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'2030 की दिशा में भारतीय कृषि' राष्ट्रीय संवाद

किसानों का सुनहरा भविष्य हो हमारी नैतिक जिम्मेदारी-उपराष्ट्रपति

'कृषि की ओर युवाओं को आकर्षित करने के लिए उपाय सुझाएं'

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Wednesday 20 January 2021 03:46:38 PM

vice president inaugurating the national dialogue on 'indian agriculture towards 2030'

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने कृषि प्रतिभाओं को बाहर जाने से रोकने एवं युवाओं को फार्मिंग को एक व्यवसाय के रूपमें लेने की ओर आकर्षित करने के लिए उपायों एवं सुझावों की अपील की है। उन्होंने विचार व्यक्त किया कि भारतीय कृषि का भविष्य प्रौद्योगिकी प्रेरित कृषि अभ्यासों में है, जिसे अच्छी तरह से जानकार और आधुनिक सोच वाले किसानों से मजबूती मिलेगी। उपराष्ट्रपति ने ये टिप्पणियां नीति आयोग, कृषि मंत्रालय एवं खाद्य तथा कृषि संगठन के आयोजित '2030 की दिशा में भारतीय कृषि: किसानों की आय बढ़ाने, पोषणिक सुरक्षा एवं टिकाऊ खाद्य प्रणालियों के लिए राह' पर राष्ट्रीय संवाद का वर्चुअल रूपसे उद्घाटन करते हुए कीं।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने विचार व्यक्त किया कि बदलते सामाजिक और आर्थिक परिवेश, बढ़ती कृषि-इनपुट लागत और लाभ में हो रही कमी ने कृषि को युवाओं के बीच एक कम पसंदीदा पेशा बना दिया है। उन्होंने किसानों को कृषि उद्यमी के रूपमें बदलने के लिए मजबूत लैब-फार्म संपर्क तथा किसान-उद्योग परस्पर संबंध स्थापित की आवश्यकता पर बल दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि बिजनेस इनक्युबेशन केंद्रों का सृजन भी इस क्षेत्र में आकांक्षी किसानों के लिए सही दिशा में एक कदम होगा। वेंकैया नायडु ने नीति निर्माताओं एवं हितधारकों से इनपुट लागत में कमी लाने की दिशा में काम करने का आग्रह किया। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जैविक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जैविक कृषि किसानों, उपभोक्ताओं एवं पर्यावरण सभी के लिए लाभदायक है। उन्होंने जैविक कृषि को न केवल एक समृद्ध राष्ट्र के लिए बल्कि एक स्वस्थ राष्ट्र के लिए भी एक जनआंदोलन बनाने की अपील की।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कृषि भारत की इकोलोजी, संस्कृति एवं संभ्यता की स्तंभ है, यह न केवल हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था और आजीविका के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कोविड-19 महामारी के कारण पैदा हुई प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद फसल वर्ष 2019-20 के दौरान रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन के लिए किसानों की प्रशंसा की। उपराष्ट्रपति ने भारतीय कृषि के सामने आ रही चार महत्वपूर्ण समस्याओं का उल्लेख किया, इनमें-पहली चुनौती बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा तथा बेहतर पोषण की है। उन्होंने कहा कि वास्तव में, अब समय आ गया है कि हम अपने दृष्टिकोण के फोकस को खाद्य सुरक्षा से बदलकर पोषण सुरक्षा की ओर कर दें, दूसरी चुनौती प्राकृतिक संसाधनों-भूमि, जल, वन इत्यादि के टिकाऊपन की है। उन्होंने ऐसी प्रौद्योगिकीयों पर फोकस बढ़ाने की इच्छा जताई जो जल उपयोग दक्षता बढ़ाती हैं। जलवायु परिवर्तन को चिंता का तीसरा प्रमुख क्षेत्र बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभाव को देखते हुए कृषि को लचीली होने की आवश्यकता है।
वेंकैया नायडु ने कहा कि इसका समाधान तात्कालिकता एवं जागरुकता की बढ़ती भावना के साथ किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि किसान और खेतिहर-मजदूर कृषि परिदृश्य की आत्मा हैं और उनपर कुल तथा समग्र रूपसे ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम हमारे अन्नदाता, जो हमारी कृषि के मूल तत्व हैं को एक ऐसा सुनहरा भविष्य दें, जो उनकी खून पसीने की मेहनत को सम्मान दे। उपराष्ट्रपति ने टिकाऊपन के सभी आयामों-आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरण को कृषि संबंधी नीति निर्माण एवं योजना निर्माण में समावेशित करना जरूरी बताया। उन्होंने कृषि के एक अधिक व्यापक और अधिक समग्र दृष्टिकोण की वकालत की, जिसमें पौधों, मछलियों, वनों तथा पशुधन के टिकाऊपन और लोगों के कल्याण के साथ उनकी प्राकृतिक अंतःनिर्भरता पर समुचित ध्यान दिया जा सके। भारत में कृषि संबंधी कार्यों में महिलाओं की बढ़ती संख्या की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए उन्होंने नीति निर्माताओं से महिला कृषकों के कल्याण पर विशेष ध्यान देने की अपील की।
उपराष्ट्रपति ने हाल ही में रेगिस्तानी टिड्डियों के हमलों, कोविड-19 महामारी तथा बर्ड फ्लु का उल्लेख करते हुए कहा कि आपदा सुरक्षित खाद्यान्न एवं कृषि प्रणालियों, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने तथा विशेष रूपसे समाज के निर्बल वर्गों के स्वास्थ्य एवं पोषण की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि किसानों को पोल्ट्री, डेयरी तथा बागवानी जैसे संबद्ध कार्यकलापों को आरंभ करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे कि फसल के खराब हो जाने की स्थिति में उन्हें आय प्राप्त हो सके। उन्होंने भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की क्षमता का पूरी तरह दोहन करने को कहा। उपराष्ट्रपति ने किसानों को नवीनतम अनुसंधान एवं नवोन्मेषण उपलब्ध कराने के लिए कृषि विश्वविद्यालयों तथा कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाए जाने की भी इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि लैब-टू-लैंड संकल्पना का कारगर तरीके से कार्यांवयन किया जाना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने केंद्र एवं राज्यों दोनों से ही टीम इंडिया की भावना के साथ समन्वित कार्रवाई करके कृषि को लाभदायक बनाने की अपील की। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि किसान असंगठित होते हैं और उनकी आवाज उठाने वाला कोई नहीं है उन्होंने कहा कि संसद, राजनेताओं, नीति निर्माताओं तथा प्रेस को कृषि की दिशा में एक सकारात्मक भावना अपनाने के लिए सक्रिय रूपसे कार्य करना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऋण माफी एवं सब्सिडियां किसानों को अस्थायी राहत प्रदान करती हैं और ये स्थायी समाधान नहीं हैं, किसानों को लाभदायक मूल्य सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक और अल्पकालिक दोनों ही तरह के उपाय किए जाएं। उन्होंने कृषि को लाभदायक और व्यवहार्य बनाने के लिए ई-मार्केटिंग, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं, अबाधित बिजली आपूर्ति तथा समय पर कर्ज दिए जाने जैसे विभिन्न उपाय गिनाए। संवाद में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री परुषोत्तमभाई रूपाला, नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ राजीव कुमार, नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल, एशिया प्रशांत क्षेत्र के सामान्य एवं क्षेत्रीय प्रतिनिधि एफएओ सहायक निदेशक जांग-जिन किम, नीति आयोग की वरिष्ठ सलाहकार (कृषि) डॉ नीलम पटेल, कृषि विशेषज्ञ, शोधकर्ता और किसान वर्चुअल रूपसे शामिल हुए।

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