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'आयुष्मान' आशा की एक महानतम यात्रा

एचआईवी केसाथ जीरहे दो 14 वर्षीय लड़कों की कहानी

इफ्फी में गैर-फीचर श्रेणी भारतीय पैनोरामा में प्रदर्शित

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 26 November 2022 05:14:19 PM

'ayushman' a great journey of hope

पणजी। भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में पत्र सूचना कार्यालय के टेबल टॉक्स सत्र में मीडिया और महोत्सव में आए प्रतिनिधियों से बात करते हुए फिल्म निर्देशक जैकब वर्गीज़ ने अपनी फिल्म आयुष्मान के बारेमें बताया, जिसका प्रदर्शन गोवा में होरहे 53वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के गैर-फीचर श्रेणी के इंडियन पैनोरामा केतहत किया गया। जैकब वर्गीज़ ने बतायाकि फिल्म आयुष्मान ग्रामीण भारत के वंचितवर्ग वाले 14 वर्ष के दो ऐसे बालकों की कहानी है, जो एचआईवी पॉजीटिव हैं। वे एचआईवी मरीजों केसाथ बरते जानेवाले भेदभाव और सामाजिक कलंक का सामना करते हुए मैराथन दौड़ों में हिस्सा लेते हैं तथा एचआईवी पीड़ित मरीजों के मन में सकारात्मक बदलाव एवं उम्मीद जगाते हैं। इसके पीछे की प्रेरणा के बारेमें निर्देशक ने कहाकि जीवन में कभी हार न मानने वाली लड़कों की भावना और उनकी प्रेरणा ने उन्हें भी प्रभावित किया है, ये लड़के अपने कष्ट के बारेमें शिकायत करना बंद कर देते हैं, वे चुनौतियों का सामना करते हैं और दिलों को जीत लेते हैं।
फिल्म के निर्देशक जैकब वर्गीज़ ने कहाकि आयुष्मान यात्रा लगभग छह वर्ष में पूरी हुई, वे बाबू और मानिक नाम के लड़कों से मिले थे, जो उस समय 12 वर्ष के थे, वे एचआईवी पॉजीटिव बच्चों के एक यतीमखाने में रहते थे। जैकब वर्गीज़ा ने कहाकि उनमें से एक बच्चे को तो पैदा होते ही त्याग दिया गया था और दूसरा बच्चा अपने परिवार तथा भविष्य को लेकर भयभीत था, जब मैं उन बच्चों से मिला, जिनका एचआईवी पॉजीटिव पैदा होने में कोई कसूर नहीं था तो सबसे पहला विचार मेरे मन में आया कि ये कैसे अपनी जिंदगी जिएंगे, कैसे जिंदा रहेंगे और कब तक जिंदा रहेंगे। जैकब वर्गीज़ ने कहाकि हमारे पास इन सवालों के जवाब नहीं हैं, लेकिन उन्हें तब बहुत अचरज हुआकि ये लड़के कैसे इतने साहसी हैं और कैसे वे अपनी मनपसंद गतिविधियों में हिस्सा लेकर लड़ने केलिए संकल्पित हैं, वे दौड़ते हैं और इस तरह अपने संकल्प को व्यक्त करते हैं।
निर्देशक जैकब वर्गीज़ ने बतायाकि ये लड़के धीरे-धीरे कदम बढ़ाकर इस बड़ी मंजिल तक पहुंचे हैं, पहले ये 10 किलोमीटर लंबी दौड़ में हिस्सा लेते थे और आगे चलकर हाफ मैराथन यानी 21 किलोमीटर की दौड़ में हिस्सा ले रहे हैं। उनकी यात्रा की बारीकियां साझा करते हुए जैकब वर्गीज़ ने कहाकि इन लड़कों ने छोटे पैमाने पर शुरूआत की थी, मैं उनके मिशन केसाथ पांच महाद्वीपों और 12 देशों में गया, मैं बस उनके साथ-साथ चलता रहा और उनकी जिंदगी को उतारता रहा। अपने लक्ष्य को हासिल करने पर आमादा इन लड़कों के स्वास्थ्य के बारेमें जब पूछा गया तो निर्देशक जैकब वर्गीज़ ने कहाकि खेल को उन लोगों ने विश्वास और दम-खम बनाने के माध्यम के रूपमें चुना, लेकिन इन सबसे ऊपर उनके रोग केसाथ जो कलंक जुड़ा है, सबसे ज्यादा तो उसी ने उन्हें प्रेरणा दी है, यह कलंक ही उन्हें सही पोषण और व्यायाम के बारेमें सकारात्मक दिशामें ले जा रहा है।
जैकब वर्गीज़ ने कहाकि रोग से शरीर को उतना नुकसान नहीं होता, जितना नुकसान उससे जुड़े कलंक से होता है, जो मनोवैज्ञानिक स्तरपर प्रभाव डालता है। उन्होंने कहाकि मनोवैज्ञानिक पक्ष पर बहुत काम करने की जरूरत होती है, क्योंकि ये लड़के इस सच्चाई केसाथ बढ़ रहे हैंकि उनके परिवार ने बिना किसी कसूर के उन्हें त्याग दिया है। जैकब वर्गीज़ ने कहाकि रोग से जुड़े सामाजिक कलंक और भेदभाव की भावना उन लड़कों से उनकी छोटी-छोटी खुशियां तक छीन लेते हैं, इसके पीछे गलतफहमियों का बहुत हाथ होता है। उन्होंने कहाकि एचआईवी, कुष्ठ जैसी बीमारियों के बारेमें बहुत गलतफहमियां हैं, जिनके कारण ये लोग जीवन को पूरी तरह जी नहीं पाते, यहां तककि उन्हें अपने कई अधिकारों सेभी वंचित होना पड़ता है। इन लड़कों में जो भारी बदलाव आया और जो आशा की महान यात्रा बनी उसके बारे में जैकब वर्गीज़ ने कहाकि ये लड़के यतीमखाने में रहनेवाले इसी तरह के बच्चों केलिए रोल मॉडल हैं। उन्होंने भरोसा जतायाकि ये लड़के अपनी अंतिम सांस तक इसी तरह दौड़ते रहेंगे और अनेक लोगों की प्रेरणा बनेंगे।
जैकब वर्गीज़ पुरस्कृत भारतीय फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक हैं, जो अपने संवेदनशील लेखन तथा बेहतर फिल्मों केलिए जाने जाते हैं। वे कन्नड़ फिल्म उद्योग के उच्च गुणवत्ता युक्त सिनेमाई मनोरंजन केलिए प्रसिद्ध हैं। जैकब वर्गीज़ प्रायः ऐसे विषयों पर फिल्म बनाते हैं, जिन्होंने उनके दिल को छुआ हो या कोई ऐसा व्यक्तित्व हो, जो उनको प्रेरित करता हो। वे कहते हैंकि ऐसी फिल्मों पर जो खर्च आता है, वह पैसा भी शायद आपको वापस न मिले, साथही ऐसी फिल्मों को प्रदर्शित करने का कोई जरिया भी नहीं होता, बस यही महोत्सव होते हैं। उन्होंने कहाकि बाबू और मानिक की यह असली कहानी है, वे चाहते थेकि तथ्य सामने आएं, इसलिए यह वृत्तचित्र बनाया है।

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