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Wednesday 10 September 2025 03:13:48 PM
नई दिल्ली। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सांस्कृतिक अभिलेखागार एवं संरक्षण प्रभाग ने 'एक और बुद्ध प्रतिमा की उत्पत्ति' विषय पर चौथा आनंद केंटिश कुमारस्वामी स्मृति व्याख्यान आयोजित किया। आनंद केंटिश कुमारस्वामी की स्मृति में यह व्याख्यान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कला एवं सौंदर्यशास्त्र संकाय के प्रोफेसर नमन पी आहूजा ने दिया। उल्लेखनीय हैकि आनंद केंटिश कुमारस्वामी भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र के अग्रणी विद्वान हुए हैं। प्रोफेसर नमन आहूजा ने कहाकि भारतीय कला के अध्ययन में आनंद के कुमारस्वामी का सबसे बड़ा योगदान मूर्ति पूजा की उत्पत्ति और भारत में मूर्ति पूजा की शुरुआत को समझने को एक मौलिक दृष्टिकोण प्रदान करता है, उनके महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों में अल्फ्रेड फाउचर की गांधार कला पर यूनानी प्रभाव का खंडन था।
प्रोफेसर नमन पी आहूजा ने कहाकि आनंद केंटिश कुमारस्वामी ने अपने निबंध 'बुद्ध प्रतिमा की उत्पत्ति' और मोनोग्राफ ‘यक्षों’ के जरिए स्थापित कियाकि बुद्ध की प्रारंभिक प्रतिमाएं बाहरी प्रभाव के बजाय भारतीय परंपराओं और दर्शन में निहित थीं। उन्होंने कहाकि आनंद केंटिश कुमारस्वामी की अंतर्दृष्टि एक राष्ट्रवादी समझ से आगे तक फैली हुई थी, जो भगवद्गीता में आस्तिकता और भक्ति की ओर एक गहन दार्शनिक बदलाव के भीतर प्रतिमा पूजा के उद्भव को दर्शाती थी। उन्होंने उल्लेख कियाकि कुषाणकाल में स्थापित मथुरा, गांधार और अमरावती की प्रामाणिक बुद्ध प्रतिमाएं उनके परिभाषित लक्षणों केसाथ इस परिवर्तन को दर्शाती हैं। प्रोफेसर नमन पी आहूजा ने हालकी खोजों के आधार पर बतायाकि सभी प्रारंभिक छवियों में बुद्ध को नहीं दर्शाया गया था, कई में बोधिसत्वों को दर्शाया गया था, जिनके दिव्य गुणों को अधिक स्वतंत्रता से अपनाया गया था, पहली शताब्दी ईस्वी तक सूर्य, लक्ष्मी, ब्रह्मा और इंद्र जैसे देवताओं के बौद्ध दृश्य संस्कृति में एकीकरण केसाथ यह प्रारंभिक दक्षिण एशिया में आस्तिक पूजा की व्यापक उपस्थिति को दर्शाता है।
प्रोफेसर नमन पी आहूजा ने बंगाल के चंद्रकेतु गढ़ से नई सामग्री प्रस्तुत करते हुए पत्थर आधारित परंपराओं के विपरीत इस क्षेत्रकी मिट्टी, टेराकोटा, लकड़ी और हाथी दांत की निर्भरता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहाकि खोजों में हाथी दांत के अवशेष संदूक हैं, जिनकी कार्बन तिथि दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और दूसरी शताब्दी ईस्वी केबीच है, जो बुद्ध के जीवन प्रसंगों को प्रामाणिक मुहावरे में नहीं, बल्कि सातवाहन कलात्मक शब्दावली के लेंस के माध्यम से दर्शाते हैं। प्रोफेसर नमन पी आहूजा ने कहाकि ये खोजें आनंद केंटिश कुमारस्वामी के मूलभूत तर्कों पर पुनर्विचार करने केलिए बाध्य करती हैं, हालांकि ईश्वरवाद और मूर्ति पूजा के बारेमें उनकी समझ अमूल्य है। उन्होंने कहाकि मथुरा से बंगाल तकके साक्ष्य दर्शाते हैंकि बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्ति का निर्माण कभीभी एकल नहीं था, बल्कि उसकी अभिव्यक्ति में स्तरीकृत, अनुकूलनीय और गहन क्षेत्रीयता थी। डॉ केके चक्रवर्ती ने कहाकि भारत में लगभग 30000 संरक्षित स्मारक और संग्रहालयों में विशाल संग्रह होनेके बावजूद इसकी पुरातात्विक, मुद्राशास्त्रीय और पुरालेख संबंधी संपदा का अधिकांश भाग अबभी अपने प्राकृतिक रूपमें है।
डॉ केके चक्रवर्ती ने वर्तमान हस्तक्षेप को समयोचित बताया, क्योंकि इसने इतिहास, दर्शन, धर्म और भौतिक संस्कृति को एकसाथ समन्वित रूपमें प्रस्तुत किया है। डॉ केके चक्रवर्ती ने आनंद केंटिश कुमारस्वामी के दृष्टिकोण पर विचार करते हुए बौद्ध कला के पश्चिमी वर्गीकरण से उत्तर-दक्षिण द्वंद्वात्मकता की ओर उनके बदलाव का उल्लेख किया, जहां उत्तरी रूप धीरे-धीरे विशाल दक्षिणी शैलियों के आगे झुक गए। डॉ केके चक्रवर्ती ने आनंद केंटिश कुमारस्वामी के पत्रों और वैश्विक विद्वानों केसाथ उनके आदान-प्रदान के महत्व पर भी प्रकाश डाला, जो सांस्कृतिक संवाद के नए आयामों को प्रकट करते हैं। उन्होंने दक्षिण और मध्य एशिया में प्रतीकात्मक और अप्रतिष्ठित परंपराओं के सहअस्तित्व को रेखांकित किया, जहां ताल में शिव बुद्ध सम्मिश्रण शैलियों और दर्शन के सम्मिश्रण की गवाही देते हैं। उन्होंने कहाकि मथुरा की प्रारंभिक बुद्ध प्रतिमाएं जो यक्ष जैसी और सुदृढ़ थीं, धीरे-धीरे गांधार में अधिक अलौकिक रूपों में परिवर्तित हो गईं, जो प्रतिमा निर्माण के विकास को दर्शाती हैं। उन्होंने टिप्पणी कीकि कुमारस्वामी की दृष्टि में बुद्ध केवल एक ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि परंपराओं का एक सारांश थे, जहां लोककथाएं, दर्शन और ब्रह्मांड विज्ञान का समन्वित रूप देखने को मिलता है।
डॉ केके चक्रवर्ती ने प्रोफ़ेसर नमन आहूजा के कार्य की सराहना करते हुए निष्कर्ष निकालाकि भारत की अधिकांश अज्ञात विरासतें अभीभी प्रतीकों के संदर्भ केसाथ ऐसेही एकीकरण का इंतजार कर रही हैं। कला इतिहासकार एवं आईजीएनसीए के पूर्व सदस्य सचिव सेवानिवृत्त आईएएस डॉ कल्याण कुमार चक्रवर्ती ने सत्र की अध्यक्षता की और इसकी शुरुआत सांस्कृतिक अभिलेखागार एवं संरक्षण प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अचल पंड्या के परिचय से हुई। सांस्कृतिक अभिलेखागार प्रभाग की प्रभारी एवं सहायक प्राध्यापक डॉ शिल्पी राय ने वक्ताओं और उपस्थित लोगों केप्रति आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में कला, इतिहास और संस्कृति के क्षेत्रोंसे बड़ी संख्या में शोधकर्ता, शिक्षक, विद्वान और कलाप्रेमी उपस्थित थे। यह वार्षिक व्याख्यान आनंद केंटिश कुमारस्वामी के स्थापित कला और संस्कृति के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है।