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राष्ट्रपति ने देखी बाघ कला प्रदर्शनी

नई दिल्ली में समारोहपूर्वक प्रदर्शनी का उद्घाटन

प्रोजेक्ट टाइगर के पचास वर्ष पूरे होने का उत्सव

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 4 November 2023 11:44:02 AM

president saw the tiger exhibition

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे होने का उत्सव मनाने केलिए नई दिल्ली में जनजातीय समुदाय द्वारा 'साइलेंट कन्वर्सेशन: फ्रॉम मार्जिन्स टू द सेंटर' नामक कला प्रदर्शनी का समारोहपूर्वक उद्घाटन किया है। प्रदर्शनी का आयोजन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने सांकला फाउंडेशन के सहयोग से किया है। प्रदर्शनी में टाइगर रिज़र्व के आस-पास रहने वाले लोगों तथा वनों और वन्यजीवों केबीच के संबंधों को कलाकृतियों के माध्यम से दर्शाया गया है। राष्ट्रपति ने इस पहल केलिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और सांकला फाउंडेशन की सराहना की। उन्होंने प्रोजेक्ट टाइगर से जुड़े सभी पूर्व एवं वर्तमान भागीदारों को भी बधाई दी और कहाकि प्रोजेक्ट टाइगर के प्रथम डायरेक्टर और पद्मश्री से सम्मानित कैलाश सांखला ने इस प्रोजेक्ट टाइगर के जरिए पर्यावरण के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि आज विश्व के कुल बाघों की 70 प्रतिशत आबादी भारत में पाई जाती है, इस उपलब्धि में टाइगर रिज़र्व और नेशनल पार्क के आस-पास रहने वाले समुदायों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने उल्लेख कियाकि कॉर्बेट, सुंदरबन एवं काजीरंगा से लेकर सत्यमंगलम और मुदुमलइ तक अनेक टाइगर रिज़र्व में बड़ी संख्या में बाघ पाए जाते हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि ओडिशा में सिमलीपाल जिले के टाइगर रिज़र्व में भी बाघों की अच्छी संख्या है, अनेक जीव-जंतुओं विशेषकर बाघों तथा हरी-भरी वन सम्पदा से आकर्षित होकर देश-विदेश से प्रकृतिप्रेमी पर्यटक एवं शोधकर्ता वहां पहुंचते हैं। उन्होंने कहाकि सिमलीपाल जैसे स्थानों पर उपलब्ध समृद्ध जैवविविधता और वन सम्पदा के संरक्षण एवं संवर्धन केलिए समाज और सरकार दोनों को मिलकर कार्य करते रहना है।
राष्ट्रपति ने कहाकि जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या को देखते हुए समग्र एवं सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है, न केवल पर्यावरण संरक्षण केलिए, बल्कि मानवता के अस्तित्व केलिए भी हमे जनजातीय समुदायों के जीवनमूल्यों को अपनाना होगा, हमें उनसे सीखना होगाकि प्रकृति केसाथ रहते हुए समृद्ध और सुखी जीवन कैसे संभव हो सकता है। उन्होंने बतायाकि अरुणाचल प्रदेश की आदि जनजाति बाघ को अपने परिवार का सदस्य मानती है, उनकी इस मान्यता ने वन्यजीव संरक्षण और अवैध शिकार पर काबू पाने में अहम भूमिका निभाई है। कर्नाटक की सोलिगा जनजाति के लोग शहद निकालते समय शहद का कुछ हिस्सा बाघों और भालुओं केलिए वहीं छोड़ देते हैं। सोलिगा समाज के लोग वनों से भोजन प्राप्त करते हुए यह भी ध्यान रखते हैंकि आक्रामक पौधे स्थानीय वनस्पतियों को विस्थापित न करें, पवित्र उपवन और प्रकृति पूजा की जनजातीय मान्यता ने पौधों और वनस्पतियों की प्रजातियों को उनके मूल स्वरूप में संरक्षित करने में बहुत बड़ा योगदान दिया है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि देश में जनजातीय समुदायों और जनजातीय क्षेत्रों के समग्र और समुचित विकास केलिए प्रधानमंत्री वन बंधु कल्याण योजना कार्यांवित है, जिसमें शिक्षा केसाथ-साथ आजीविका और क्षमता निर्माण पर भी ध्यान दिया गया है। उन्होंने कहाकि बीते 10 वर्ष में जनजातीय कार्य मंत्रालय का बजट लगभग तीन गुना तक बढ़ा दिया गया है, जो जनजातीय समाज और उनके विकास केप्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने कहाकि भारत के परम्परागत एवं जनजातीय ज्ञान को संरक्षित रखने केलिए सरकार ने सीएसआईआर केसाथ मिलकर पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी का निर्माण भी किया है। उन्होंने इस अवसर पर यह भी बतायाकि वर्ष 2021 से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय लोगों के बलिदान के बारेमें देशवासियों को जागरुक करने केलिए प्रत्येक वर्ष 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूपमें मनाया जा रहा है।
राष्ट्रपति ने कहाकि अनियंत्रित भौतिकवाद, क्रूर व्यावसायिकता और लालची अवसरवाद ने हमें एक ऐसा विश्व बना दिया है, जहां जीवन के सभी पांच तत्व व्यथित हैं, जलवायु परिवर्तन ने खाद्य और जल सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दियाकि पारंपरिक और आधुनिक सोच को एकीकृत करने की आवश्यकता को पहचानकर हमारी संरक्षण, अनुकूलन और शमन रणनीतियों को और मजबूत करने की आवश्यकता है, हमें स्वदेशी ज्ञान को संरक्षित करने, बढ़ावा और उपयोग करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहाकि हमें यह सुनिश्चित करना होगाकि वन के संरक्षक और उसके योग्य बेटे-बेटियां समाज में अपने अधिकारों, उचित स्थान और मान्यता से वंचित न रहें। राष्ट्रपति ने लोगों से अपील कीकि इस प्रदर्शनी की कलाकृतियों को न केवल सराहें, बल्कि अपने साथ ले भी जाएं, ताकि जनजातीय भाई-बहनों का योगदान आपकी स्मृति में सदैव बना रहे।

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