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असम समझौते को लागू करने का मार्ग प्रशस्‍त

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दी उच्‍चस्‍तरीय समिति गठन को मंजूरी

बोडो समुदाय की भी लम्‍बे समय से जारी कई मांगें मंजूर

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 3 January 2019 01:28:59 PM

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में असम समझौते की धारा 6 को लागू करने के लिए एक उच्‍चस्‍तरीय समिति के गठन तथा समझौते के कुछ निर्णयों एवं बोडो समुदाय से संबंधित कुछ मामलों को मंजूरी दे दी गई है। सन् 1979-1985 के दौरान हुए असम आंदोलन के पश्‍चात 15 अगस्‍त 1985 को असम समझौते पर हस्‍ताक्षर हुए थे, जिसकी धारा 6 के अनुसार असम के लोगों की सांस्‍कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान और विरासत को संरक्षित करने एवं प्रोत्‍साहित करने के लिए उचित संवै‍धानिक, विधायी और प्रशासनिक उपाय किए जाएंगे, परंतु यह महसूस किया गया कि असम समझौते के 35 वर्ष के बाद भी समझौते की धारा 6 को पूरी तरह से कार्यांवित नहीं किया गया है, इसलिए मंत्रिमंडल ने एक उच्‍चस्‍तरीय समिति के गठन को मंजूरी दी है, जो असम समझौते की धारा 6 के आलोक में संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षात्‍मक उपायों से संबंधित अनुशंसाएं प्रदान करेगी।
असम समझौते की धारा 6 को लागू करने में उच्‍चस्‍तरीय समिति 1985 से अबतक किए गए कार्यों के प्रभाव का मूल्‍यांकन करेगी, सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करेगी और असमी लोगों के लिए असम विधानसभा तथा स्‍थानीय निकायों में आरक्षण के लिए सीटों की संख्‍या का आंकलन करेगी। उच्‍चस्‍तरीय समिति असमी और अन्‍य स्‍थानीय भाषाओं को संरक्षित करने, असम सरकार के तहत रोज़गार में आरक्षण का प्रतिशत तय करने तथा असमी लोगों की सांस्‍कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान और विरासत को सुरक्षित, संरक्षित तथा प्रोत्‍साहित करने के लिए अन्‍य उपायों की आवश्‍यकता का आंकलन भी करेगी। गृह मंत्रालय समिति की संरचना और शर्तों के संबंध में अलग से अधिसूचना जारी करेगा और आशा है कि समिति के गठन से असम समझौते को अक्षरश: लागू करने का मार्ग प्रशस्‍त होगा और यह असम के लोगों के लम्‍बे समय से चली आ रही आशाओं को पूरा करेगा। मंत्रिमंडल ने बोडो समुदाय से संबंधित लम्‍बे समय से चले आ रहे मामलों को पूरा करने के विभिन्‍न उपायों को भी मंजूरी दी है। बोडो समझौते पर 2003 में हस्‍ताक्षर किए गए थे।
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन हुआ था। बोडो समुदाय के विभिन्‍न संगठनों ने सरकार को अपनी मांगों के संबंध में लगातार कई ज्ञापन भी दिए हैं। बैठक में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बोडो म्‍यूजियम सहभाषा व सांस्‍कृतिक अध्‍ययन केंद्र की स्‍थापना, कोकराझार में ऑल इंडिया रेडियो स्‍टेशन व दूरदर्शन केंद्र को आधुनिक बनाने तथा बीटीएडी से होकर गुजरने वाली एक सुपर फास्‍ट ट्रेन का नाम अरोनई एक्‍सप्रेस रखने के प्रस्‍ताव भी मंजूर किए हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कहा है कि राज्‍य सरकार भूमि नीति और भूमि कानूनों के संबंध में आवश्‍यक कदम उठाएगी, इसके अलावा स्‍थानीय समुदायों के रीतिरिवाजों, परंपराओं और भाषाओं के शोध और प्रलेखन के लिए संस्‍थाओं की स्‍थापना करेगी। गौरतलब है कि भारतीय राजनीति में असम आंदोलन क्षेत्रीय और जातीय अस्मिता से जुड़े आंदोलनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इसके दौरान असम के भू-क्षेत्र में बाहरी लोगों खास तौरपर बांग्लादेश से आए लोगों को असम से बाहर निकालने के लिए ज़बरदस्त गोलबंदी हुई।
असम आंदोलन की विशिष्टता थी कि इसे कई स्थानों पर ग़ैरअसमिया लोगों का भी समर्थन मिला। इसने राष्ट्रीय स्तरपर स्थानीय समुदायों को होनेवाली मुश्किलों और असुरक्षा बोध पर रोशनी डाली, साथ ही इसने इस ख़तरे को भी रेखांकित किया कि भाषाई और सांस्कृतिक अस्मिता की परिभाषा जितनी संकुचित होती है, दूसरी भाषाओं और संस्कृतियों को अन्य या बाहरी घोषित करने की प्रवृत्ति मज़बूत होती चली जाती है। असम में बाहरी लोगों के आने का एक लम्बा इतिहास रहा है। औपनिवेशिक प्रशासन ने हज़ारों बिहारियों और बंगालियों को यहां आकर बसने, यहां के चाय बागानों में काम करने और खाली पड़ी ज़मीन पर खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। उस समय असम की जनसंख्या बहुत कम थी, जनसंख्या में होने वाले इस बदलाव ने असम के मूलवासियों में भाषाई, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना पैदा कर दी। इन्हीं कारणों से 1980 के दशक में ग़ैर-कानूनी बहिरागतों के ख़िलाफ़ असम में एक ज़ोरदार आंदोलन चला।

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