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उत्तराखंड में हिमालय दिवस मनाया

थीम 'हिमालय का योगदान और हमारी जिम्मेदारियां'

राष्ट्रीय गंगा मिशन एवं नौला फाउंडेशन का आयोजन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 10 September 2021 01:31:43 PM

himalaya day celebrated in uttarakhand

देहरादून। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने नौला फाउंडेशन के साथ उत्तराखंड में हिमालय दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसकी थीम 'हिमालय का योगदान और हमारी जिम्मेदारियां' थी। यह आयोजन आजादी के अमृत महोत्सव का हिस्सा था। हिमालय दिवस हर साल 9 सितंबर को उत्तराखंड राज्य में मनाया जाता है। हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र और क्षेत्र के संरक्षण के उद्देश्य से इसे 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने आधिकारिक तौरपर हिमालय दिवस के रूपमें मनाने की घोषणा की थी। हिमालय के महत्व पर राजीव रंजन मिश्रा महानिदेशक एनएमसीजी ने हिमालय में अनियोजित तरीके से शहरीकरण पर चिंता जताई और कहा कि हिमालय के पहाड़ी नगरों को खराब भवन योजना और डिजाइन, कमजोर बुनियादी ढांचे यानी सड़कें, सीवेज, जल आपूर्ति आदि और पेड़ों की अभूतपूर्व कटाई के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तथा यह गंभीर पारिस्थितिक मुद्दों की वजह बनता है।
राजीव रंजन मिश्रा ने कहा कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशील पहाड़ी नगरों की योजनाओं और डिजाइनों को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मैदानों और पहाड़ों में शहरों केलिए एक ही तरह के मास्टर प्लान नहीं हो सकते हैं। उन्होंने इसपर जोर दिया कि हिमालय न केवल भारत केलिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए शक्ति का एक स्रोत और एक मूल्यवान विरासत है और हमें उसे संरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सामुदायिक भागीदारी के साथ वैज्ञानिक ज्ञान से इसे संभव बनाया जा सकता है और हम नौला फाउंडेशन के प्रयासों का स्वागत करते हैं। पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा कि हिमालय औषधीय पौधों का भंडार है, जो गंगा के पानी को विशेष बनाता है और न केवल गंगा बल्कि कई छोटी नदियों को जीवन देता है। प्रोफेसर विनोद तारे संस्थापक प्रमुख सीगंगा आईआईटी कानपुर ने उत्तराखंड नदियों के एटलस का एक मसौदा साझा किया। उन्होंने बताया कि नदी के एटलस को तैयार करने की परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड की सभी नदियों का मानचित्रण करना और उन्हें एक विशिष्ट पहचान संख्या देना है।
हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में नौला फाउंडेशन के प्रयासों के बारे में बिशन सिंह अध्यक्ष नौला फाउंडेशन ने जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों और स्थानीय समुदायों के साथ काम करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। 'पहाड़-पानी-परंपरा पर हितधारकों का वेबिनार 10, 11 और 12 जून 2021 को आयोजित किया गया था। नीति निर्माताओं और निर्णय लेने वालों के लिए झरनों के सूखने और ऐसे कार्यक्रम लागू करने में स्प्रिंग-शेड मैनेजमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका और अनुभवों को साझा करके उन्हें संवेदनशील बनाने का यह एक बेहतरीन अवसर था। कार्यक्रम में चिरस्थायी हिमालय केलिए गंगा के कायाकल्प की आवश्यकता पर जोर देने केलिए एक तकनीकी सत्र आयोजित किया गया। प्रोफेसर राजीव सिन्हा आईआईटी कानपुर, प्रोफेसर एएस मौर्य आईआईटी रुड़की और प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता ने हिमालय और इसके पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के विभिन्न वैज्ञानिक पहलुओं पर अपने विचार साझा किए।
एनएमसीजी हिमालय के महत्व को समझता है, जो हर साल मॉनसून को सक्रिय करता है। यह गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के प्रवाह में बहुत योगदान देता है। हिमालय के योगदान को समझकर एनएमसीजी ने हिमालय के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए विभिन्न परियोजनाओं को मंजूरी दी है। ऐसी ही एक परियोजना आईआईटी रुड़की की 'भू-रासायनिक और भू-भौतिक तकनीकों के इस्तेमाल से टिहरी गढ़वाल जिले के टोकोली गाड कैचमेंट में नष्ट हो रहे झरनों का कायाकल्प' है। एनएमसीजी ने आईएनटीएसीएच द्वारा गौमुख से गंगा सागर तक गंगा नदी के सांस्कृतिक मानचित्रण नामक एक परियोजना को भी मंजूरी दी है। इस परियोजना के तहत गंगा नदी और शहरों की मूर्त और अमूर्त विरासत का दस्तावेजीकरण किया जा रहा है, इसके अंतर्गत आनेवाले महत्वपूर्ण हिमालयी शहर उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल, हरिद्वार और रुद्रप्रयाग हैं।

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