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पटना। यूं तो बिहार का चुनाव जिसकी लाठी उसकी भैंस की ही तर्ज पर लड़ा जाता रहा है, मगर इस बार लाठी तो रहेगी ही उसके साथ-साथ विकास का मुद्दा भी रहेगा। पहली बार बिहार में दो धुर विरोधी ताकतें सत्ता में हैं और दोनों को ही बिहार की जनता के सामने अपना-अपना रिपोर्ट कार्ड रखना है, क्योंकि दोनो ने ही एक दूसरे से बढ़कर बिहार में विकास के दावे किए हैं। मुख्यमंत्री नितीश कुमार अभी तक बिहार के शासन तंत्र को ठीक करने और बाढ़ की तबाही से निपटने में ही लगे हुए हैं। उन्होंने काम भी बहुत किए हैं जिससे बिहार की जनता में उनकी अच्छी छवि मानी जाती है। ऐसे ही केंद्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहारियों को रेलवे में भर्ती करके बिहार पर अपनी पकड़ बनाए रखी है। पर यह आरोप भी लालू यादव का पीछा कर रहा है कि उन्होंने नितीश की विकास योजनाओं में अपनी टांग अड़ाए रखने में भी कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। इसका नुकसान बिहार को ही हुआ। यहां की तीसरी बड़ी ताकत और उत्तर भारत के प्रमुख दलित नेता एवं केंद्रीय इस्पात मंत्री राम विलास पासवान का भी बिहार में इकबाल है उनका भी बिहार के विकास में योगदान माना जाता है। इसलिए बिहार में ये तीनों टक्कर पर हैं और उनकी चुनाव तैयारियां भी किसी से कम नहीं हैं।
बिहार में पहली बार ऐसा हो रहा है कि लाठी का चक्कर छोड़ विकास को चुनावी मुददा बनाया जा रहा है। यह इसलिए की बिहार की तीन बड़ी राजनीतिक ताकतें नितीश लालू और पासवान सत्ता में हैं इसके बाद भी अगर बिहार में विकास का रोना रोया जाए तो यह इन तीनों की ही विफलता मानी जाएगी। इस बार लालू यादव और रामविलास पासवान बिहार में मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और इन दोनो की सत्तान्मुख पार्टी कांग्रेस इनसे अलग चुनाव मैदान में उतरी है। हालांकि लालू और पासवान दोनो ही कांग्रेस के करीब हैं और चुनाव बाद फिर साथ-साथ चलने की बात कह रहे हैं। पंद्रह साल तक बिहार की सत्ता संभालने वाले लालू प्रसाद जहां पहले के चुनावों में सोशल इंजीनियरिंग की बात करते थे,वहीं आगामी लोकसभा चुनाव के लिए हर जनसभा में अपने किए गए कामों को गिना रहे हैं। देश की राजनीति का केन्द्र कहे जाने वाले बिहार की राजधानी पटना में फरवरी में आयोजित एक कार्यक्रम में लालू यादव ने छत्तीस हजार किलोमीटर सड़कों के निर्माण का एक साथ शिलान्यास और उदघाटन किया,साथ ही उन्होनें अंतरिम रेल बजट में घोषित भागलपुर रेल मण्डल का उदघाटन भी एक मार्च को कर दिया। लालू यादव ऐसे मौकों पर भी राज्य सरकार को कोसना नही भूलते। उन्होनें बिहार सरकार को निशाना बनाते हुए कहा कि केन्द्र सरकार ने प्रदेश के विकास के लिए कई योजनाओं के मद में भारी राशि दीहै,मगर प्रदेश की सरकार उसका उपयोग नहीं कर पा रही है।
उधर राज्य की नितीश सरकार भी अपने कार्यों को ही चुनावी मुददा बनाने जा रही है। छब्बीस फरवरी को उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए विधान सभा में 47,446 करोड़ रूपए का बजट पेश किया, जिसमें 16,000 करोड़ रूपए योजना मद में और 28,020 करोड़ रूपए गैर योजना मद में खर्च करने की बात कही है। चुनावों को देखते हुए इस बजट में जेंडर बजटिंग के तहत महिलाओं पर 5,293 करोड़ रूपए खर्च करने,ग्रामीण सड़कों पर कुल बजट का 25 प्रतिशत खर्च करने का प्रावधान रखा, इसके अलावा लखीमराय, डिहरी, कटिहार, बेतिया, अररिया और अस्थावा में पालिटेक्निक खोलने की घोषणा की। बजट में महादलित और पिछड़ों के कल्याण के लिए विशेष योजनाएं चलाने की भी घोषणा की गई।
मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने 28 फरवरी को बाढ़ प्रभावित सुपौल के छातापुर के सुरपतसिंह उच्च विद्यालय के मैदान में 403 करोड़ रूपये की योजनाओं का शिलान्यास और उदघाटन किया। उन्होनें बाढ़ प्रभावितों के बीच गृह क्षति अनुदान,कृषि इनपुट अनुदान और भूमि क्षति अनुदान का भी शुभारम्भ किया। नीतिश कुमार का कहना है कि हमारा चुनावी मुददा विकास और केंद्र द्वारा बिहार की उपेक्षा ही रहेगा। सड़कों के निर्माण का मोर्चा संभाल रहे पथ निर्माण मंत्री डॉ प्रेम कुमार जहां नए वित्तीय वर्ष में एसएसडीपी फेज 2 में 755 करोड़ रूपये की योजना लेकर आए हैं,वहीं उनका कहना है कि केन्द्र सरकार पूर्व की केंद्र सरकार में घोषित राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण के लिए धन देने में काफी परेशानियां खड़ी कर रही है।
बिहार की राजनीति पर नज़र रखने वालों का अभिमत है कि बिहार में इस बार चूंकि पक्ष और विपक्ष के लगभग सभी बड़े नेता किसी न किसी समीकरण के तहत सत्ता में बने हुए हैं तो उनके लिए लोकसभा का चुनाव एक बड़ी परीक्षा होगी। कुल मिलाकर सभी की जिम्मेदारी बिहार को विकास की पटरी पर लाकर उसके अतिपिछड़े और गरीब इलाकों में जीवन स्तर ऊंचा उठाने की है, लेकिन देखा गया है कि उन तक पहुंचने की नीतियां तो जरूर बनी हैं लेकिन वे व्यवहारिक तौर पर यहां के जीवन स्तर मेंकोई अपेक्षित सुधार देखने को नहीं मिलता है। इस बार देखा जाएगा कि इन इलाकों में बिहार के सत्तासीन राजनेताओं की सत्ता समृद्घि का कितना लाभ पहुंचा।