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ग्रीनपीस ने परिष्कृत फसलों पर विरोध जताया

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नई दिल्ली। जीएम फसलों पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग को लेकर, ग्रीनपीस का प्रतिनिधिमंडल आज संसदीय कृषि प्रवर समिति से मिला और समिति के सामने अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए अपने इस रूख पर कायम रहा कि जीनीय रूप से परिष्कृत फसलें हमारे देश की कृषि, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण के लिए खतरा हैं। ग्रीनपीस प्रतिनिधिमंडल ने 31 सदस्यीय प्रवर समिति के समक्ष अपने तर्कों के समर्थन में तमाम दस्तावेज भी पेश किये।
जैव प्रौद्योगिकी बीज उद्योग की देश में पहली जीएम खाद्य फसल बीटी बैगन को मंजूरी दिलाने की कोशिशों से उठे बवाल को देखते हुए संसदीय समिति ने व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए जीएम खाद्यान्न को अपने ऐजंडे में शामिल किया था। जनता और वैज्ञानिकों के भारी विरोध को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने बीटी बैगन पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लगाई थी।
टिकाऊ कृषि के कैम्पेन मैनेजर राजेश कृष्णन ने कहा कि यह खुशी की बात है कि कृषि प्रवर समिति ने मामले की गंभीरता को समझा और जीएम फूड मसले को उतनी ही गंभीरता से लिया जितना जनता ले रही है, साथ ही इस मसले पर अपनी सिफारिशें संसद के समक्ष रखने की जिम्मेदारी ली। उन्होंने आगे कहा कि उम्मीद है कि समिति हमारी खेती के भरोसेमंद भविष्य को ध्यान में रखते हुए और जीएम फसलों के झूठे वायदों के खिलाफ अपनी सिफारिशें करेगी।
ग्रीनपीस ने प्रवर समिति से आग्रह किया कि जैव सुरक्षा के लिए अनिवार्य रूप से एक नियामक तंत्र की स्थापना हो और जीएम फसलों को मंजूरी न दी जाये। यह व्यवस्था लोकतांत्रिक तरीके से स्थापित होनी चाहिए जिसमें इससे जुडे सभी स्टाक होल्डरों को भी शामिल किया जाये। जीएम फसलों को लेकर खुलेआम चल रहे सभी परीक्षणों पर तब तक के लिए रोक लगा दी जाये, जब तक कोई स्वतंत्र अध्ययन यह साबित न कर दे कि इनका दीर्घकालीन प्रयोग मानव जाति और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। औषधीय जड़ियों और पौधों के जीनीय परिवर्तन संबंधी शोधों पर रोक लगे जो परंपरागत भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं।
ग्रीनपीस ने कहा कि एक संसदीय समिति बनाई जाये जो न केवल सन 2002 से लेकर 2010 तक बीटी काटन के मानव और अन्य जीव-जन्तुओं पर सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव की समीक्षा करे, बल्कि उस नियामक तंत्र की भी समीक्षा करे जो खतरनाक तरीके से ऐसी चीजों को मंजूरी प्रदान करता है। गैरकानूनी तरीके से भारत में आ रहे जीएम खाद्यान्नों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जाये, साथ ही बंदरगाहों पर आयातित खाद्य पदार्थों की जांच की ऐसी व्यवस्था की जाये ताकि जीएम तत्वों का पता चल सके। मानव शक्ति, धन और आधारभूत संरचना के रूप में ऐसे संसाधन मुहैया कराये जाएं ताकि किसान, कम बाहरी लागत में, कैमिकल मुक्त और जीएम तकनीक के बिना पर्यावरण के अनुकूल और भरोसेमंद खेती कर सकें।

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