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हजरतगंज कोतवाली को ध्वंस होते देखिए और मुस्कुराइए!

राहुल गौड़

लखनऊ। दुनिया के मानचित्र पर लखनऊ एक ऐतिहासिक शहर है। इसका नवाबी सभ्यता, ऐतिहासिक स्थलों और इमारतों से गहरा संबंध है। इमारतें भी ऐसी कि जिनकी दुनिया में कहीं दूसरी मिसाल नहीं है। यहां की हर बड़ी घटना भी कहीं न कहीं इतिहास से प्रेरित है। परंपरागत पहनावा बिल्कुल अनूठा और बोलचाल दुनिया में सबसे मीठी। जनसंख्या के दबाव में लखनऊ को अपने विकास के रास्ते खोलने पड़े। कहना न होगा कि जिस शहर को उसकी ऐतिहासिक भव्यता को बनाए रखने एवं उसको आगे बढ़ाते हुए उसे और ज्यादा खूबसूरत बनाने की जरूरत थी वह नहीं हो सका। नए लखनऊ की अपनी कोई उल्लेखनीय पहचान नहीं बन सकी। यहां अनियंत्रित विकास और माफियागर्दी ने सब कुछ चौपट कर दिया है। किसी ऐतिहासिक शहर की प्राचीन सभ्यता को जिंदा रखने के लिए या उसे याद रखने के लिए उस शहर के विकास को बढ़ावा देते समय उसके कुछ ऐतिहासिक स्थलों एवं भवनों का वजूद में बने रहना बहुत जरूरी है। यहां इन्हीं पर विकास के नए ठेकेदारों की नज़रें गड़ी हुई हैं।
हम बात कर रहे हैं लखनऊ के ऐतिहासिक हजरतगंज की जिसको दुनिया जानती है। इसकी मिसाल भी नहीं मिलेगी। हजरतगंज खास लखनऊ की शाम में नवाबों की सैर की लेन कहलाती रही है। इसमें एक काफी हाउस है और दुनिया में विख्यात हजरतगंज कोतवाली है। यहां से लेकर सात समंदर पार तक चले जाइए- लखनऊ, हजरतगंज और हजरतगंज कोतवाली को सब जानते हैं। मायावती सरकार में इसी कोतवाली के भवन का वजूद खत्म करने का फैसला हो गया है और इसकी जगह बनेगा ‘मार्केट’ पार्किंग। हजरतगंज कोतवाली पास के लालबाग में कारागार मुख्यालय के दफ्तर में शिफ्ट की जाने वाली है और यहां से कारागार मुख्यालय को शंट आउट कर कहीं और भेज दिया गया है।
लखनऊ शहर की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करने वाली हजरतगंज कोतवाली यहां से हट जाने के बाद हजरतगंज कोतवाली के नाम से नहीं जानी जा सकती, भले ही यहां से सौ किलोमीटर दूर एक नगर बसाकर उसका नाम लखनऊ रख दिया जाए। हजरतगंज से कोतवाली हटाने के पीछे बड़े-बड़े तर्क दिये जा रहे हैं, ताकि लोगों का गुस्सा शांत रहे। सही पूछिये तो हजरतगंज की पहचान कभी की खत्म हो गई है, अब हजरतगंज केवल पार्किंग का गाड़ी एवं स्कूटर स्टैंड ज्यादा नजर आता है। हाईकोर्ट ने इस पर सख्त रुख अख्तयार करते हुए कुछ कदम उठवाए थे, लेकिन यह इलाका गाडि़यों और अनियंत्रित यातायात की चपेट में वापस आ गया। यहां के पार्किंग को डीएम कार्यालय के सामने पार्क में भूमिगत रूप से स्थानांतरित करने की योजना थी। उस पर काम भी हुआ लेकिन मुकदमेबाज तो हर जगह मौजूद रहते हैं। उन्होंने उस योजना पर अमल होने ही नहीं दिया और हजरतगंज फिर वहीं पहुंच गया जहां आज है। एक समय जब यहां गाडि़यों का प्रवेश बंद हो गया था, हजतरगंज में पुरानी रौनक लौटने लगी थी, लेकिन उसे ज्यादा समय तक गाडि़यों के शौकीनों ने चलने ही नहीं दिया।
यातायात की समस्या के समाधान के लिए हजरतगंज कोतवाली को निशाना बनाया गया है। यहां इसको समूल नष्ट कर दिया जाएगा तब यहां के दुकानदारों और गंज आने वालों की गाडि़यां वहां पार्क हुआ करेंगी। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह व्यवस्था जिन हाथों में है वह इसे अच्छा बना सकेंगे। यहां सहारागंज एक जगह तो बन गई है लेकिन वह हजरतगंज की आज भी जगह नहीं ले सका। लोग हजरतगंज ही जाते हैं और उनको वहां घूमने पर ही सुकून भी मिलता है। सुना जा रहा है कि हजरतगंज कोतवाली की जगह के लिए बड़ी सौदेबाजी हो रही है। ठेकेदार सचिवालय में और मंत्रियों के यहां चक्कर लगा रहे हैं। मंत्रियों ने अभी से ही वहां अपनी दुकानों के सपने देखने शुरू कर दिए हैं। सरकार में बैठकें चल रही हैं कि किस प्रकार से अपनी योजना को अमली जामा पहनाया जाए ताकि सिर फूटने से भी बचा रहे। ‘दलाल’ निर्माण कंपनियों को लालच देने में लगे हुए हैं कि वे आएं उन्हें काम मिलेगा। काम कैसे मिलेगा इसकी शर्त पर जिस दिन कोई तैयार हो जाएगा, रातों रात उसके बुलडोजर कोतवाली पर चलते नजर आ जाएंगे।

हजरतगंज के ऐतिहासिक एवं प्रमाणित वजूद को ध्वंस होने से रोकने को शायद ही कोई आगे आएगा। ज्यादा को तो दुकान का ही लालच है। हजतरगंज के लोग भी तब मौन होंगे क्योंकि यहां कोई नवाब भी नहीं बचा है जो इस ध्वंस पर बोलेगा। एक नवाब प्रकट हुआ था, उसने यहां की मिल्कियत का मुकदमा जीता है लेकिन वह भी विदेश में बैठकर इन संपत्तियों की सौदेबाजी में लगा है। वैसे भी लखनऊ के ज्यादातर नवाब आज की तारीख में घरों की पुरानी चीजें बेचकर अपनी नवाबी को बचाते फिर रहे हैं। इसलिए उन्हें हजरतगंज कोतवाली के मिटने से भी क्या मतलब? विरोध करना उनके बूते की बात भी नहीं है। खैर हजरतगंज कोतवाली को ध्वंस होते देखिए और मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में है।

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