स्वतंत्र आवाज़
word map

क्या भारी पड़ेगी गजनी की गाज?

तृप्ति कप्पू

तृप्ति कप्पू

गजनी

मुंबई। गजनी ने सौ दिन तो पूरे कर लिए हैं। इसके साथ ही इस फिल्म को लेकर दर्शक समुदाय से बहुत प्रश्न भी आ रहे हैं। हाल ही में अमरीका में भारतीय मूल के एक इंजीनियर ने अपने दो बच्चे अपनी पत्नी, पत्नी के भाई, भाई की पत्नी और उनकी एक बच्ची को गोलियों से भून डाला और साथ ही खुद को भी गोली मार ली। उसकी पत्‍नी को छोड़कर इस हादसे में सभी मारे गये। पत्नी जख्मी हालत में पाई गई। शायद बच पाए या नही। ऐसी विचारहीन हिंसा के बारे में पढ़ कर फिल्म 'गजनी' का ख्याल आए बगैर नहीं रूक पाया और फिर मन में इस फिल्म से और इसके बनाने वाले मुरुगदोस और आमिर खान से जितने परेशान थे वो उठ खड़े हुए।

क्या आज कल के दौर में भी ऐसी विचारहीन (प्रेमिका का मारे जाना अगर इतनी हिंसा का सही कारण होने लगा तो समाज में जितने प्रेमियों की प्रेमिकाएं उन्हें नहीं मिली हैं, उन सबको लहूलुहान करने निकल पड़ना चाहिए) हिंसात्मक फिल्म बननी चाहिए? क्या मुरुगदोस और आमिर खान किसी तरह इतनी हिंसा का न्यायिक स्पष्टीकरण दे सकते हैं? और एक और अहम सवाल क्या ऐसी फिल्म की इतनी सराहना होनी चाहिए?

गजनी का हिट होना इस बात का संकेत है की लोगों ने इसे पसंद किया है। ऐसा होना चिंता का विषय भी है और दुख का कारण भी और यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्यों? दर्शकों ने शायद इसे आमिर के लिए पसंद, शायद गानों के लिए, शायद आमिर के (सिक्स पैक ऐब्स) के लिए। वजह जो भी हो, पसंद तो किया। ज्यादातर दर्शकों को ऐसा लगा भी कि फिल्म में हिंसा बहुत ज्यादा थी। यह इस बात का संकेत हैं कि आम दर्शक शायद अभी भी इस बात को लेकर अंजान हैं कि ऐसी फिल्मों का सबसे ज्यादा नकारात्मक असर उन्हीं पर होता है।

लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि फिल्मकार भी ऐसी फिल्मों के नकारात्मक असर से अंजान हो जायें? जैसी कि मुरुगदोस और आमिर हो गए? मुरुगदोस शायद इस बात को बिल्कुल भूल गए कि सिनेमा मास काम्युनिकेशन के सबसे सशक्त माध्यमों में से एक है। फिल्में समाज का आइना हैं और उनमें वही तो दिखाया जाएगा जो समाज में हो रहा है। यह कहने से बात खत्म नहीं हो जाती (मुरुगदोस ने तो शायद यह भी नहीं कहा है) समाज का आईना होने के अलावा फिल्मों के अहम मकसद है सही पॉजीटिव संदेश देकर दर्शकों के जीवन को पॉजीटिव तरीके से छूना। मुरुगदोस को शायद फिल्म मेकिंग की यह बेसिक सी बात सीखने की जरूरत है। और अगर वो इस बात को जानते समझते हैं तो इतनी हिंसा का क्या स्पष्टीकरण देना चाहेंगे?

आमिर खान का यह कहना है कि उन्होंने ये फिल्‍म इसलिए की क्योंकि उन्हें इस फिल्म की लव स्टोरी बहुत अच्छी लगी, उन्हें छू गई और यह भी कि उन्हें लगा कि यह फिल्म बहुत चलेगी। आमिर खान को यह बात पता होनी चाहिए कि जो लव स्टोरी उन्हें बहुत छू गई थी वही लव स्टोरी पहले भी हिंदी फिल्मों में दिखाई जा चुकी है। आशा पारेख मनोज कुमार अभिनीत फिल्म 'साजन' और ऋषि कपूर नीतू सिंह अभिनीत फिल्म 'झूठा कहीं का', इन दोनों फिल्मों में बिल्कुल यही लव स्टोरी का ट्रेक था जो कि हूबहू गजनी में छाप दिया गया है और बाकी रही फिल्म बहुत चलने की बात तो क्या ऐसा लगना आपको कुछ भी दिखाने की इजाजत दे देता है? और कोई फिल्म करने की ऐसी वजह देता तो ठीक था लेकिन आमिर खान से यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी।

सन् 1980 के दशक में ऐसी ही बगैर मतलब की हिंसात्मक फिल्मों का, जो कि ज्यादातर साउथ में ही बनती थीं, दौर काफी ज़ोर पर था। इसी के चलते जितना पतन हिंदी सिनेमा का 1980 के दशक में हुआ इतना कभी नहीं हुआ। चूंकि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री एक ऐसी जगह है जहां 'भेड़ चाल' का चलन बहुत है, तो अब साल 2009 में गजनी जैसी फिल्म का हिट होने की बात अगर ऐसी ही हिंसात्मक फिल्मों का दौर फिर शुरू हो गया तो (भगवान न करे ऐसा हो सभी फिल्मकार गैर जिम्मेदार तो नहीं होते) क्या मुरुगदोस और आमिर खान हिंदी सिनेमा के इस पतन का श्रेय खुशी-खुशी अपने ऊपर पर लेना चाहेंगे?

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]