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नेपाल में प्रचंड को दंड

यज्ञपुरूष गहिरे

प्रधानमंत्री कमल दहल प्रचंड-prime minister kamal dahal prachanda

काठमांडू। नेपाल में आखिर वही हुआ जिसकी कि शुरू से ही आशंका व्यक्‍त की जा रही थी। नेपाल के प्रधानमंत्री कमल दहल प्रचंड को अपनी विध्वंसकारी रणनीतियों की कीमत चुकानी पड़ी है। आज न उनके साथ सेना है, न सहयोगी दल और न उनका सर्वोच्च महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री का पद रहा। प्रचंड का प्रमुख आका चीन भी हाथ खड़े कर गया है।
भारत और अमेरिका सहित लगभग सभी देश कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री कमल दहल प्रचंड को अपना सेनाध्यक्ष इस प्रकार से बर्खास्त नही करना चाहिए था क्योंकि नेपाल के हालात में और अन्य देशों के हालात में बहुत अंतर है। नेपाल सरकार को इस समय वहां की जनता की सुख-समृद्धि और विकास की चिंता होनी चाहिए थी मगर सरकार माओवादियों के भेष में सक्रिय अपराधियों की ही चिंता में लग गई और यही चिंता कमल दहल सरकार की चिता बन गई। राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि यदि कमल दहल प्रचंड क्रांतिकारी आंदोलन और सरकार चलाने में फर्क करके चलते तो शायद उनको आज यह दिन नही देखना होता कि जिस जनता ने राजशाही को उखाड़कर उनके नेतृत्व में लोकतंत्र की अगुवाई की जिम्मेदारी दी थी वही जनता आज काठमांडू की सड़कों पर प्रचंड के खिलाफ आगजनी कर रही है। ऐसा लग रहा है कि जैसे राजशाही विरोध के दौर के दिन फिर से लौट आए हैं। मामला कुछ भी नहीं था। नेपाल की सेना के प्रमुख जनरल रूकमांग कटवाल नही चाहते थे कि नेपाली सेना में माओवादियों के वो लड़ाके भर्ती किए जाए जो राजशाही के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष कर रहे थे। तर्क यह था कि इससे सेना का अनुशासन भंग हो जाएगा और जो लड़ाके अब तक घोर अनुशासन में अपराधियों की तरह से व्यवहार करते रहे हैं वे सेना के काबिल नहीं हो सकते हैं। कमल दहल प्रचंड उन्हें नेपाली सेना में भर्ती करने की जिद पर अड़े थे। यह जिद इतनी आगे बढ़ी कि नेपाल फिर से अशांत अवस्था में आ गया है। कमल दहल प्रचंड के सेनाध्यक्ष को बर्खास्त करने वाले आदेश को राष्ट्रपति राम बरन यादव ने नामंजूर कर दिया है। इसकी परिणति प्रचंड के इस्तीफे के रूप में हुई। इस प्रकार नेपाल में पहली लोकतांत्रिक गठबंधन सरकार असमय पतन को प्राप्त हुई।
घटनाक्रम इस तरह से हुआ कि सरकारी आदेश का पालन नहीं करने पर नेपाल के प्रधानमंत्री कमल दहल प्रचंड ने देश के सेना प्रमुख रूकमांगा कटवाल को पद से हटा दिया जिससे नेपाल में एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा हो गया। इकसठ वर्षीय सेना प्रमुख जनरल कटवाल पर आरोप है कि उन्होंने माओवादी लड़ाकों को सेना में भर्ती करने के सरकार के आदेशों को नहीं माना इसलिए उन्हें पद से हटा दिया गया। प्रधानमंत्री की कैबिनेट की विशेष बैठक में जनरल कटवाल को पद से हटाने का फैसला होने से पहले ही सरकार के चार प्रमुख सहयोगी घटक इस फैसले के विरोध में कैबिनेट का बहिष्कार कर चुके थे। मगर जनरल कटवाल के पद से हटने से इनकार के बाद नेपाल सरकार और सेना के बीच टकराव पैदा हो गया। नेपाल में एक के बाद एक सरकार के सहयोगियों ने प्रचंड का साथ छोड़ दिया जिससे कि प्रचंड सरकार अल्पमत में आ गई। इससे पहले कि नेपाल के राष्ट्रपति देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और शांति के नाम पर देश में कानून व्यवस्था फिर से स्थापित करने के लिए प्रचंड सरकार को बर्खास्त करते, कमल दहल प्रचंड ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
कटवाल को बर्खास्त करने के बाद प्रचंड सरकार ने लेफ्टिनेंट जनरल कुल बहादुर खड़ग को फौरन नया सेना प्रमुख बना दिया था। इससे पहले सेना में खडक दूसरे स्थान पर थे और तीन माह बाद उन्हें सेवानिवृत्त होना था। खडक बहादुर को कमल दहल प्रचंड का विश्वासपात्र माना जाता है। प्रचंड सरकार के सूचना मंत्री कृष्ण बहादुर महारा ने संवाददाताओं से कहा था कि सेना प्रमुख को इसलिए हटाया गया क्योंकि वह इस बात को कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दे पाए थे कि उन्होंने सरकार के आदेश की अनदेखी क्यों की। मीडिया रिपोटों के मुताबिक जनरल कटवाल ने यह मन बना लिया था कि वे हिंसक माओवादी लड़ाकों को सेना में भर्ती करने के प्रचंड सरकार के आदेश को नही मानेंगे, चाहे इसके जो भी परिणाम हों। उधर सरकार के सहयोगी दलों में इसलिए भी प्रचंड को लेकर अविश्वास पनप रहा था कि नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रचंड के मनमाने फैसले को लागू करने से रोक दिया था। इससे नेपाल की सेना का मनोबल बढ़ा और जनरल कटवाल कमल दहल प्रचंड से टकरा गए जिसकी परिणति प्रचंड के लिए बहुत दुखदायी हुई। पता चला था कि कटवाल ने सेना मुख्यालय में आला सैन्य अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई थी जिसमें भावी घटनाक्रम पर विचार-विमर्श हुआ था माओवादी सरकार का यह निर्णय भारत समेत घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आह्वान के बावजूद आया है, जिसमें इस तरह के किसी कदम का विरोध करते हुए ऐसे फैसले सोच समझकर करने की बात कही गई थी।
नेपाल के सेना प्रमुख जनरल रूकमांगा कटवाल की बर्खास्तगी के विरोध में नेपाली कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने राजधानी की सड़कों पर जोरदार प्रदर्शन किया। सत्तारूढ़ माओवादी पार्टी के इस कदम की सारे देश में आलोचना के बाद नेपाली प्रधानमंत्री प्रचंड नेपाल के ताजा घटनाक्रम का सामना करने में विफल साबित हुए। उनकी हर बात चीन से सलाह लेने की नीति भी उनकी सरकार के पतन का एक कारण बनी। नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल [यू एम एल] और दूसरी राजनीतिक पार्टियों के साथ साथ राष्ट्रपति राम बरन यादव भी सरकार के इस निर्णय सहित और भी कई निर्णयों से खफा चल रहे थे। जब जनरल कटवाल ने बर्खास्तगी से संबंधित पत्र यह कहकर स्वीकार करने से मना कर दिया कि सरकार का यह निर्णय पूरी तरह से असंवैधानिक है और नेपाली सेना को यह पूरी तरह अस्वीकार्य है। इसके बाद से ही लगने लगा था कि सेना व सरकार में टकराव और प्रचंड सरकार के पतन का समय आ गया है। स्थानीय समाचार पत्रों में भी इस आशय की खबरें प्रकाशित हुई थीं कि जनरल कटवाल ने सेना मुख्यालय पर उच्च सैनिक अधिकारियों के साथ बैठक की।
राष्ट्रपति ने पुष्प कमल दहल प्रचण्ड को यह साफ कर दिया है कि जनरल कटवाल को हटाए जाने का उनका निर्णय कानूनी प्रक्रियाओं के अनुरूप नहीं है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति नेपाली सेना के सर्वोच्च कमांडर हैं। नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष सुशील कोइराला और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने राष्ट्रपति से मुलाकात की है। भारत और अमेरिका ने भी नेपाली सरकार को सलाह दी है कि बिना किसी आम राय के जनरल कटवाल को बर्खास्त करना अनुचित है। अब माओवादी सरकार के फैसलों को लागू करने के लिए कोई कारण ही नही रहा है। कटवाल की बर्खास्तगी भी निरस्त मान ली गई है। नेपाल में प्रचंड का अगला कदम क्या होगा? क्या वे सशस्त्र माओवादी लड़ाकों का नेतृत्व जारी रखेंगे और अपना पद छोड़ते समय नेपाल की संप्रभुता की रक्षा की जो उन्होंने बातें कही हैं, उन पर कायम रहेंगे? नेपाल के हालात तेजी से बदल रहें है, इसलिए देखिए आगे और क्या होता है।

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