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मीडिया के उकसावे में बुरे फंसे नीतीश कुमार!

बिहार में घमासान मणिपुर में नुकसान तो दिल्ली कैसे आसान?

नीतीश कुमार को महगठबंधन का नेता किसी को मंजूर नहीं

Saturday 3 September 2022 05:22:48 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

janata dal (u) state council meeting in patna

पटना। मीडिया के उकसावे में आकर प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षा में फंसे नीतीश कुमार पर आखिर सिर मुंडाते ही ओले पड़ने शुरू हो गए हैं। मीडिया से लेकर राजनीति के विश्लेषक सवाल भी उठा रहे हैंकि बिहार में पाला बदलपर घमासान है, मणिपुर में जदयू के पांच विधायकों ने भाजपा में जाकर नुकसान कर दिया है और नीतीश कुमार को विपक्षी महागठबंधन का नेता स्वीकार करना किसी को मंजूर नहीं है तो उनके लिए दिल्ली कैसे आसान है? पटना में आज एक तरफ जनतादल (यू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शुरू हुई और दूसरी तरफ खबर आई कि मणिपुर में जनतादल (यू) के पांच विधायक भाजपा में शामिल हो गए हैं। नीतीश कुमार केलिए यह घटनाक्रम कोई कम सदमा नहीं माना जा रहा है। नीतीश कुमार निरुत्तर हैं और केवल लोकतंत्र की दुहाई देनेके अलावा उनके पास कहने को कुछ नहीं है। इससे नीतीश कुमार राजद के सामने और भी बेबस हो गए हैं, क्योंकि यह एक सच हैकि बिहार में भविष्य में जदयू बिखर सकता है, जिसपर राजद के बाप-बेटे लालू और तेजस्वी पहले ही दिन से कामकर रहे हैं और उन्होंने सरकार पर तो अपना वर्चस्व स्थापित कर ही लिया है।
पटना में जनतादल (यू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की तीन और चार सितंबर को प्रस्तावित बैठक आज जब शुरू हुई तो मणिपुर ने नीतीश कुमार का सारा खेल ही बिगाड़ दिया। नीतीश कुमार के जदयू के एनडीए से अलग होजाने और राजद केसाथ महागठबंधन की सरकार बनाने केबाद जोरों से बिहार में 2024 का बिगुल बजाया जा रहा था, इसलिए जदयू की यह बैठक अपनी ताकत प्रदर्शित करने और उससे दूसरे दलों को रिझाने केलिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही थी, लेकिन आज अचानक उनके लिए 'ह्रदयविदारक' ख़बर आईकि मणिपुर में जदयू के पांच विधायक वहां सत्तारुढ़ बीजेपी में शामिल हो गए हैं। इस बैठक का सारा भौकाल मिनटों में गायब हो गया। नीतीश कुमार और जदयू के नेता एक-दूसरे की बगलें झांकने लगे और यह भी चर्चा करने लगेकि कहीं राजद के बाप-बेटे लालू और तेजस्वी भी बिहार में कोई ऐसाही खेल न कर दें। बिहार में जबसे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के मुसलमान विधायक राजद में शामिल हुए हैं, तबसे नीतीश कुमार लड़खड़ा रहे थेकि बिहार के मुसलमान राजद केसाथ चले जा रहे हैं और उन्होंने टोपी पहनकर मुसलमानों की जो सेवाकी है, वह तो बेकार चली गई है।
राजद के बाप-बेटे लालू यादव और तेजस्वी यादव को ऐसे ही समय का इंतजार भी था, जिसकी चपेट में बड़ी आसानी से नीतीश कुमार आ गए और एक झटके में एनडीए छोड़कर उन्होंने अपने को महागठबंधन की ओरसे देशके प्रधानमंत्री का दावेदार मान लिया। राजद जानता हैकि नीतीश कुमार में कितना दम बचा है, इसलिए लालू यादव और तेजस्वी यादव ने उनको प्रधानमंत्री के पेड़पर चढ़ाया है और उन्हें एनडीए से अलग कराकर, महागठबंधन सरकार बनवाकर अपना उल्लू सीधा कर लिया है। लालू यादव और तेजस्वी यादव बिहार में मुसलमानों को यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो गए हैंकि वे राजद के साथ चलेंगे तो भाजपा को बिहार की सत्ता में नहीं आने देंगे, क्योंकि जहांतक नीतीश कुमार के जनता दल यू का सवाल है तो ये दोनों राजद से अलग होकर जाएंगे कहां और यदि इन्हें बिहार की राजनीति में जिंदा रहना है तो इनके पास राजद की दासतां स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। नीतीश कुमार और जदयू को यह भी पूरा भान हो चुका हैकि उन्हें अब पिछड़ों का उतना वोट नहीं मिलना है और भाजपा से अलग होनेके बावजूद भी मुसलमानों की पहली प्राथमिकता राजद ही होगी।
बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम का एक पक्ष यह भी हैकि नीतीश कुमार जिस पिछड़े वर्ग पर अपना दावा करते आए हैं, उसमें भी फूट पड़ती दिख रही है। राजद, कांग्रेस और अब जदयू का मुस्लिम तुष्टिकरण इसका सबसे बड़ा कारण है। लोकसभा चुनाव में बिहार में जब जातियों का ध्रुवीकरण होगा, तब नीतीश कुमार अच्छी तरह निपट चुके होंगे अर्थात उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में मुसलमानों के एकतरफा जानेसे गैरभाजपाई दलों का वही हाल होगा, जो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का हुआ है, अखिलेश यादव परिवार का हुआ है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के यहां दो दिन पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव आए थे। वे नीतीश कुमार की खातिरदारी से बड़े उत्साहित थे, लेकिन नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव केसाथ प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया के सवाल पर के चंद्रशेखर राव कन्नी काट गएकि महागठबंधन का प्रधानमंत्री कौन होगा? मीडिया ने नीतीश कुमार की ओर इशारा करते हुए के चंद्रशेखर राव से बार-बार पूछा तो उनका उत्तर थाकि अगर मैं कोई नाम लेदूंगा तो बाकी लोग मुझसे नाराज हो जाएंगे। प्रेस कांफ्रेंस में नीतीश कुमार ने के चंद्रशेखर राव को बहुत हल्के में लिया और वे खड़े होकर बार-बार के चंद्रशेखर राव को मीडिया के सवालों का उत्तर देने से रोकते रहे, जबकि के चंद्रशेखर राव बार-बार नीतीश कुमार का हाथ पकड़कर बैठने को कहते रहे।
के चंद्रशेखर राव ने ही नहीं, बल्कि औरों ने भी नीतीश कुमार के इस तरीके को सम्मानजनक नहीं माना है। मीडिया ने भी इस घटनाक्रम पर नीतीश कुमार को हिट किया और तेलंगाना के लोगों ने भी इसका नकारात्मक प्रतिक्रिया स्वरूप संज्ञान लिया है, इसलिए सब समझ रहे हैंकि बिहार में क्या हुआ है, हो रहा है, आगे क्या होना है और यह भीकि नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य कितना सुरक्षित है। नीतीश कुमार आज बहुत उत्साहित थे, मगर उनका यह उत्साह टिक नहीं पाया। मणिपुर में जदयू का सफाया होने पर वे कह रहे हैंकि सारे विधायक तो दृढ़ता से हमारे ही साथ थे, किंतु अचानक यह क्या हो गया, यह लोकतंत्र केलिए ठीक नहीं है, यह नए ढंग से और किस तरह का काम किया जा रहा है, आप सोच लीजिएगा, यह कोई सही काम है? यदि विपक्ष के लोग 2024 में एकजुट होंगे तो परिणाम अच्छा होगा। उन्होंने यहभी कहाकि इससे क्या फर्क पड़ता है। नीतीश कुमार अपने को बड़ा ही मंझा हुआ राजनीतिज्ञ कहते हैं, वह अपने को मीडिया के सामने भी बहुत होशियार नेता के रूपमें प्रस्तुत करते हैं, मीडिया नेभी उन्हें उकसा-उकसाकर प्रधानमंत्री के पेड़ पर चढ़ा दिया है, लेकिन वह यह अंदाजा भांपने में पूरी तरह विफल रहे हैंकि उनके सामने अभी ऐसी गंभीर राजनीतिक चुनौतियां आने जा रही हैं, जिनमें उनके अपने तो क्या, वह भी 'खेल' करेंगे, जिनके लिए उन्होंने एनडीए छोड़ा और जिनके भरोसे विपक्षी 'महागठबंधन' के मुख्यमंत्री बने हैं।
जदयू की बैठक में आज सवेरे बड़ा ही उत्साहजनक सीन था। पूरा पटना नीतीश कुमार के पोस्टर और बैनर से अटा हुआ था। जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की दो दिवसीय बैठक में जैसेही नीतीश कुमार पहुंचे, वैसेही जेडीयू के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में नारा लगाना शुरू कर दियाकि 'देशका प्रधानमंत्री कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो' और जेडीयू कार्यालय के बाहर लगाए गए बैनरों पर लिखा है-'प्रदेश में दिखा, देश में दिखेगा', 'आगाज हुआ, बदलाव होगा' इससे स्पष्ट हैकि जेडीयू नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के रूपमें प्रचार कर रहा है, मगर मणिपुर के जदयू ने नीतीश कुमार का सारा उत्साह ही क्षीण कर दिया है। मणिपुर जदयू ने नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री के उत्साह की हवा निकाल दी है और राजद के लोग भी उनका मजाक उड़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल होने के बारे में मीडिया के सवालों पर नीतीश कुमार मंत्रमुग्ध होते हैं, मन में लड्डू फूटते हैं, वे पलटकर मीडिया से उन्हें शर्मिंदा नहीं करने का अनुरोध भी करते हैं। जदयू की यह बैठक ऐसे समय हो रही है, जब नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनावों केलिए एकजुट विपक्ष का प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनने की चर्चा में हैं, यद्यपि यह चर्चा केवल डिजाइनर और टीवी डिबेट मीडिया की देन है। हर कोई जानता हैकि देश में दूर-दूर तक कोई नरेंद्र मोदी के नज़दीक नहीं है।
महागठबंधन में शामिल किसी भी दल ने आजतक नीतीश कुमार में दिलचस्पी प्रकट नहीं की है। नीतीश कुमार ने जब एनडीए छोड़ा था और राजद के साथ मिलकर सरकार बनाई तो दिल्ली में डिजाइनर मीडिया ने जोरों से अपने चैनलों पर नीतीश कुमार को महागठबंधन का प्रधानमंत्री पद का दावेदार चलाना शुरू कर दिया। मीडिया के इस प्रचार से नीतीश कुमार भलेही दावेदार बन गए हों, लेकिन जो हकीकत है, वह यही है कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में अपनी रहीसही इज्जत बचा लें तो उनके लिए यही बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। नीतीश कुमार के अत्यंत करीबी माने जाने वाले आरसीपी सिंह के जदयू छोड़ने से भी नीतीश कुमार को झटका लगा है, जिससे समझा जा रहा हैकि नीतीश कुमार के पिछड़ों के एकछत्र नेता होने का भ्रम भी टूट गया है। इस प्रकार नीतीश कुमार बिहार में अपने राजनीतिक वर्चस्व से हाथ धो बैठे हैं। वे जिस तरह भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2024 की चुनौती दे रहे हैं, उसका सामना करने केलिए उनमें कोई दमखम नहीं माना जा रहा है। देखना हैकि वह अपने जदयू को भी बचा पाएंगे कि नहीं।

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