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आखिर ब्रिक्स ने चीन की इज्ज़त बचाई!

डोकलाम से चीन हटा पर पाकिस्तान में है मातम

भारत की कूटनीति को मिली शानदार विजय

Tuesday 29 August 2017 08:06:24 AM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

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नई दिल्ली। चीन में तीन से पांच सितंबर तक होने जा रहे ब्रिक्स सम्मेलन ने चीन की इज्ज़त बचा ली है। ढाई माह पहले डोकलाम पर ज़ोरज़बरदस्ती से सड़क बनाने से भारत के रोकने पर भड़के चीन ने भारत को 1962 जैसा सबक सिखाने की धमकी देकर भारत के खिलाफ अपनी जल थल नभ की सेनाएं तैनातकर दी थीं। उसने अपने क्षेत्र में जबरदस्त सैनिक अभ्यास करके भारत और पूरे एशिया को युद्ध के उन्माद में झोंक दिया था, मगर चीन को यह अंदाजा नहीं रहा कि नए भारत के साथ युद्ध करना उसके लिए महंगा साबित ‌होगा, जिसमें न केवल भारत भी उसे छटी का दूध याद दिला देगा, अपितु अंतर्राष्ट्रीय समुदाय उसके खिलाफ हो जाएगा और भारत में उसका बड़ा बाज़ार भी खत्म हो जाएगा। भारत ने हर बार डोकलाम समाधान को बातचीत से हल करने की पेशकश की, मगर भारत को बार-बार युद्ध की धमकी देकर बुरे फंसे चीन को नहीं सूझ रहा था कि इस संकट में वह क्या करे। आखिर अगले हफ्ते चीन में हो रहा ब्रिक्स सम्मेलन उसका संकटमोचक बना और भारत से कूटनीतिक बातचीत करके वह अपनी सेना सहित डोकलाम से पीछे हट गया और इसी के साथ भारत ने भी डोकलाम से अपनी सेना हटा ली है। भारत-चीन के बीच ढाई माह से चले आ रहे चीन के युद्ध के आतंक का आखिर कल पटाक्षेप हो गया।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने यह पहला मौका है, जब चीन ने भारत के सामने मुंहकी खाई है और भारत के कूटनीतिक प्रयासों की जीत हुई है। ब्रिक्स देशों के सदस्य ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं और अगले ही हफ्ते चीन में इन देशों का सम्मेलन है, जो भारत-चीन युद्ध की संभावना को देखते हुए खटाई में पड़ रहा था और यदि यह सम्मेलन स्‍थगित हो गया होता या इस सम्मेलन में भारत की भागीदारी नहीं होती तो इसकी न केवल प्रासंगिकता समाप्त हो गई होती, अपितु चीन अलग-थलग पड़ जाता और उसके एशिया के जो भी सपने हैं, वे चकनाचूर हो गए होते, उसकी भी गिनती पाकिस्तान जैसे देश में होती और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में उसका खड़ा होना मुश्किल हो जाता। चीन ने भारत की शक्ति को हल्के में लिया। उसने भारत की सैन्य ताकत को भी चुनौती दी और यह कहकर भारत को डोकलाम में और मजबूत कर दिया कि भारत 1962 जैसे हाल के लिए तैयार हो जाए। भारत ने चीन की यह चुनौती सहर्ष स्वीकार की और डोकलाम पर चीनी सेना को खड़े नहीं होने दिया। भारत ने चीन की युद्ध की धमकियों के शांतिपूर्ण जवाब दिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पंद्रह अगस्त को लालकिले से चीन का नाम लिए बिना संदेश दे दिया कि भारत की सेनाएं सभी जगह अपने बूते पर जवाब देना जानती हैं। यह संदेश बिल्कुल साफ था, जिसमें चीन को समझ आ गई कि भारत डरने वाला नहीं है और इसका समाधान नहीं हुआ तो चीन फिर चीन नहीं रहेगा।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत आए थे, तब दोनों देशों के बीच दोस्ताना संबंध और ज्यादा विकसित हुए थे, इसके बावजूद भारत इस बात से चीन से हमेशा सतर्क रहा है कि चीन की दोस्ती पर भरोसा नहीं किया जा सकता। नरेंद्र मोदी के भारत को यह पता है कि पिछली कांग्रेस गठबंधन सरकार में चीन ने किस प्रकार भारत के सीमावर्ती संवेदनशील स्‍थानो पर कब्जा किया है और सरकार चीन को ऐसा करने से नहीं रोक पाई। चीन ने भूटान के संवेदनशील क्षेत्र डोकलाम से सिक्किम की ओर सड़क बनानी शुरू की तो भारत ने उसे तुरंत रोक दिया और यहीं से भारत एवं चीन के बीच टकराव शुरू हो गया, जो युद्ध की तैयारियों में बदल गया। इन ढाई माह में ऐसे अवसर कई बार आए कि बस युद्ध होने वाला है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान की तो यह चिरइच्छा थी कि चीन भारत पर हमला करे और वह भी मौका पाकर कश्मीर में घुसकर उसपर कब्जा कर ले, मगर उसके मनसूबों पर भी पानी फिर गया है। इस समय पाकिस्तान में मातम का माहौल है, जिसका कारण यह है कि चीन ने भारत के सामने घुटने टेक दिए हैं। पाकिस्तान के मीडिया में आज जोरदार बहस छिड़ी है कि जिसके दम पर पाकिस्तान में भारत से दुश्मनी पाली हुई थी, वही भारत का कुछ नहीं बिगाड़ पाया तो भारत से संकट में पाकिस्तान का क्या साथ दे पाएगा। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान एक देश की साख पहले ही खो चुका है। पाकिस्तान की सेना के लिए इससे ज्यादा झटका नहीं हो सकता ‌कि व‌ह भारत का कुछ भी बिगाड़ने की स्थिति में नहीं है। इस घटनाक्रम के बाद पाकिस्तान अपने को मझधार में देख रहा है।
डोकलाम विवाद के पटाक्षेप के बाद चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने डोकलाम विवाद सुलझाने वाले प्रस्ताव का स्वागत किया है। चीन ने यह भी कहा है कि पड़ोसी देश भारत को इस विवाद से सीख लेने की भी जरूरत है। इस मामले में अपना चेहरा छिपाते हुए चीन कह रहा है कि वो सतर्क रहेगा और अपने मुल्क की संप्रभुता की रक्षा करता रहेगा। चीनी रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि चीन की सेना सतर्क रहेगी, देश की संप्रभुता की रक्षा दृढ़ता की जाएगी। चीनी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि हम डोकलाम विवाद की समाप्ति का स्वागत करते हैं, चीन-भारत सीमा पर क्षेत्रीय शांति और स्थिरता चाहता है। उसने फिर कहा है कि हम भारत को याद दिला दें कि उसे डोकलाम विवाद से सीखने की जरूरत है, भारत स्थापित संधियों और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के बुनियादी सिद्धातों का पालन करे, साथ ही दोनों देश शांति के लिए मिलकर काम करें, दोनों देश अपनी सेनाओं के स्वास्थ्य और विकास को बढ़ावा दें। चीन ने कहा है कि भारत ने डोकलाम से अपनी सेनाएं हटा दी हैं, लेकिन चीन की सेनाएं क्षेत्र में बनी रहेंगी और क्षेत्र में अपनी संप्रभुता कायम रखेंगी। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि चीन के सीमाबल डोकलाम में गश्त जारी रखेंगे। यह बयान सबकुछ बयां करता है, जिसमें चीन अगर यह न कहे तो फिर अपने देश की जनता को क्या जवाब दे? संदेश तो यह गया है कि भारत से टकराने का मतलब यदि भारत का खत्म हो जाना है तो चीन को भी ऐसी ही स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।
चीन देख चुका है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भारत का ही साथ दिया है और यदि युद्ध हो गया होता तो चीन भी सर्वदा के ‌लिए पाषाण युग में चला जाता। इस मामले में भारत की हर प्रकार की शक्ति का आकलन हो चुका है और भारत की कूटनीति भी सफल सिद्ध हुई है। भारत को इसके बावजूद चीन से सतर्क रहना होगा और खासतौर से अपनी सैन्यशक्ति को बढ़ाना होगा, जहां तक भारतीय सेना का सवाल है तो दुनिया में उसके साहस और मनोबल के सामने कोई नहीं टिक सकता। चीन में ब्रिक्स सम्मेलन को देखते हुए चीन पर डोकलाम विवाद का साया रहेगा। उसकी खिसियाहट बनी रहेगी। ब्रिक्स देशों में इस पर भले ही कोई चर्चा न हो पर सबके मन में यह बात रहेगी कि भारत-चीन में डोकलाम पर जो भी हुआ वह चीन की भारी भूल है, जिसमें उसकी बंद मुठ्ठी खुल गई है। ब्रिक्स देश मानते हैं कि भारत तेजी से दुनिया की आर्थिक शक्ति बन रहा है और इन देशों को भी भारत में बाज़ार की तलाश है। चीन भारत के बाज़ार में जिस तरह स्‍थापित है, वह उसपर कोई जोखिम नहीं ले सकता, हालांकि भारत की जनता चीन के खिलाफ जा चुकी है और भारत में चीन के सामान का धीरे-धीरे बहिष्कार भी हो रहा है। चीन ने भारत के धैर्य की परीक्षा भी देख ली है। उसने देखा है कि भारत पर उसके रवैये पर शंघाई सहयोग संगठन और सार्क सदस्य देशों ने कैसा रुख अपनाया। क्या चीन इस स्थिति का सामना करने को तैयार हो सकता है? रूस की भूमिका भी इसमें कारगर रही, जिसने चीन को समझा दिया कि वह अंततः भारत के ही साथ जाएगा, जिससे चीन को आखिर झुकना पड़ा है।

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