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दिलकुशा के खंडहरों में सूफियाना संगीत की गूँज

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Monday 11 March 2013 08:18:03 AM

sufiana music

लखनऊ। जहान-ए-खुसरो के समापन पर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों के उत्कृष्ट प्रदर्शन के बीच लखनऊ के दिलकुशा पैलेस के खंडहरों में सूफियाना संगीत की गूँज रही। समारोह के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में लेफ्टिनैंट जनरल अनिल चैत, जीओसी इन कमांड शामिल हुए। आशा दीक्षित (दिल्ली) और सफकत अली खान के साथ मालिनी अवस्थी की नजीर अकबराबाड़ी की प्रस्तुति खूब सराही गई। जहान-ए-खुसरो का 12वां पर्व हजरत निजामुद्दीन औलिया के 709वीं उर्स के मौके पर दिल्ली में 1, 2, और 3 मार्च को मनाया गया तथा लखनऊ में 8 और 9 मार्च को दूसरा पर्व मनाया गया। उत्तर प्रदेश सरकार और रूमी फाउंडेशन द्वारा प्रस्तुत, फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली के जहान-ए-खुसरो की गूँज एक बार फिर दिलकुशा पैलेस के खंडहरों में सुनाई पड़ी। यह पर्व रहस्यवाद की कविताओं में आत्मिक संगीत व ईश्वरीय नृत्य शैली में मनाया गया।
समारोह में रहस्यवादी संगीत की मधुरता और वर्तमान पीढ़ी के बीच लगातार चल रहे संवाद की भी झलक दिखाई दी। इस वर्ष जहान-ए-खुसरो में भाग ले रहे कलाकारों ने एक नए रूप में रहस्यवाद की प्रस्तुति दी। जहान-ए-खुसरो में हर वर्ष सूफी रहस्यवाद के गीत एक नए रूप में पेश किए जाते हैं। पिछले वर्षों में जहान-ए-खुसरो दिल्ली, लंदन, बॉस्टन, जयपुर, श्रीनगर और लखनऊ में आयोजित किया गया, जिसमें दुनिया के अलग-अलग शहरों दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, हैदराबाद, अजमेर, लाहौर, कराची, ढाका, ताशकंद, तेहरान, जेरूसलम, राबात, ट्यूनिश, इस्तांबुल, रोम, खारतुम, कैरो, एथेंस, बर्लिन, टोक्यो, न्यूयार्क और टोरंटो में सूफी गायकों, नृत्यकों तथा संगीतकारों ने अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इस पर्व में शुभा मुद्गल, शफकत अली खान, ईला अरूण, सुखविंदर सिंह, मालविका सर्रूकाई, शुजात हुसैन खान और आबिदा परवीन जैसे महान कलाकारों ने कार्यक्रम प्रस्तुत किए।
फिल्म निर्देशक और इस उत्सव के रचनात्मक निर्देशक मुजफ्फर अली के अनुसार इस उत्सव के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्षों में एक पूर्व एवं पश्चिम के बीच की खाई को पाटना और उपस्थित समुदाय को इसकी सर्वव्यापकता व लोकप्रियता की अनुभूति कराना है, साथ ही उत्सव में भाग लेने वालों, पर्यटकों, निगमित संगठनों तथा स्थानीय निवासियों को सूफी संगीत के माध्यम से आकर्षित करना है। जहान-ए-खुसरो के इस मौके पर रुमि फाउंडेशन ने प्रेम और समर्पण के संदेश से ओत-प्रोत कविताओं का एक प्रकाशन हू-दी सूफी वे भी जारी किया। यह प्रकाशन विश्व में अपनी तरह का अकेला है और इसमें एक आत्मा और सहअस्त्वि के विश्वव्यापी संदेश की विश्व में प्रशंसा की गई है।
पहला संस्करण भारत में बहु-संस्कृति अथवा अनेकता की पहचान कराने वाले महान सूफी कवि संत हजरत अमीर खुसरो की याद में जारी किया गया। दूसरा संस्करण मेवलाना जलालुद्दीन रुमि की 800वीं जन्मतिथि के अवसर पर जारी हुआ। जलालुद्दीन रुमि विश्व के महानतम रहस्यवाद लेखक रहे हैं। यह प्रकाशन कश्मीर के सूफियों और ऋषियों के उन सूफी कवियों को समर्पित है, जिन्होंने आपसी मेलजोल वाले समाज के लिए महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि तैयार की। पंजाब के सूफियों से संबंधित प्रकाशन अपने पूर्व वैभव और विभाजन से पूर्व पाँच नदियों की पुण्यभूमि प्रस्तुत करता है। इस प्रकाशन में दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों पर प्रकाश डाला गया है।
यह समारोह हृदय के साम्राज्य में के तौर पर नई दिल्ली में 2001 में प्रारंभ किया गया। मुजफ्फर अली निर्देशित और डिजायन किया गया जहान-ए-खुसरो देश के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नियमित रूप से आयोजित किया जाता है। उत्सव में विश्व भर से सूफी परंपरा के विख्यात कलाकार भाग लेते रहे हैं। इसमें उभरते गायकों सुफियाना संगीत सहित क्लासिकल और माडर्न डांस कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता रहा है। जहान-ए-खुसरो विश्व भर के संगीत प्रेमियों को संगीत से मंत्रमुग्ध करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। रुमि फाउंडेशन ने डॉ मंसूर हसन के संयोजन में एक कार्यदल गठित किया है, जिसे मुमताज अली खान, जयंत कृष्णा, डॉ कमर रहमान, परवीन ताल्हा, मालिनी अवस्थी, ज्योति सिन्हा और तारीक खान जैसे व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त है। गठन के पश्चात इन्होंने जश्न-ए-बेदम, जश्न-ए-वारिस, बाज-ए-दिलबारान और मार्च 2012 में लखनऊ में जश्न-ए-खुसरो के प्रथम उत्सव का आयोजन किया।

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