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बंदी की पहचान अधिनियम 1920 में संशोधन

फिंगर इंप्रेशन फोटो एवं माप लेने को कानूनी अधिकार

अपराधियों की प्रौद्योगिकी तक आसानी से पहुंच

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 22 June 2018 03:04:50 PM

hansraj gangaram ahir releasing a collection of fingerprint equipment

हैदराबाद। केंद्रीय गृह राज्‍यमंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने कहा है कि गिरफ्तार व्‍यक्तियों के फिंगर इंप्रेशन, फोटो एवं माप लेने को कानूनी अधिकार देने के लिए बंदी की पहचान अधिनियम 1920 में संशोधन करने की आवश्‍यकता है, क्योंकि अपराधियों में प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना आपराधिक मामलों के समाधान में पुलिस बल के सामने एक नई चुनौती पेश कर रहा है। गृह राज्‍यमंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने यह बात हैदराबाद में फिंगर प्रिंट ब्‍यूरो के निदेशकों के 19वें अखिल भारतीय सम्‍मेलन में कही। गृह राज्‍यमंत्री ने कहा कि राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो का डाटा बेस में महज 11.5 लाख फिंगर प्रिंट हैं, उसे भी विस्‍तारित किए जाने की आवश्‍यकता है।
गृह राज्‍यमंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने कहा है कि फिंगर प्रिंट साक्ष्‍य को जांचकर्ता और न्‍यायकर्ता भरोसेमंद मानते हैं, क्‍योंकि यह एक फुलप्रूफ और प्रभावी फारेंसिक माध्‍यम है। गृह राज्‍यमंत्री ने पुलिसबल के आधुनिकीकरण पर जोर दिया और कहा कि ऐसे समय में जब अपराधियों की प्रौद्योगिकी तक आसानी से पहुंच है और वे इसका उपयोग अपराध करने के लिए कर रहे हैं, स्‍मार्ट पुलिसिंग वक्‍त की जरुरत है। इस अवसर पर राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो के निदेशक ईश कुमार ने कहा कि कई देशों में अनूठे तरीके से फिंगर प्रिंट का उपयोग अपराध को सुलझाने एवं आपराधिक समस्‍या के समाधान के लिए किया जाता है। हंसराज गंगाराम अहीर ने इस अवसर पर दो पुस्‍तकों का विमोचन भी किया, जिनके नाम हैं-‘फिंगर प्रिंट उपकरण का सार-संग्रह 2018’ और ‘पहचान में उत्‍कृष्‍टता के पुरस्‍कार’।
उल्लेखनीय है कि प्रौद्योगिकी के विस्तार से जहां अन्य क्षेत्रों में अभूतपूर्व क्रांति आई है, वहीं इसका इस्तेमाल अपराध जगत के लिए आदर्श सिद्ध भी हुआ है। इससे आर्थिक अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हुई है और अपराधी पहुंच से बाहर जा रहे हैं। पुलिस या प्रवर्तन एजेंसियां या फिर अन्य जांच एजेंसियां अदालतों के सामने अनेक आपराधिक मामलों में पर्याप्त कानून के अभाव में असहाय हैं, अपराधियों को इसका लाभ मिल रहा है, जबकि विदेशों में पहले ही ऐसा कानून प्रचलन में आ चुका है, जिससे प्रौद्योगिकी के सहयोग से की गई धोखाधड़ी या अपराध पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। भारत में अब बंदी की पहचान अधिनियम 1920 में संशोधन किया जा रहा है और अपराधियों एवं प्रौद्योगिकी के बीच संबंधों को भी तोड़ने के उपाय किए जा रहे हैं।

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