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विदर्भ में समय पर बारिश न होने से फसलें बीमार

कृषि उपज में सीडलिंग ट्रे पद्धति अपनाने से कम से कम नुकसान

कृषि आरोग्य एवं विज्ञान संस्थान ने किसानों को दिया सुझाव

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 3 June 2019 03:46:18 PM

cotton seedlings

नागपुर। कृषि आरोग्य एवं विज्ञान संस्थान का दावा है कि कृषि उत्पादन में सीडलिंग ट्रे पद्धति से कमी और बीज के नुकसान का खतरा कम खर्च में टाला जा सकता है। संस्थान का कहना है कि सही समय पर बुआई नहीं होने से फसल पर विविध कीट और रोग का दुष्प्रभाव होता है और समय पर बारिश नहीं आने से विदर्भ में यह समस्या आम हो गई है। सीडलिंग ट्रे पद्धति से समय पर बुआई कर इस समस्या को टाला जा सकता है। बारिश विलंब होने पर भी पहले से ही पौधे उगाकर तैयार रखने से बुआई में देरी की समस्या नहीं होती है, पर्याप्त बारिश आने पर पौधे खेत में लगाए जा सकते हैं। इस पद्धति से बुआई करने पर कीट और रोग के प्रभाव से फसल सुरक्षित रहती है और फसल की गुणवत्ता भी बेहतर रहती है।
बारिश से पहले बुआई करने पर यदि बारिश में विलंब होता है तो जमीन की गर्मी से एवं नमी से खराब होकर बीज की अंकुरण क्षमता कम हो जाती है। सभी बीजों में अंकुरित होने की संभावना नहीं रहती, इसलिए एक जगह दो बीज बोए जाते हैं। सीडलिंग ट्रे पद्धति में पहले से पौधे उगाकर बारिश आने के बाद बुआई की जाती है, इसलिए बीज खराब होने या दो बीज बोने की नौबत नहीं आती है। पौधे तैयार रहने से बीज की बचत होती है। समय पर बुआई के लिए पौधे बारिश से पहले ही उगाए जाते हैं, जिसके लिए सीडलिंग ट्रे का उपयोग किया जाता है। एक ट्रे में 45 पौधे के डिब्बे ‌होते हैं। इसमें मिट्टी भरकर प्रत्येक ‌डिब्बे में 1 बीज डालकर उसे छाया में रखकर बढ़ाया जाता है। बारिश आने के बाद ट्रे को खेत में ले जाकर एक-एक डिब्बे को काटकर पौधे लगाए जा सकते हैं। ट्रे रीसाइकिल मटेरियल से बनाई गई हैं। इसमें से पौधे को अलग निकालकर लगाने की जरूरत नहीं रहने से मिट्टी झड़कर पौधे की जड़ खुली होने का खतरा नहीं रहता है।
सीडलिंग ट्रे पद्धति से बुआई करने पर पारंपरिक पद्धति से बुआई के मुकाबले प्रति एकड़ 1040 रुपए कम खर्च आता है और समय पर बुआई होने से गुणवत्तापूर्ण उत्पादन भी ‌होता है। इस उत्पादन को बाज़ार में ऊंचे दाम मिलने से किसानों का आर्थिक लाभ होता है। पारंपरिक और सीडलिंग ट्रे प्रति से प्रति एकड़ कपास की बुआई के खर्च में अंतर आता है। ज्ञातव्य है कि सिंचाई सुविधा के अभाव में विदर्भ में अधिकांश कृषि क्षेत्र में बारिश पर निर्भर फसल ली जाती है। बेमौसम बारिश या अपेक्षित मात्रा में बारिश नहीं आने, बिजली की लुकाछिपी से सिंचाई में आने वाले व्यवधान से खेती को बड़ा नुकसान होता है। बुआई के बाद बारिश नहीं आने पर बोई गई फसल खराब हो जाती है। बारिश विलंब से आने पर या देर से बुआई करने पर फसल कम होने का खतरा बना रहता है। बारिश आने पर बुआई करने के बाद बीच में बारिश के दगा देने पर भी फसल हाथ से चली जाती है। सीडलिंग ट्रे पद्धति अपनाकर कम खर्च में कृषि उत्पादन में कमी और बीज के नुकसान के खतरे से बचा जा सकता है।
कृषि आरोग्य और विज्ञान संस्थान के अध्यक्ष ओमप्रकाश जाजोदिया ने इस पद्धति को विकसित किया है। यह पद्धति कपास ही नहीं, बल्कि अरहर, करेला, ककड़ी, लौकी आदि सब्जियां साग, शिवन, लिरिसिडिया, क्रंच आदि वानिकी पौधे एवं गन्ना जैसी उपज के लिए प्रयोग में लाई जा सकती है और किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। जो किसान इस पद्धति को आजमाना चाहते हैं, उनके लिए कृषि क्रांति केंद्र धनवाटे आश्रम शनि मंदिर रोड सीताबर्डी नागपुर-12, मोबाइल-9822203950 और 0712-2557929 पर संपर्क कर यहां पर सिर्फ 400 रुपये में किट उपलब्ध है। किसानों से निवेदन किया गया है कि वे इस साल इसका प्रयोग करके देखें और पूरा अनुभव एवं विश्वास होने के बाद इस किट से ज्यादा क्षेत्रों में बुआई करें और उपज बढ़ाकर ज्यादा मुनाफा कमाएं।

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