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फरीदाबाद से रोज़ कहां गायब हो रहे हैं लोग?

संदीप पाराशर

संदीप पाराशर

फरीदाबाद। आश्चर्यजनक तरीके से लापता हो रहे यहां के बालिग और नाबालिगों को उनके परिजन ढूंढ रहे हैं लेकिन उनमें से अधिकांश का कोई सुराग नहीं लग रहा है। उन्हें जमीन निगल रही है या आसमान उड़ा ले जा रहा है, अगर पुलिस से पूछें तो उसके लापता वाले रजिस्टर में दर्ज है कि या तो वह घर छोड़ गया है या अपनी मर्जी से कहीं गया है। इन गुमशुदगियों की बला से पल्ला झाड़ने वाली इन लाइनों पर यकीन भी करें तो कैसे क्योंकि इस तरह से गायब होने क्रम लगातार जारी है बल्कि और जोरों पर है। हरियाणा पुलिस को जैसे इन घटनाओं से कोई मतलब नहीं है इसलिए यहां केवल गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करने वाली और जांच के नाम पर केवल लीपापोती करने की महज औपचारिकता को पूरा किया जा रहा है जिससे आज तक सही से यह पता नहीं लग पाया कि आखिर गायब होने वाले बालिग-नाबालिग जा कहां जा रहे हैं? इसी तरह से इनके गायब होने का सिलसिला चलता रहा तो एक दिन अवश्य ही यह मुद्दा पुलिस और हरियाणा सरकार के लिए भारी मुसीबत का कारण बन सकता है।
पुलिस विभाग में दर्ज गुमशुदगी के ये आंकड़े नजरअंदाज करना किसी के लिए भी आसान नहीं है। आकड़ों पर नजर डालें तो ये
जन मानस को तो चौंकाने वाले हैं लेकिन पुलिस के लिए नहीं। हर दूसरे-तीसरे दिन एक बालिग या नाबालिग के गायब होने का हिसाब है। ये आंकड़े तो केवल वे हैं जो रजिस्ट़र में दर्ज किए गए हैं जो दर्ज नहीं किए गए उनका कुछ पता नहीं। हो सकता है कि और भी गुमशुदा हों। इन आंकडों के अनुसार इस वर्ष मात्र छह महीने में जनवरी से जुलाई तक 117 नाबालिग बच्चों के नाम गुमशुदा रजिस्टर में दर्ज किए गए। पुलिस के अनुसार, ये बगैर बताए अपने घरों से कहीं दूर जा पहुंचे हैं, जिनका कोई अता-पता नहीं है। इन बच्चों की उम्र 14 वर्ष से कम बताई गई है। अब अगर बालिगों के आकड़ों की तरफ बढ़ें तो वह भी कम नहीं हैं। फरीदाबाद से बाहर129 बालिगों ने अपने घर को या तो छोड़ दिया या फिर अपनी मर्जी से कहीं चले गए। अपनी मर्जी से कहीं चले गए का अर्थ है कि पुलिस ने अपने रिकार्ड में ऐसा ही लिखा है कि ये अपनी मर्जी से कहीं चल गए हैं। यह पुलिस की गुमशुदगी की रिपोर्ट का तकिया कलाम है।
अब बच्चों की ओर चलें तो औसतन जनवरी से जुलाई तक 17 बच्चे एक महीने मे ही गायब हुए। अन्य महीनों मार्च, मई, जुलाई का गुमशुदगी का आंकड़ा 20 के आसपास रहा। अगर बालिगों और नाबालिगों को देखें तो केवल जुलाई माह में 20 बालिग व 29 नाबालिग गायब हुए। इसका सीधा का अर्थ है कि जुलाई में 39 बालिग व नाबालिग अपने घरों से बेघर हो गए। इस माह पुलिस ने कुछ मेहनत की। उसने आफिस में बैठकर ही दो मामलों को छोड़कर 37 मामलों को सुलझाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। बाकी मामलों में पुलिस की कार्यशैली पर गौर करें तो वह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है। जिला पुलिस ने कड़ी मेहनत के बाद जनवरी में गायब हुए 11 नाबालिग व 22 बालिगों में से 14 की गुमशुदगी को सुलझाते हुए 19 मामलों को फिर भी ठंडे बस्ते में डाल दिया।
इसके बाद फरवरी में आइए! जिला पुलिस ने 14 नाबालिग व 26 बालिगों में से 20 मामलों को सुलझाने का दावा किया तो 20 को फिर रद्दी की टोकरी में डाल दिया। इसी प्रकार मार्च में जिला पुलिस ने अपने रिकार्ड में 20 नाबालिग व 14 बालिगों के गायब होने के मामले दर्ज किए जिनमें से जिला पुलिस मात्र 15 मामलों को सुलझा पाई बाकी बचे 19 मामलों पर पुलिस ने कोई गौर नहीं किया। पुलिस के लिए अप्रैल काफी परेशानियों वाला रहा जहां पुलिस ने 19 नाबालिग व 15 बालिगों की गुमशुदगी का मामला दर्ज किया। इसमें जिला पुलिस मात्र 7 मामले ही सुलझा सकी। इनमे आज भी 27 की फाइलें पुलिस कार्यालय में धूल चाट रही हैं।
लेकिन समस्या इस महीने से ज्यादा जिला पुलिस के लिए मई के महीने में रही जो पुलिस के लिए अधिक गर्मी के साथ-साथ ज्यादा आराम दायक रहा। पाचवें महीनें में पुलिस मात्र चार मामलों को ही सिरे चढ़ा सकी बाकी रहे 30 मामलें आज भी जिला पुलिस की फाइलों में बंद हैं। छठे महीनें में जिला पुलिस ने अपने कार्यालय में 13 नाबालिग व 19 बालिग के गायब होने की सूचना दर्ज की। इसमें पुलिस ने मात्र 11 मामलें ही सुलझाए और 21 मामलों की फाइलों को पीछे सरका दिया। अब जुलाई के मामलों पर गौर करें तो इस महीने में 20 नाबालिग व 19 बालिग अपने घरों से दूर हो गए। इनमे से पुलिस ने मात्र 2 मामलों को सुलझाने का दावा करते हुए अपनी पीठ थपथपाई, लेकिन यहां पुलिस की कार्यशैली ज्यादा गंभीर रही जिसमें जिला पुलिस 37 मामलों का जिक्र नहीं करते हुए अपनी वाहवाही में लगी रही। इस बारे में जब जिला पुलिस से जब बात की गई तो उसका जवाब भी कम हास्यास्पद नहीं था। पुलिस का कहना है कि पुलिस को इसके अलावा भी काफी कार्य करने होते हैं। गुमशुदा मामलों पर वह अभी विचार कर रही है। यहां पुलिस का विचार करना भी कम नहीं है।
जिला पुलिस इस वर्ष के इन छह-सात महीनों में सबसे ज्यादा जगह-जगह नाके लगाकर या तो चालान काटने में मस्त रही है या फिर सार्वजनिक रूप से शराब पीने वालों के पीछे अपना कामकाज छोड़कर उनको सुधारने में लगी रही। देखा गया है कि जिला पुलिस किसी न किसी बहाने आमजन मानस के बीच रहने का प्रयास करती रही, जिसके कारण आम व्यक्ति को काफी परेशानी का सामना कर पड़ा। पुलिस ने अपनी इस कमाई का कोई भी मौका अपने हाथों से जाने नहीं दिया। जहां भी पुलिस को मौका मिला वहीं पैसा ऐंठ लिया चाहे वह एसटीडी बूथ रहा, या फिर वाहन चालान मौका या फिर अन्य कोई मौका।

बताया तो यह भी जाता है कि पुलिस अपने कार्य से दूर जुआ खेलने वालों को पकड़ती तो रही,किंतु बगैर कोई मुकद्मा दर्ज किए। कुछ वाहन चालकों का आरोप है कि पुलिस कर्मी कभी भी कहीं भी अपनी चालान बुक लेकर खड़े हो जाते हैं और जब तक मन होता चालान करते हैं, इसके बाद मन भर जाता तो कुछ समय रूक कर फिर चालन का कार्य आरम्भ कर देते हैं। पैसे न देने पर सरकार का भला हो जाता है और पैसे देने पर पुलिस का भला हो जाता है। डगर अनजान पत्रकार इनके पल्ले आ जाता तो उससे या तो अपने सीनियर से बात कराने की बात कहते हैं या फिर पहचान पत्र की मांग करते हुए मामले को रफा-दफा करने में अपने भलाई समझते हैं।

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