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प्रोजेक्ट चीता की विशेषज्ञ टीम ने समीक्षा की

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्देश पर कूनो राष्ट्रीय उद्यान गए

भारत में चीतों को फिर से स्थापित करने की एक महत्वाकांक्षी परियोजना

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Tuesday 9 May 2023 01:25:15 PM

project cheetah reviewed by expert team

कूनो (मध्यप्रदेश)। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्देश पर एक विशेषज्ञ टीम ने राष्ट्रीय उद्यान का दौरा किया और प्रोजेक्ट चीता की वर्तमान स्थिति की समीक्षा की। विशेषज्ञ दल में एड्रियन टॉरडिफ पशु चिकित्सा वन्यजीव विशेषज्ञ पशु चिकित्सा विज्ञान संकाय प्रिटोरिया विश्वविद्यालय दक्षिण अफ्रीका, विन्सेंट वैन डैन मर्व प्रबंधक चीता मेटापोपुलेशन प्रोजेक्ट द मेटापोपुलेशन इनिशिएटिव दक्षिण अफ्रीका, क़मर कुरैशी प्रमुख वैज्ञानिक भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून और अमित मल्लिक वन महानिरीक्षक राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली शामिल थे। टीम ने परियोजना के सभी पहलुओं की जांच की और आगे केलिए सुझाव पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। भारत में प्रजातियों को फिरसे स्थापित करने केलिए इस महत्वाकांक्षी परियोजना के प्रारंभिक चरण में सितंबर 2022 और फरवरी 2023 में दक्षिणी अफ्रीका से 20 चीतों को सफलतापूर्वक कूनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित किया गया था।
विशेषज्ञ दल ने प्रोजेक्ट चीता से कानूनी रूपसे संरक्षित क्षेत्रों में प्रजातियों केलिए 100000 वर्ग किलोमीटर पर्यावास और अतिरिक्त 600000 वर्ग किलोमीटर प्राकृतिक वास परिदृश्य प्रदान करके वैश्विक चीता संरक्षण प्रयासों को लाभ मिलने की उम्मीद जाहिर की है। दल का कहना थाकि चीते मांसाहारी पदानुक्रम के भीतर एक अद्वितीय पारिस्थितिक भूमिका निभाते हैं और उन्हें फिरसे बसाए जाने से भारत में पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में सुधार की उम्मीद है। एक करिश्माई प्रजाति के रूपमें चीता उन क्षेत्रों में सामान्य संरक्षण और पारिस्थितिक पर्यटन में सुधार करके भारत के ऐसे व्यापक संरक्षण लक्ष्यों को भी लाभांवित कर सकता है, जिन्हें पहले उपेक्षित किया गया था। यह पहली ऐसी परियोजना है, जिसमें जंगली और बड़ी मांसाहारी प्रजातियों को अंतरमहाद्वीपीय स्तरपर फिरसे बसाया जा रहा है, इसलिए इसकी तुलना में कोई ऐतिहासिक मिसाल नहीं है। सावधानीपूर्वक योजना और निष्पादन के कारण सभी बीस चीते मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में निर्मित स्पर्शवर्जन और बड़े अनुकूलन शिविरों में प्रारंभिक चरण में रखे जाने, स्पर्शवर्जन और लम्बी यात्रा केबाद जीवित बचे रहे हैं।
चीतों को घूमने केलिए मुक्त छोड़ने की स्थिति में काफी जोखिम होता है। कूनो की तरह भारत में किसीभी संरक्षित क्षेत्र में बाड़ नहीं है। इस प्रकार यहां जानवर अपनी इच्छानुसार पार्क के अंदर और बाहर घूमने केलिए स्वतंत्र हैं। अन्य बड़े मांसाहारी जानवरों की तरह चीता भी अपरिचित और नए स्थान में लाए जाने केबाद शुरुआती कुछ महीने के दौरान व्यापक रूपसे विचरण करने केलिए जाने जाते हैं। उनका इस प्रकार घूमना अप्रत्याशित है और कई कारकों पर निर्भर करते है। कई महीनों केबाद चीते अपना स्वयं का संचार नेटवर्क स्थापित कर लेते हैं और अपेक्षाकृत स्थिर स्थायी क्षेत्रों में बस जाते हैं। महत्वपूर्ण हैकि अलग-अलग चीते इस चरण के दौरान बसाए गए नए समूह से पूरी तरह से अलग न हों, क्योंकि ऐसी स्थिति में वे प्रजनन में भाग नहीं लेंगे और इस प्रकार आनुवांशिक रूपसे अलग हो जाएंगे। केएनपी में चीतों की वहन क्षमता के संबंध में दो बिंदुओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, सबसे पहले यहां चीतों की सटीक वहन क्षमता का निर्धारण तबतक असंभव है, जबतक कि चीतों ने अपने घरेलू रेंज को ठीक से स्थापित नहीं कर लिया है और दूसरी बात यह हैकि चीतों की होमरेंज शिकार घनत्व और कई अन्य कारकों के आधार पर अच्छे-खासे तौरपर ओवरलैप कर सकती हैं।
नामीबिया और पूर्वी अफ्रीका में अन्य पारिस्थितिक तंत्रों के आधार पर कई विशेषज्ञों ने केएनपी में चीतों की अनुमानित वहन क्षमता के बारेमें भविष्यवाणी की है, जानवरों की वास्तविक संख्या जो इस अभ्यारण्य रह सकते हैं का अनुमान केवल जानवरों को वहां छोड़े जाने और उनके होमरेंज स्थापित करने केबाद ही लगाया जा सकता है। अफ्रीका में अलग-अलग चीतों की आबादी केलिए चीता के होमरेंज आकार और जनसंख्या घनत्व में काफी भिन्नता है और स्पष्ट कारणों से हमारे पास अभीतक भारत में चीतों केलिए उपयोगी स्थानिक पारिस्थितिकी डेटा नहीं है। अबतक नामीबिया के चार चीतों को बाड़ अनुकूलन शिविरों से केएनपी में मुक्त परिस्थितियों में छोड़ा जा चुका है। दो नर (गौरव और शौर्य) पार्क के भीतर रुके हैं और पार्क की सीमाओं से परे परिदृश्य की खोज में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। आशा नाम की एक मादा ने बफर जोन से परे केएनपी के पूर्व में दो खोजपूर्ण भ्रमण किए हैं, लेकिन कूनो के व्यापक परिदृश्य के भीतर बनी हुई है और मानव वर्चस्व वाले क्षेत्रों में नहीं गई है। एक अन्य नर (पवन) ने दो अवसरों पर पार्क की सीमाओं से परे क्षेत्रों का पता लगाया और अपने दूसरे भ्रमण के दौरान उत्तर प्रदेश की सीमा केपास खेत में जाने का जोखिम उठाया। उसे पशु चिकित्सा दल ने डार्ट किया और केएनपी में एक अनुकूलन शिविर में लौटा दिया। चीतों में सैटेलाइट कॉलर लगे हैं, जो स्थिति के आधार पर दिन में दो बार या उससे अधिक बार अपना स्थान रिकॉर्ड करते हैं।
चीतों को उनके सामान्य व्यवहार और रेंजिंग को सुनिश्चित करने केलिए कुछ दूरी रखते हुए उनपर 24 घंटे निगरानी केलिए अलग-अलग शिफ्ट में निगरानी टीमों को नियुक्त किया गया है। ये टीमें जानवरों द्वारा शिकार किएगए शिकार और उनके व्यवहार के बारेमें ऐसी अन्य जानकारियां दर्ज करती हैं, जो महत्वपूर्ण हो सकती हैं। यह महत्वपूर्ण हैकि यह सघन निगरानी तबतक जारी रहे, जबतक कि अलग-अलग चीते होमरेंज स्थापित नहीं कर लेते। टीम ने अधिकांश चीतों का दूर से निरीक्षण किया और जानवरों के प्रबंधन केलिए मौजूदा प्रक्रियाओं और प्रोटोकॉल का मूल्यांकन किया। सभी चीतों की शारीरिक स्थिति अच्छी थी, नियमित अंतराल पर शिकार कर रहे थे और प्राकृतिक व्यवहार प्रदर्शित कर रहे थे। केएनपी में वन विभाग के अधिकारियों केसाथ चर्चा केबाद वे आगे की योजना केलिए अगले कदमों पर सहमत हुए। जून में मानसून की बारिश शुरू होने से पहले पांच और चीतों (तीन मादा और दो नर को अनुकूलन शिविरों से केएनपी में मुक्त घूमने की स्थिति में छोड़ा जाएगा। निगरानी टीम ने चीतों को उनकी व्यवहारिक विशेषताओं और स्वीकार्यता के आधार पर छोड़े जाने केलिए चुना था। इन छोड़े गए चीतों पर उसी तरह नज़र रखी जाएगी, जैसे पहले छोड़े जा चुके चीतों पर रखी जा रही है।
मानसून के मौसम की अवधि तक केलिए शेष 10 चीते अनुकूलन शिविरों में रहेंगे। इनके अनुकूलन शिविरों में अधिक जगह का उपयोग करने और विशिष्ट नर और मादा केबीच मेलजोल सुनिश्चित करने केलिए कुछ आंतरिक द्वार खुले रहेंगे। सितंबर में मानसून की बारिश खत्म होने केबाद स्थिति का फिरसे आकलन किया जाएगा। बड़ी आबादी बसाने केलिए चीता संरक्षण कार्ययोजना के अनुसार केएनपी या आसपास के क्षेत्रों के अंतर्गत आगे गांधीसागर और अन्य क्षेत्रों में योजनाबद्ध तरीके से बसाहट की जाएगी। चीतों को केएनपी से बाहर जाने की अनुमति दी जाएगी और जबतक वे उन क्षेत्रों में नहीं जाते जहां वे बड़े खतरे में पड़ जाएं, तबतक आवश्यक रूपसे उन्हें वापस पकड़ा नहीं जाएगा। एकबार जब वे व्यवस्थित हो जाएंगे तो उनके अलगाव के स्तरका आकलन किया जाएगा और समूह केसाथ उनकी कनेक्टिविटी बढ़ाने केलिए उचित कार्रवाई की जाएगी। मार्च में जन्म देने वाली मादा शिकार करने और अपने चार शावकों को पालने केलिए अपने शिविर में ही रहेगी।

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