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एएमयू में पढ़े गए असग़र वजाहत के कसीदे

खड़ी बोली का साहित्य हिंदी और उर्दू में बिखरा-वजाहत

'असग़र वजाहत हिंदी के मुमताज़ अफसानानिगार'

हैदर अली

Tuesday 1 May 2018 05:48:28 PM

amu mein padhe gae asagar wajahat ke kaseede

अलीगढ़। कथाकार और नाटककार असग़र वजाहत ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के केनेडी हॉल में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा है कि उर्दू के जो पाठक देवनागरी नहीं पढ़ पाते हैं और हिंदी के वे पाठक जो उर्दू लिपि नहीं जानते हैं, ये दोनों भारी नुकसान में हैं, क्योंकि खड़ी बोली का साहित्य इन दोनों लिपियों में बिखरा हुआ है। असग़र वजाहत ने अपनी दो छोटी कहानियां 'नेताजी और औरंगज़ेब' तथा 'नया विज्ञान' का पाठ भी किया। इससे पहले 'संचयन : असग़र वजाहत' के तीन खंडों का लोकार्पण हुआ, जिनका सम्पादन युवा आलोचक पल्लव ने किया है। नई किताब प्रकाशन समूह के अनन्य प्रकाशन ने इन खडों का अल्पमोली संस्करण भी तैयार किया है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कल्चरल सेंटर की ओर से हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता एएमयू के उर्दू विभाग के प्रोफ़ेसर तारिक छतारी ने की। उन्होंने असग़र वजाहत को हिंदी का मुमताज़ अफसानानिगार बताया। उन्होंने कहा कि असग़र वजाहत के एक-एक शब्द में खुलूस है और उनके लेखन की संजीदगी उन्हें बड़ा लेखक साबित करती है। प्रोफेसर आरिफ़ रिज़वी ने असग़र वजाहत के साथ गुज़ारे बचपन के दिनों को याद किया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में उनके साथ अपने छात्र जीवन के प्रसंग भी सुनाए। संचयन के सम्पादक डॉ पल्लव ने पुस्तक प्रकाशन योजना पर प्रकाश डाला और कहा कि असग़र वजाहत हमारी भाषा और संस्कृति के बहुत बड़े लेखक हैं, जो अपने लेखन में असंभव का संधान करते हैं। अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर आसिम सिद्दिकी ने असग़र वजाहत की कथाशैली की विशेषताएं बताते हुए कहा कि सच्चा अदब वह है, जो आगे भी पढ़ा जाने की योग्यता रखता हो।
हिंदी विभाग के प्रोफेसर आशिक़ अली ने कहा कि 1947 का बंटवारा जमीन से ज्यादा दिलों का था और बंटवारे की यह आग अभी तक हमारे दिलों को जलाती है। उन्होंने असग़र वजाहत की कहानी शाह आलम कैम्प की रूहें का उल्लेख करते हुए कहा कि असग़र वजाहत के लेखन में गहरा इतिहासबोध है, वहीं 'लकड़ियां' कहानी में निहित सामाजिक पाखंड पर व्यंग्य को उन्होंने गहरी चोट की संज्ञा दी। प्रोफेसर शम्भुनाथ तिवारी ने असग़र वजाहत के साथ अपने संबंधों का उल्लेख करते हुए उनके नाटकों पर बात की और बताया कि किस तरह असग़र वजाहत अपने नाटकों में समसामयिक मुद्दों को बहुत जीवंत बनाकर प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने जिस लाहौर नई वेख्या, गोड्से@गांधी.कॉम, इन्ना की आवाज़ तथा लिखे जा रहे अप्रकाशित नाटक महाबली के हवाले से असग़र वजाहत के नाटकों का महत्व बताया।
प्रोफेसर शम्भुनाथ तिवारी ने कहा कि फैंटेसी यथार्थ का सृजन करती है, इसका प्रमाण असग़र साहब के नाटक हैं।समारोह में प्रोफेसर आसिफ़ नक़वी की दो किताबों का भी लोकार्पण किया गया। इससे पहले सीईसी सेंटर के कोआर्डिनेटर प्रोफेसर शीरानी ने असग़र वजाहत का स्वागत किया।कार्यक्रम का संचालन उर्दू विभाग के प्रोफेसर सीराज अजमली ने किया। आयोजन में सीईसी के अध्यक्ष डॉ मुहिबुल हक़, विभागों के प्रोफेसर और शोध छात्र उपस्थित थे। आयोजन स्थल पर असग़र वजाहत की अबतक प्रकाशित सभी पुस्तकों के साथ नई किताब समूह की पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई थी, जिसमें संचयन के साथ असग़र वजाहत पर केंद्रित बनास जन के अंक उपलब्ध थे। (इस रिपोर्ट के प्रस्तुतकर्ता हैदर अली, जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली)।

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