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यूनीकोड की समस्या पर 'प्रखर' ने काबू पाया

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जगदीप सिंह दांगी-jagdeep singh dangi

ग्वालियर। कम्प्यूटर इंजीनियर जगदीप सिंह दांगी ने हिंदी सॉफ़्ट्वेयर 'प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक' को विकसित किया है जो देवनागरी को सौ प्रतिशत शुद्धता के साथ यूनीकोड में परिवर्तित कर देता है। नेट पर यूनीकोड की शुद्धता की एक बड़ी समस्या रही है इससे यह लाभ होगा कि इंटरनेट पर हिंदी की उपयोगिता तेजी से बढ़ जाएगी क्योंकि 'प्रखर' ने इस समस्या को शुद्धता के साथ नियंत्रित किया है। जगदीप सिंह दांगी अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी और प्रबंधन संस्थान में वैज्ञानिक के पद पर काम कर रहे हैं। उन्होंने सूचना क्रांति के प्रति स्पर्धात्मक दौर में लगभग ढाई वर्ष के अथक प्रयास से कंप्यूटर सॉफ़्ट्वेयर क्षेत्र में यह अनूठा और कठिन सा समझा जाने वाला काम किया है।

'प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट' परिवर्तक का नवीन संस्करण लगभग 186 तरह के विभिन्न प्रचलित साधारण देवनागरी (हिंदी,संस्कृत,मराठी) फ़ॉन्ट्स युक्त पाठ को शत-प्रतिशत शुद्धता के साथ यूनिकोड फ़ॉन्ट (मंगल) युक्त पाठ में परिवर्तन के लिए एक अनूठा सॉफ़्टवेयर है। यह सॉफ़्टवेयर जटिल से जटिल शब्दों को जिनमें नुक़्ता और अर्द्ध 'र्' का कितना ही जटिल से जटिल संयोजन क्यों न हो सिंबल टेबल से लिये हुए संयुक्ताक्षर युक्त पाठ को भी पूरी शुद्धता के साथ परिवर्तन करने में पूर्ण सक्षम है।
माइक्रोसॉफ़्ट टेबल हो या अन्य कोई और फ़ॉन्ट परिवर्तक वह सभी नुक़्तायुक्त, अर्द्ध 'र्' युक्त और सिंबल टेबल से लिये हुए कई संयुक्ताक्षर युक्त पाठ को यूनिकोड में परिवर्तन करने में पूर्णतः असमर्थ हैं। परन्तु शुद्धता के मामले में और बहुत अधिक प्रकार के फ़ॉन्ट्स को परिवर्तन करने की दृष्टि से प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक एक महत्वपूर्ण सॉफ़्टवेयर है। इस सॉफ़्टवेयर से कंप्यूटर पर किसी भी प्रकार के देवनागरी अस्की/इस्की (8 बिट कोड, कृतिदेव, चाणक्य, भास्कर, शुषा आदि फ़ॉन्ट..) फ़ॉन्ट्स आधारित पाठ को यूनिकोड (16 बिट कोड, मंगल फ़ॉन्ट) फ़ॉन्ट आधारित पाठ में पूरी शुद्धता के साथ बदल सकते हैं। प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक बहुत ही उपयोगी सॉफ़्टवेयर है। इसके द्वारा हिंदी वेबसाइटों पर हिंदी में प्रचलित अस्की/इस्की (8 बिट कोड, कृतिदेव, चाणक्य, भास्कर, शुषा आदि फ़ॉन्ट) फ़ॉन्ट्स आधारित पाठ सौ प्रतिशत शुद्धता के साथ यूनिकोड (16 बिट कोड, मंगल फ़ॉन्ट) फ़ॉन्ट आधारित पाठ में तत्काल परिवर्तित किया जा सकता है।
अभी तक कम्प्यूटर पर सबसे बड़ी समस्या हिंदी में अलग-अलग फ़ॉन्ट में लिखाई की थी। एक फ़ॉन्ट में लिखे गये पाठ को दूसरे फ़ॉन्ट में बदलना आसान नहीं था। लेकिन इस सॉफ़्ट्वेयर की मदद से यह समस्या पूरी तरह समाप्त हो जाती है। आज कई सरकारी और निज़ी वेबसाइट्स अस्की/इस्की (8 बिट कोड) फ़ॉन्ट्स आधारित हैं। अस्की/इस्की (8 बिट कोड) फ़ॉन्ट्स आधारित वेबसाइट्स के पाठ को इंटरनेट के माध्यम से सर्च करने पर काफी दिक्कत होती है या सीधा कहें कि सर्च ही नहीं होता, अगर वेबसाईट्स को यूनिकोड में परिवर्तित कर दिया जाये तो वह आसानी से इंटरनेट पर सर्च हो सकेंगी, इस दृष्टि से यह सॉफ़्टवेयर सरकार के हित में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। वर्तमान में यह सॉफ़्ट्वेयर लगभग 186 तरह के विभिन्न अस्की/इस्की (8 बिट कोड) फ़ॉन्ट्स (जैसे कि अर्जुन, अमर उजाला, भास्कर, बराहा देवनागरी, चाणक्य, डेवलिस, कृतिदेव, नई-दुनिया, शुषा, डीवीटीटी यागेश, श्रीलिपि, योगेश, युवराज आदि) आधारित देवनागरी पाठ को यूनिकोड आधारित पाठ में बदलने में पूर्ण सक्षम है। संस्थान के संचालक ने दांगी की क्षमता को देखते हुए संस्थान के लिए हिंदी में वेबसाइट डेवलप करने का कार्य सौंपा है।
एक फ़ॉन्ट में लिखे गए शब्दों को दूसरे फ़ॉन्ट्स में बदलना आसान नहीं था, लेकिन इस साफ्टवेयर की सहायता से ऐसा किया जा सकता है। ईमेल या चैटिंग में हिंदी शब्द लिखने के लिए उन्हें पहले अंग्रेजी में लिखा जाता है, जो बाद में हिंदी शब्दों में बदल जाते हैं। इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है। यह काफी उबाऊ भी होता है। अमेरिका दूतावास ने फ़ॉन्ट्स परिवर्तक के लिए अच्छे साफ्टवेयर देने के लिए याहू, गूगल और माइक्रोसाफ्ट को निमंत्रण दिया था, लेकिन वे शत-प्रतिशत शुद्धता वाला परिवर्तक उपलब्ध नहीं करा सके। जगदीप सिंह दांगी ने यह साफ्टवेयर बनाने में सफलता हासिल की। इसे अमरीकी दूतावास ने अपना लिया है। दांगी ने शब्दकोश, ग्लोबल वर्ल्ड ट्रांसलेटर नामक साफ्टवेयर भी बनाया है। उनके बनाए साफ्टवेयर प्रखर देवनागरी लिपि से रेमिंग्टन की-बोर्ड पर यूनिकोड आधारित देवनागरी टंकण किया जा सकता है।
जगदीप दांगी का जन्म 15 मई 1977 को विदिशा जिले की गंजबासौदा तहसील के ग्राम भुंआरा में हुआ। उन्होंने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की है जबकि बीए की डिग्री कम्प्यूटर साइंस में विदिशा से प्राप्त की। जगदीप ने चार साल के कठोर परिश्रम से घर पर ही विश्व का प्रथम हिंदी इंटरनेट एक्सप्लोरर आई-ब्राउजर++, हिंदी-अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश, ग्लोबल वर्ड ट्रांसलेटर (अनुवादक) नामक सॉफ़्टवेयर बनाए हैं, जिसके लिए वर्ष 2007 में उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज किया जा चुका है। मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग और आईटी विभाग ने इस सॉफ़्टवेयर की उपयोगिता को देखते हुए उनसे विभागीय सॉफ़्टवेयर विकसित करवाए हैं, इसके अलावा कई विशेषज्ञों ने भी अपने निज़ी उपयोग हेतु कई सॉफ़्टवेयर उनसे विकसित करवाए हैं।
कंप्यूटर के क्षेत्र में केबिन केयर एविलिटी फ़ाउंडेशन ने जगदीप सिंह दांगी को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार और एक लाख रूपये की राशि के साथ-साथ वर्ष 2008 का मास्टरी अवार्ड नई दिल्ली में प्रदान किया। दांगी बताते हैं कि सॉफ़्टवेयर विकसित करना उनकी रूचि है और वह पिछले 10 वर्षों से हिंदी सॉफ़्टवेयर के विकास में लगे हुए हैं। जगदीप की प्रारंभिक शिक्षा की पृष्ठभूमि पर यदि गौर किया जाए तो जगदीप दांगी उन प्रतिभाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जो गांव के स्कूलों में पढ़ाई करना निराशाजनक मानते हैं। प्रतिभाएं गांव से भी निकलती हैं और किस प्रकार दुनिया से अपना लोहा मनवाती हैं इसकी जीती-जागती मिसाल जगदीप सिंह दांगी हैं।

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