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ईमेल की झूंठी शान,दिग्गजों के भी पते झूंठे

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नई दिल्ली। ई-मेल भी झूंठी शान और अफवाह फैलाने में खूब इस्तेमाल हो रहे हैं। साइबर कैफे में इनके साथ लापरवाही बरतने से ये जी का जंजाल भी बन रहे हैं। आपका कोड वर्ड अगर किसी सिरफिरे के हाथ लग गया तो वह आपको और आपके पूरे परिवार को नचा सकता है। ई-मेल के शौकिया तो बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं लेकिन वे अपने ई-मेल को ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रख पाते हैं और दोस्तों को या बिजनेस में उसे बांटकर अपनी शान जरूर बढ़ाते हैं। आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे कि विशिष्ट लोगों, प्रतिष्ठानों, राजनीतिक दलों और व्यवसायिक कंपनियों के ई-मेल पते भी सही नहीं होते हैं। सरकारी कार्यालयों के ई-मेल पते सबसे ज्यादा गड़बड़ पाएंगे। इसके भी कई कारण हैं।
सबसे पहले पेज़र आया था जिसे लोग खूब नचाते थे। मगर जल्दी ही पेज़र की जगह मोबाइल फोन ने ले ली और मोबाइल फोन रखना स्टेटस आफ सिंबल बन गया। अब मोबाइल फोन नंबर के साथ-साथ ई-मेल का पता देने का चलन तेजी से बढ़ गया है। मोबाइल फोन की जगह ई-मेल करना अत्यंत सस्ता हो गया है फिर भी अधिकांश लोग मोबाइल कनेक्शन लेकर उसका उपयोग नही करते। जिस प्रकार भारत के नवधनाढ्यों में अपनी भारतीय मुद्रा के बजाय आपस में विदेशी मुद्रा का प्रचलन शान समझा जाने लगा है, उसी प्रकार ईमेल का प्रयोग भी भारत में हर किसी की शान बन गया है।
आधे से ज्यादा ईमेल धारक ऐसे पैदा हो गए हैं कि जो अपना ईमेल पता तो रखते हैं, लेकिन वह केवल अपनी झूंठी शान के लिए। यदि उन्हें उनके ईमेल से संपर्क साधा जाए तो वह ईमेल सरवर से बाहर ही दिखाई देता है। कई राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और सरकारी कार्यालयों में ईमेल की शेखी तो बहुत बघारी जा रही है लेकिन उन्हें चालू बहुत ही कम लोग रखते हैं। साइबर कैफे में ईमेल धारकों के झुंड बैठे हुए मिलेंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि यह ईमेल दूसरों को मात्र रिझाने के लिए हैं। इन ईमेल्स को पते के रूप में डायरियों और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर इस्तेमाल तो खूब किया गया है लेकिन उन्हें एक बार चालू करने के बाद दोबारा शायद ही खोलकर देखा गया हो।
जैसे-जैसे भारत में इंटरनेट का प्रसार हो रहा है और लोग अपनी सूचनाओं का आदान-प्रदान ईमेल के जरिए करना चाह रहे हों वैसे-वैसे फर्जी ईमेल धारकों की पोल पट्टी भी खुलती जा रही है। यदि आपको कोई ईमेल का पता दे रहा है तो वह फर्जी भी हो सकता है। ईमेल की स्थिति फिलहाल वैसे ही बनी हुई है जैसे शुरू-शुरू में घरों में टेलीफोन कनेक्शन लगवाए गए थे या जैसे हाथ में मोबाइल स्टे्टस ऑफ सिंबल बन गया था। आज मोबाइल इस स्टेटस से उतर चुका है और इसकी जगह ईमेल का पता ले रहा है। यह अलग बात है कि अधिकांश पते फर्जी ही चल रहे हैं।
भारत में अभी केवल कुछ महीने पूर्व तक इंटरनेट धारकों का प्रतिशत लगभग .5 प्रतिशत था जो बहुत तेजी से बढ़कर 10 प्रतिशत हो गया है यानि देश में काफी लोग बहुत जल्दी ही इंटरनेट धारक माने जाने लगे हैं। हाल के इन चार-पांच वर्षों में इसमे काफी प्रगति हुई है। इसमें घरों में कंप्यूटर पर इंटरनेट कनेक्शन की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसलिए लैपटाप, कंप्यूटर और ई-मेल पते का प्रदर्शन दूसरों को काफी रिझा रहा है। लेकिन इसी के साथ ही फर्जी ईमेल धारकों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है। यहां पर यह बताना आश्चर्य जनक लगेगा कि फर्जी ईमेल पते देने में या त्रुटिपूर्ण ई-मेल पतों में केवल रईसजादे ही शामिल नहीं है बल्कि यह दोष दूसरे बड़े स्तरों पर भी देखा जा रहा है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का उसकी वेबसाइट पर जो ईमेल प्रदर्शित है यदि आप उसे संपर्क करेंगे तो आप को निराशा हाथ लगेगी। वह ईमेल ही गलत प्रदर्शित है। वहां से ईमेल नकारात्मक संदेश के साथ वापस आ जाता है। आप भी चेक कीजिए! यह ईमेल तुरंत ही सॉरी, टाइम आउट संदेश के साथ वापस आ जाएगा। यही स्थिति भारतीय जनता पार्टी के ईमेल पते की भी है। कई मुख्यमंत्रियों और महत्वपूर्ण हस्तियों ने अपनी वेबसाइट पर अपना जो ईमेल पता प्रकट कर रखा है वह भी बगैर जवाब के वापस आ रहा है। केंद्र सरकार के कई मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों, राज्य सरकार के कार्यालयों के ईमेल महंगी टेलीफोन डायरियों में तो छपे हैं लेकिन वह मौजूद ही नही हैं। किस तरह से देश में सूचना प्रोद्यौगिकी का विस्तार हो रहा है इसकी विफलता और दुरूपयोग का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है?

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