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ग्राम पंचायतों की आरक्षण-आवंटन नियमावली में संशोधन

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्राम पंचायतों के प्रधान पदों एवं स्थानों (वार्डों) के आरक्षण एवं आवंटन हेतु उत्तर प्रदेश पंचायत राज (स्थानों और पदों का आरक्षण और आवंटन) नियमावली, 1994 में संशोधन कर दिया है। ग्राम पंचायतों के वर्ष 2010 में होने वाले सामान्य निर्वाचन के लिए आरक्षण और चक्रानुक्रम हेतु वर्ष 1995 की व्यवस्था को अपनाया जायेगा। मुख्यमंत्री मायावती की अध्यक्षता में सम्पन्न मंत्रिपरिषद की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मन्जूरी दी गई। मन्त्रिपरिषद ने ग्राम पंचायतों के आगामी सामान्य निर्वाचनों के लिए आरक्षण और चक्रानुक्रम की व्यवस्था अपनाए जाने हेतु नियमावली 2010 को लागू करने का फैसला किया है। अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग के लिए ग्राम पंचायत प्रधान के पद, ग्राम पंचायतों में उनकी प्रतिशत आबादी के अवरोही क्रम में चक्रानुक्रम से इस प्रकार से आरक्षित किये जायेंगे कि जहां तक हो सके वहां उसी श्रेणी के लिए पुनः आरक्षित न हों, जिसके लिए वह पूर्व के चुनाव में आरक्षित थे। प्रत्येक ग्राम पंचायत के सदस्यों के लिए वार्डों का अनुसूचित जन जाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग के लिए आवंटन उनमें उनकी अधिकतम आबादी के आधार पर रोटेशन से किया जायेगा। अर्थात् पूर्व निर्वाचनों में किसी श्रेणी के लिए आरक्षित वार्ड आगामी निर्वाचन में, जहां तक हो सके, उसी श्रेणी के लिए आरक्षित नहीं किया जायेगा।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2005 में त्रि-स्तरीय पंचायतों के निर्वाचन हेतु अपनाई गई आरक्षण एवं चक्रानुसार व्यवस्था से विसंगति उत्पन्न हो गई थी। वर्ष 2005 की व्यवस्था के अनुसार ऐसी ग्राम पंचायत, जिनमें अनुसूचित जन जाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है, उनमें प्रधान के पद को उसी जाति/वर्ग के लिए आरक्षित किया गया और चक्रानुक्रम उसी जाति/वर्ग के पुरूष/स्त्री के मध्य रहा। इस व्यवस्था का परिणाम यह हुआ कि ऐसी सभी ग्राम पंचायतें, जिनमें अनुसूचित जाति की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक थी, सदैव के लिए अनुसूचित जाति तथा ऐसी ग्राम पंचायतें, जिनमें पिछड़े वर्ग की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक थी, वे ग्राम पंचायतें सदैव के लिए पिछड़ा वर्ग हेतु आरक्षित हो गईं। इसी प्रकार अनारक्षित ग्राम पंचायतें भी सदैव के लिए अनारक्षित की स्थिति में आ गईं। यदि यह व्यवस्था आगामी निर्वाचन में अपनाई जाती तो संविधान की भावना के अनुरूप ग्राम प्रधान के पदों में चक्रानुक्रम से आरक्षण करना सम्भव नहीं होता।
वर्ष 2000 में लागू व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक ग्राम पंचायत के सदस्यों के लिए प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों (वार्डों) का अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़े वर्ग हेतु आवंटन, उनकी अधिकतम आबादी के आधार पर किया गया, किन्तु आरक्षण में रोटेशन नहीं किया गया। यह व्यवस्था वर्ष 2005 में भी जारी रही। इस व्यवस्था का परिणाम यह हुआ कि ग्राम पंचायत के जो वार्ड वर्ष 1995 में जिस श्रेणी के लिए आरक्षित हुये थे, वह सदा के लिए उसी श्रेणी हेतु आरक्षित हो गये। इससे समाज के प्रत्येक वर्ग को संवैधानिक भावना के अनुरूप चुनाव में भाग लेने हेतु समान अवसर प्राप्त नहीं हो पाए। इस विसंगति को दूर करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने इस वर्ष के ग्राम पंचायतों के चुनावों में आरक्षण और चक्रानुक्रम के सम्बंध में वर्ष 2005 की व्यवस्था के स्थान पर वर्ष 1995 की व्यवस्था को अपनाने का निर्णय लिया है। इसके साथ विकास खण्डवार ग्राम प्रधान के पदों के वितरण सम्बंधी वर्ष 2000 के प्राविधानों के अन्तर्गत की गई व्यवस्था को अपनाया जायेगा।

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