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प्रिंस चार्ल्स से उद्घाटन भारत का अपमान-मुलायम

कॉमनवेल्थ गेम के खिलाफ एक रिट भी दाखिल

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मुलायम सिंह यादव - Mulayam Singh Yadav

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्र मंडल खेलों का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के मौजूद होते हुए ब्रिटेन के युवराज प्रिंस चार्ल्स से कराने के फैसले को भारत का घोर अपमान बताया है और घोषणा की है कि समाजवादी पार्टी इस कारण राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन से कोई वास्ता नहीं रखेगी। उन्होंने खेलों के प्रबंधन में भारी भ्रष्टाचार मचाने का आरोप लगाते हुए इसकी उच्च स्तरीय जांच की भी मांग की। इसी तरह हाईकोर्ट इलाहाबाद की लखनऊ पीठ में आर्टिकल 226 के अंतर्गत दायर एक रिट याचिका में याचिकाकर्ता और नेशनल आरटीआई फोरम की संयोजक डॉ नूतन ठाकुर ने अदालत से अनुरोध करते हुए कहा है कि ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ या उनके पुत्र प्रिंस चार्ल्स को कॉमनवेल्थ गेम के उद्घाटन से रोका जाए और भारत के राष्ट्रपति को इन खेलों के उदघाटन के लिए आमंत्रित किया जाए।
मुलायम सिंह यादव सपा मुख्यालय पर एक संवाददाता सम्मेलन में कॉमनवेल्थ खेलों में भारत के अपमान और भ्रष्टाचार से काफी नाराज दिखे और उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कहा कि इन खेलों का उद्घाटन भारत की राष्ट्रपति पतिभा देवी सिंह पाटिल से ही कराया जाए अन्यथा यह भारत का घोर अपमान होगा कि ब्रिटेन के राजकुमार उद्घाटन करें। उन्होंने कहा कि यदि ब्रिटेन की महारानी भी यहां आएं तो उनका स्वागत किया जाना चाहिए किंतु उद्घाटन का कार्य भारत की राष्ट्रपति ही करें। मुलायम बोले कि यह उद्घाटन आयोजन गुलामी की मानसिकता है और भारत के स्वाभिमान के खिलाफ है। यह भारत के राष्ट्रपति का भी अपमान है, कम से कम मैं तो इस कार्यक्रम में नहीं जाऊंगा। महारानी का बेटा खेलों का उद्घाटन करे और भारत की राष्ट्रपति उनके बगल में खड़ी हों इससे बड़ा भारत का अपमान और क्या होगा?
मुलायम सिंह यादव ने इन खेलों में घटिया निर्माण, दिल्ली की सड़कों और चौराहों को तोड़ने को लेकर भी भारी नाराजगी व्यक्त की और उन लोगों को आड़े हाथों लिया जो कह रहे हैं कि खेल हो जाने दीजिए बाद में जांच हो सकती है। उन्होंने कहा कि इस खेल में कम से कम एक लाख करोड़ रूपये खर्च किए जाएंगे जिसमें कम से कम 72 हज़ार करोड़ रूपये तो खर्च हो चुके हैं। दिल्ली की सड़कें पहले से ही बहुत अच्छी बनी हैं और इन खेलों के लिए कोई नया स्टेज भी नहीं बना है फिर इतनी बड़ी रकम खर्च होने का क्या औचित्य है? दिल्ली की सड़कों और अच्छे खासे बने चौराहों को तोड़कर इस पैसे की उपयोगिता सिद्ध करने की असफल कोशिश की जा रही है। यह बड़े भ्रष्टाचार का मामला है जिसमें कई महत्वपूर्ण लोग शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने भी खेल कराए थे मगर ऐसा नहीं किया था जैसा आज हो रहा है। इतने पैसे में तो पूरे देश भर में जिलों-जिलों में स्टेडियम बन जाते जिनमें खूब खिलाड़ी निकलते। उन्होंने कहा कि आम जनता इन राष्ट्रमंडल खेलों के खिलाफ हैं।
नूतन ठाकुर ने अपनी रिट याचिका में भारत सरकार, कैबिनेट सचिव, सचिव युवा एवं खेल मामले, विदेश सचिव और कॉमन वेल्थ गेम्स आयोजन समिति आदि को इसमें प्रतिवादी बनाते हुए अदालत से यह अनुरोध किया है कि प्रतिवादियों को यह आदेशित किया जाए कि वे भारत के राष्ट्रपति को इन खेलों के उदघाटन के लिए आमंत्रित करें साथ ही सरकार को यह आदेश दिया जाये कि यह कॉमन वेल्थ जैसी असमानता के आधार पर बनी संस्था से वह तत्काल खुद को अलग करे। याचिका में यह भी निवेदन किया गया है कि भारत भविष्य में कभी भी कॉमनवेल्थ खेलों और कॉमनवेल्थ के दूसरे आयोजनों में हिस्सा न ले। याची का कहना है कि भारत के प्रतिनिधि के लिए जो दो प्रकार की नामावली प्रयुक्त होती है- कॉमनवेल्थ देशों में उच्चायुक्त और अन्य देशों में राजदूत, उसे भी समाप्त किया जाए।
याचिका में यह अंतरिम राहत मांगी गयी है कि कॉमनवेल्थ खेल 2010 नई दिल्ली में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ या उनके पुत्र राजकुमार चार्ल्स को उद्घाटन करने से रोका जाए और यह उदघाटन भारत के राष्ट्रपति से कराने के आदेश दिए जाएं। नूतन ठाकुर ने कहा है कि भारत के संविधान कि प्रस्तावना में साफ अंकित है- 'हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न, लोकतांत्रिक प्रजातंत्र बनायेंगे' पर कॉमनवेल्थ जिसे पहले ब्रिटिश कॉमनवेल्थ कहा जाता था और जिसका उदय 1884 में लॉर्ड सालिसबरी ने किया था, शुरू से ही असमानता और वर्चस्व के सिद्धांत पर आधारित था, इसमें केवल वही देश शामिल हो सकते हैं जो कभी ब्रिटेन के गुलाम रहे हों, इसलिए इस प्रकार से यह गेम गुलामी का प्रतीक है।
नूतन ठाकुर ने कहा है कि ब्रिटिश शब्द 1949 के लन्दन घोषणा के बाद भले ही समाप्त कर दिया गया हो पर आज भी ब्रिटेन का सम्राट ही इसका अध्यक्ष होता है और इसका मुख्यालय भी मेलबोरो हाउस, पाल माल, लन्दन में है जो ब्रिटेन की प्रभुता का स्पष्ट प्रतीक है। रिट याचिका में यह भी कहा गया है कि क्वींस बेटन गुलामी और ब्रिटिश प्रभुत्व का सबसे बड़ा प्रतीक है जो बकिंघम पैलेस से निकल कर बाकी देशों में घूमती है और जिसके बाद ब्रिटेन का सम्राट आ कर खेलों का उदघाटन करता है, इसलिए अनुच्छेद 14 तथा 21 के मौलिक अधिकारों के हनन होने की दशा में यह रिट याचिका दायर की गयी है।

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