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'पोलावरम परियोजना से जनजातीय प्रभावित'

राष्ट्रीय जनजाति आयोग ने राष्ट्रपति को सौंपी विशेष रिपोर्ट

'प्रभावित एवं विस्‍थापित परिवारों को दिया जाए मुआवजा'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 4 July 2018 02:56:44 PM

ramnath kovind being presented a special report of the commission

नई दिल्ली। भारत सरकार में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष डॉ नंदकुमार सांई, आयोग की उपाध्यक्ष अनुसुईया उइके, आयोग के सचिव राघव चंद्र और आयोग के सदस्यों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भेंटकर उन्हें 'इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना से प्रभावित जनजाति' विषय पर आधारित विशेष रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट और इसमें की गई अनुशंसाएं संविधान की धारा 338ए (5)(ई) के अंतर्गत आंध्र प्रदेश सरकार की पोलावरम परियोजना से प्रभावित अनुसूचित जातियों के सामाजिक और आर्थिक कल्याण एवं उनके संवैधानिक सुरक्षा के प्रति उठाए गए कदमों को प्रभावी तरीके से लागू किए जाने से संबंधित है। आयोग का कहना है कि उसने 26 से 28 मार्च 2018 को आंध्र प्रदेश में पोलावरम सिंचाई परियोजना का भ्रमण किया था, ताकि परियोजना से प्रभावित अनुसूचित जाति के लोगों के पुनर्वास का मौके पर आकलन किया जा सके।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को जानकारी दी कि उसने परियोजना से प्रभावित लोगों और संबंधित अधिकारियों से विचार-विमर्श किया था। आयोग ने 28 मार्च 2018 को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री से भी विचार-विमर्श किया था, जिसके बाद यह विशेष रिपोर्ट तैयार की, जिसे 3 जुलाई 2018 को राष्ट्रपति को सौंपी। आयोग की रिपोर्ट में की गई अनुशंसाओं में है कि परियोजना से प्रभावित अनुसूचित जाति के लोगों से बातचीत के दौरान आयोग को यह जानकारी मिली है कि अधिगृहीत जमीन के बदले में उन्हें जो जमीन मिली है, वह कृषि योग्य नहीं है या तो जमीन पथरीली है या पानी उपलब्ध नहीं है, इसलिए आयोग की अनुशंसा है कि राज्य सरकार पोलावरम सिंचाई परियोजना के कमांड एरिया में पीडीएफ या पीएफ को राज्य सरकार केवल वही जमीन दे जो कृषि योग्य हो और जहां सिंचाई की सुविधा हो। आयोग ने यह पाया कि यहां बहुत से भूमिहीन अनुसूचित जाति के लोग भी विस्थापित हुए हैं, जो पहले लघु वन उत्पाद संग्रह करके अपनी आजीविका चलाते थे, लेकिन उनकी आजीविका के साधन अब खत्म हो गए हैं और राज्य सरकार को उन्हें आजीविका के अन्य स्रोत उपलब्ध कराने चाहिएं।
जनजाति आयोग का कहना है कि वह जब इद्दीकुलाकोट्टा गांव पहुंचा तो वहां ग्रामीणों ने शिकायत करते हुए बताया कि अचानक आई बाढ़ से उनके नवनिर्मित घर नष्ट हो गए हैं और अबतक इन घरों का पुनःनिर्माण नहीं किया गया है। आयोग कहता है कि आदिवासी लोगों के कष्ट को दूर करने के लिए इन घरों का राज्य सरकार द्वारा जल्द से जल्द पुनःनिर्माण किया जाना चाहिए। पोलावरम सिंचाई परियोजना के संदर्भ में मुआवजा राशि को पुनरीक्षित किया जाना चाहिए, इसके लिए आंध्र प्रदेश सरकार को विशेष अनुमति याचिका, महानदी कोलफिल्ड्स लिमिटेड बनाम मथायस ओरम व अन्य (एसएलपी) नंबर-6933/2007 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय एवं प्रक्रियाओं को ध्यान में रखना चाहिए। आयोग मानता है कि सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के तहत इसी तरह की योजना पोलावरम सिंचाई परियोजना से प्रभावित अनुसूचित जाति के लोगों के लिए भी लागू की जानी चाहिए। जनजातीय लोगों को मुआवजा देते समय अधिकतम सीमा तक 'भूमि के बदले भूमि' देने की नीति का पालन किया जाना चाहिए, इस संदर्भ में जनजातीय लोगों को 2.5 एकड़ भूमि छोड़नी चाहिए और उन्हें पोलावरम सिंचाई परियोजना के कमांड क्षेत्र के भीतर इसके बराबर या कम से कम 2.5 एकड़ जमीन प्रदान की जानी चाहिए।
'इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना से प्रभावित जनजाति' की विशेष रिपोर्ट पुनर्वास कॉलोनियों में उनकी पात्रता के अतिरिक्‍त कॉलेज, विश्वविद्यालय, स्टेडियम, एम्‍स के समान मेडिकल कॉलेज, कला और संगीत अकादमियों, केंद्रों की स्थापना जैसे सामाजिक बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। आयोग का कहना है कि अगर आवश्‍यक हो तो ऐसी बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए राज्य सरकार को खरीद के माध्यम से पर्याप्त भूमि का प्रावधान करना चाहिए। राज्‍य सरकार को विचार करना चाहिए कि संपूर्ण पुनर्वास और पुनर्स्‍थापना कार्य की जिम्‍मेदारी पुनर्वास और पुनर्स्‍थापना आयुक्त द्वारा अपने उत्तरदायित्वों के साथ-साथ एकल बिंदु के माध्‍यम से निभाई जाए, जबकि वास्तविक कार्यांवयन अन्य विभागों या एजेंसियों द्वारा किया जा सकता है। आयोग का कहना है कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जलमग्‍न होने या परियोजना शुरू होने अथवा उनके विस्‍थापन, जो भी पहले हो, इससे कम से कम चार महीने पहले पुनर्वास और पुनर्स्‍थापना कार्य पूरा हो और परियोजना से प्रभावित तथा विस्‍थापित परिवारों को मुआवजे का भुगतान किया जाए।
अनुसूचित जनजाति आयोग का कहना है कि राज्‍य सरकार को विस्‍थापित परिवारों को रोज़गार और आर्थिक अवसर प्रदान करने के लिए पुनर्वास क्षेत्र के आस-पास औद्योगिक परिसंपत्ति या केंद्र विकसित करने पर विचार करना चाहिए, राज्‍य और केंद्र सरकार को इस औद्योगिक परिसंपत्ति को 10 वर्ष के लिए कर मुक्‍त घोषित करने पर भी विचार करना चाहिए और एक शर्त होनी चाहिए कि केवल पोलावरम सिंचाई परियोजना से विस्‍थापित लोगों को ही इस औद्योगिक परिसंपत्ति में गैर-प्रबंधकीय रोज़गार दिया जाएगा। आयोग को अंदेशा है कि बांध परियोजना पूर्ण होने और प्रभावित लोगों को नए स्‍थानों पर भेजने के बाद संबंधित पुनर्वास और पुनर्स्‍थापना अधिकारियों को नई जिम्‍मेदारियां सौंपी जाएंगी, ऐसे में यह हो सकता है कि पुनर्वासित लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए और वे किसी संस्‍थागत सहायता के बगैर वे स्‍वयं संघर्ष करने के लिए मजबूर हों, इसलिए आयोग ने सिफारिश की है कि परियोजना पूर्ण होने के बाद कम से कम 5 वर्ष की अवधि के लिए विकास संबंधी कार्यों और अन्‍य कल्‍याण उपायों की निगरानी के लिए पुनर्वास क्षेत्र में पुनर्वास और पुनर्स्‍थापना अधिकारियों का एक समर्पित दल तैनात किया जाना चाहिए।

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