूध देती है, पशुओं के गोबर का उपयोग गोबर-गैस संयंत्र में हो जाता है, इससे बनने वाली गैस से दोनों समय खाना बन जाता है, इस गैस से एक बल्ब भी जल जाता है। वह कहती है-मेरे इस काम से अन्य महिलाएं भी प्रभावित हुईं और धीरे-धीरे स्वयं सहायता समूह बनते गये। इसके लिये नाबार्ड और बजाज ट्रस्ट से सहयोग मिल रहा है। बजाज ट्रस्ट समूह की महिलाओं को राजस्थान से बाहर पड़ोसी राज्य गुजरात ले जाकर वहां की महिलाओं के नवाचारों से भी अवगत कराया जाता है, मैं भी ट्रस्ट से जुड़ गई हूँ, मेरे हिस्से में 30 गांव हैं, इन गॉंवों की महिलाओं को जल संरक्षण के लिये पानी की टंकी बनाने, गोबर-गैस संयंत्र लगाने एवं खेतीबाड़ी के अन्य कामों के लिये मैं प्रेरित कर रही हूं।
चूड़ी बेचने वाली हर्ष गांव की जैतून बानो कहती है-मैं शुरू में घर-घर जाकर चूड़ी बेचने का काम करती थी, सीकर से थोड़ा-थोड़ा माल खरीद कर लाती और बेचती थी, बाद में जमना लाल कनीराम बजाज ट्रस्ट ने दस हजार रूपये की आर्थिक सहायता दी, इससे ज्यादा माल खरीद कर लाने लगी, अब तो चूड़ी पर नगीने लगाने का काम भी शुरू कर दिया है, आस-पास के लोग शादी समारोह एवं तीज त्योहार पर चूड़ी पहनने बाहर जाने की बजाय हमारे यहां आने लगे हैं, एक चूड़े पर 100 से 150 रुपये मिल जाते हैं, माल ज्यादा बिकने से मुनाफा भी अधिक होने लगा है, कुछ पैसे इकट्ठे हुए तो बच्चे ने सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया, इसमें भी दो पैसे का लाभ होने लगा है। उसका कहना है कि साल डेढ़ साल पहले जयपुर में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के मेले में चूड़ियों की स्टॉल लगाई थी, जिसमें बीस हजार रुपये की कमाई हुई थी, इसके अलावा जिला स्तर पर लगने वाले मेलों में जाना शुरू कर दिया है तथा मेरे पास बीस-पच्चीस हजार का सामान हर वक्त रहने लगा है। अफसाना एवं बरकती ने बताया कि उनके स्वयं सहायता समूह का नाम पोलकाजी समूह है, इस समूह में पांच महिलाएं सदस्य हैं। हर्ष गांव में विभिन्न प्रकार के 70 समूह हैं। एक समूह में ज्यादातर 15 महिलाएं सदस्य हैं।
हर्षनाथ समूह की ही 85 वर्षीय माली की हालत ज्यादा दयनीय है। गर्मियों के मौसम में उसे कुछ राहत मिलती है, जब मिट्टी के बर्तन व मटके बिकने लगते हैं। वह बताती है कि उसका एक बेटा लक्ष्मण है, वह बाहर मजदूरी करता है, उसकी पत्नी और दो बच्चे यहां रहते हैं, लेकिन बेटे की तरफ से उसे कुछ नहीं मिलता। सरकार की ओर से दी जाने वाली वृद्धावस्था व विधवा पेंशन के बारे में पूछने पर इस असहाय वृद्धा ने बताया कि बजाज ट्रस्ट ने कुछ मदद अवश्य की है, इसके अलावा अब तक मुझे किसी प्रकार की कोई सहायता अथवा पेंशन नहीं मिली है।
मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने वाली एक अन्य महिला रूकमणी की आर्थिक स्थिति अच्छी दिखाई दी। उसने बताया मिट्टी के बर्तन बनाना हमारा पुश्तैनी काम है। पहले छोटे बर्तन बनाते थे। अब समय की मांग के अनुसार खुद को ढाला है, तो पैसा भी ठीक-ठाक मिल जाता है। लेकिन खर्च भी बढ़ गया है। मटके, कुंडे, कलश, गुल्‍लक, मिट्टी का तवा, दीपक आदि बनाने के लिये मिट्टी महंगी हो गई है। ट्रैक्टर की एक ट्रॉली मिट्टी एक से दो हजार में पड़ती है। कच्चे बर्तनों को पकाने के लिये ईंधन करीब आठ रुपये किलो के हिसाब से खरीदना पड़ता है। गर्मी के मौसम के अलावा शादियों और दीवाली के समय कमाई बढ़िया हो जाती है। हर्ष गांव के ही शंकर स्वयं सहायता समूह की मनभरी देवी ने आटा चक्की लगा रखी है। लक्ष्मी समूह की देवुरी ने ट्रस्ट के आठ हजार के सहयोग से देसी गाय, खरीद रखी है, दोनों समय का सात किलो दूध हो जाता है। यह दूध 22 रूपए किलो बिकता है। तीन बकरियाँ हैं, इनसे तीन किलो दूध प्राप्त होता है। दूध से प्राप्त होने वाली आय से एक हजार रुपये प्रति माह ट्रस्ट को चुका देती है। आठ हजार चुकता होने पर फिर पशुधन का विस्तार करूंगी।
आम, मिर्च एवं लहसुआ का अचार बनाने वाली गजानंद समूह की बावन वर्षीय लक्ष्मी व उसके परिवार ने अचार का अच्छा काम कर रखा है। पिछले पांच वर्ष से अचार का काम है तथा पिछले डेढ़ साल से समूह से जुड़े हुए हैं। साल भर में दस से बारह क्विंटल अचार बिक जाता है। वह कहती है कि सरसों के तेल से बना अचार 58 रुपये किलो पड़ता है। हम लोग इसे ग्राहकों को 80 रूपए किलो में बेचते हैं। घर के मुखिया मुरलीधर कहते हैं- हम लोग अपने उत्पाद को 500 ग्राम, एक किलो, दो किलो, पांच किलो एवं टिन में पैक कर जिले में लगने वाले मेलों में भी ले जाते हैं। मेरी बेटी जिले के लोसल में रहती है, वह भी इसकी सप्लाई करती है। साठ किलो से शुरू किया अचार बनाने का काम अब काफी आगे तक बढ़ गया है। शायद यह अचार की गुणवत्ता का ही नतीजा है ऐसा वह कहती हैं।
शंकर समूह की सिकुडी कहती है कि उसने गोबर-गैस, पानी की टंकी एवं देसी गाय का लाभ समूह से जुड़कर प्राप्त किया है, जबकि चुका देवी ने आटा चक्की लगा रखी है। गाँवों में भी घर पर आटा पीसने का कार्य लगभग कम ही किया जाता है। ऐसी स्थिति में इनका भी काम ठीक-ठाक चल जाता है। जिला मुख्यालय के समीप बलरामपुरा से बाबा रामदेव स्वयं सहायता समूह की मंजू, प्रेम, गीता, संतोष, रूकमा, शारदा सहित आठ महिलाएं सुबह दूध-दही और ताजा सब्जियां बेचने सीकर आती हैं। पिपराली गांव के शिव, गोसांई, लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने देसी गायें खरीदी हैं। समूह की भंवरी देवी और मंजू के अनुसार गायों से प्राप्त दूध डेयरी को फेट के हिसाब से बेचते हैं। यह दूध 22 से 27 रुपये किलो तक बिक जाता है। हमारे समूह के बैंक में 15 हजार रुपये जमा हैं, जिसमें से दो रुपये सैकड़ा ब्याज पर आवश्यकता पड़ने पर पैसे ले सकते हैं। हालांकि अब तक किसी ने पैसे नहीं उठाए हैं। लक्ष्मी समूह की सुमन, कस्‍तूरी, संतोष, राखी बताती हैं, हमारे समूह को बने अभी तीन माह ही हुए हैं, हम लोग अपने खेतों में नई तकनीक अपनाते हुए कृषि नवाचारों को प्राथमिकता देंगे।
श्रीकृष्ण समूह और आरती समूह में बालिकाओं एवं युवतियों को सिलाई-कढ़ाई बुटिक एवं डिजाइन का काम सिखाया जा रहा है। इन्हें प्रशिक्षण देने वाले बनवारी बताते हैं कि सिलाई का काम सामान्य हो गया है, बुटिक एवं डिजाइन के कार्य की मांग है और पैसा भी अच्छा मिलता है, इसे ध्यान में रखते हुये समूह के प्रशिक्षण केंद्र पर आने वाली महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई के अलावा नया काम सिखाने का कार्य किया जाता है। इसके एवज में बजाज ट्रस्ट उसे नौ हजार रुपये देता है। श्रीकृष्ण समूह की आशा, चंपा और लक्ष्मी ने कहा कि फैशन के दौर में सिलाई के साथ-साथ बुटिक एवं डिजाइन का काम सीखने में मजा आ रहा है।
जिले में स्वयं सहायता समूह बनाकर आर्थिक हालात में सुधार के लिये ग्रामीणों को प्रेरित करने वाले ओमप्रकाश बताते हैं कि महिला स्वयं सहायता समूहों में गौ-पालन के प्रति ज्यादा रूचि दिखाई दे रही है, क्योंकि इससे परिवार को दूध, दही, ईंधन तो मिलता ही है, साथ ही बायोगैस संयंत्र लगाने से खेत के लिये खाद भी मुहैया हो जाती है। शायद इसीलिए यहां के लोगों में गोबर-गैस संयंत्र लगाने के प्रति उत्साह दिखाई दे रहा है और सीकर स्वयं सहायता समूह से अपनो की समृध्‍दि के मार्ग प्रशस्‍त कर रहा है।

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