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महिलाओं की सुरक्षा के लिए और भी योजना

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 04 February 2013 08:39:54 AM

नई दिल्ली। सरकार ने महिलाओं के विरुद्ध अपराधों से निपटने के लिए एक समयबद्ध कार्य योजना की पहल की है। त्‍वरित कार्रवाई, लैंगिक संवेदनशील कार्रवाई व्‍यवस्‍था तथा प्रवर्तन एजेंसियों की जवाबदेही बढ़ाने के लिए कुछ विशेष कदम उठाए गए हैं। तीन फरवरी, 2013 को राष्‍ट्रपति अध्‍यादेश, फौजदारी कानून में संशोधन से संबंधित है, मगर ये उपाय अध्‍यादेश के अतिरिक्‍त हैं। विभिन्‍न मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श के बाद यह कदम उठाया गया है।
कैबिनेट सचिव ने निश्चित समय-सीमा के भीतर कार्य योजना बनाने के लिए संबंधित मंत्रालयों के वरिष्‍ठ अधिकारियों के साथ हाल ही में कई बैठकें की हैं। सात मुख्‍य मंत्रालयों के सचिवों ने इन उपायों को लागू करने पर व्‍यक्तिगत रूप से नज़र रखने और कैबिनेट सचिव तथा प्रधानमंत्री कार्यालय को हर महीने इसकी रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं। इन उपायों में पुलिस व्‍यवस्‍था में बदलाव, मोटर वाहन अधिनियम की समीक्षा, महिलाओं के प्रति अपराधों से निपटने की कार्रवाई को ज्‍यादा प्रभावी तथा संवेदनशील बनाने के उपाय और अन्‍य प्रशासनिक कदम शामिल हैं।
इनमें राष्‍ट्रीय अपराध रि‍कार्ड ब्‍यूरो (एनसीआरबी) अपराधियों का डाटाबेस बनाएगी। महिलाओं के साथ दुर्व्‍यवहार करने वाले अपराधियों की विस्‍तृत जानकारी वेबसाइट पर उपलब्‍ध होगी। किसी भी थाने में उस समय कार्य-क्षेत्र पर ध्‍यान दिए बिना शीघ्र एफआईआर दर्ज करने की सुविधा दी जाएगी। एफआईआर उसके बाद आगे की जांच के लिए संबंधित थाने में हस्‍तांतरित की जा सकती है। इससे महिलाओं के प्रति मुद्दों सहित गंभीर अपराधों से निपटने में मदद मिलेगी। यह ज़रूरी है कि जब लोग उत्‍पीड़ि‍त महिला को सहायता देने के लिए आगे आएं, तो उन्‍हें किसी दिक्‍कत का सामना न करना पड़े। इसके लिए ऐसे लोगों को बिना किसी हिचकिचाहट के अपराध के बारे में बताने तथा बिना किसी पूछ-ताछ के या गवाह बनने के लिए ज़ोर दिए बगैर पीड़ित/पुलिस की सहायता देने के लिए सुरक्षा दी जानी चाहिए।
'केवल महिलाओं के लिए' बस सेवा शुरू की जानी चाहिए। देशभर में अधिक महिलाओं को बसें/टैक्‍सी चलाने के लिए प्रोत्‍साहित करने के वास्‍ते एक कार्यक्रम का प्रस्‍ताव किया गया है। वर्तमान मोटर वाहन नियमों की समीक्षा की जाएगी।. ऐसी खबरें हैं कि कई वाहनों में फैक्‍ट्री फिटिड शीशे हैं जिसमें उनपर रंग स्‍वीकार्य सीमा से अधिक है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव तकनीकी विशेषज्ञों तथा पुलिस प्रतिनिधियों के साथ सलाह-मश्‍वि‍रे के बाद यह तय करेंगे कि सार्वजनिक परिवहन बसों में शीशों को रंगने की अधिकतम स्‍वीकार्य मात्रा कितनी होनी चाहिए। पर्दों के इस्‍तेमाल पर भी गौर किया जाएगा जो कि यात्री की सुविधा और सुरक्षा कारणों के लिए आवश्‍यक दृश्‍यता पर निर्भर करेगा। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने उचित रूप से मानकों को संशोधित करने का प्रस्‍ताव कि‍या है। बसों के निर्माताओं को संशोधि‍त मानकों का पालन करना होगा।
समयबद्ध कार्यक्रम में दिल्‍ली में सार्वजनिक परिवहन वाहन चला रहे ड्राइवरों, कंडक्‍टरों, हेल्‍पर (पूरे कर्मीदल) के लिए शत प्रतिशत सत्‍यापन की ज़रूरत है, जिसमें ऐसे व्‍यक्तियों की बायो-मीट्रिक पहचान लेना शामिल है। इसे अनिवार्य बनाने के लिए प्रचलित नियमों की समीक्षा के लिए कार्रवाई की जाएगी। सार्वजनिक परिवहन वाहनों के कर्मीदल के सत्‍यापन के लिए निश्चित समय सीमा में प्रोटोकॉल बनाया जाएगा तथा इसे लागू करने के लिए राज्‍य सरकारों को उपयुक्‍त सूचना भी दी जाएगी। नियत समय सीमा के बाद किसी भी सार्वजनिक परिवहन वाहन में किसी ड्राइवर, कंडक्‍टर, हेल्‍पर या किसी अन्‍य कर्मीदल को बस चलाने की तब तक अनुमति नहीं होगी, जब तक कि ऐसे व्‍यक्ति का सत्‍यापन न हुआ हो और उनके पास सत्‍यापन प्रमाण पत्र/पहचान अनुमति पत्र न हो।
बस मालिक ही इन उपायों का पालन करने के लिए जिम्‍मेदार होंगे। बार-बार अपराधों में लिप्‍त वाहन मालिकों पर सार्वजनिक परिवहन वाहन चलाने के लिए उनके वर्तमान परमिट/ कोई नया प‍रमिट उपलब्‍ध करने पर रोक लगाना भी ज़रूरी है। साथ ही बार-बार अपराधों में लिप्‍त वाहनों को ज़ब्‍त करने की भी आवश्‍यकता है। बस के मालिक-ड्राइवर के विवरण तथा परमिट और लाइसेंस की जानकारी बस के अंदर और बाहर स्‍पष्‍ट रूप से दिखनी चाहिए, जहां से वह आसानी से पढ़ी जा सके। बसों के चालन पर नज़र रखने के लिए नियंत्रण कक्ष के गठन के साथ सभी सार्वजनिक परिवहन वाहनों में जीपीएस यंत्रों का इस्तेमाल भी ज़रूरी है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय इस संबंध में सभी राज्‍यों को उपयुक्‍त परामर्श जारी करेगा।
परमिट शर्तों का उल्लंघन करने पर लगाए जाने वाले जुर्माने की राशि में बढ़ोतरी और एक खास संख्या के बाद अपराधों को बढ़ने से रोकने की आवश्यकता है। दिल्ली सरकार सार्वजनिक परिवहन के वाहनों के परमिटों में संशोधन करने की मसौदा अधिसूचना जारी करेगी। इसमें वाहनों की खिड़कियों के शीशों पर काली फिल्में लगाने पर मनाही, अपराध दोहराने पर दंड में वृद्धि और अन्य आवश्यक उपाय शामिल हैं। अंतिम अधिसूचना एक महीने में जारी की जाएगी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव सभी राज्यों को दिल्ली सरकार द्वारा परमिट की शर्तों में किए गए संशोधन/परिवर्तन के बारे में लिखेंगे और उनसे वैसे उपाय करने का अनुरोध करेंगे। थाने का निरीक्षण करने के समय निरीक्षण अधिकारी के लिए यह जरूरी होना चाहिए कि वह खास तौर पर थाने में तैनात व्यक्तियों की लिंग संवेदनशीलता के बारे में निष्कर्षों और महिलाओं के प्रति अपराधों से जुड़ी शिकायतों को दर्ज करने के बारे में थाने/एसएचओ के रिकार्ड को दर्ज करें और यह देखें कि थाने में महिलाओं को अपनी शिकायत दर्ज कराने से हतोत्साहित तो नहीं किया जा रहा।
इस संबंध में महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया दिखाने अथवा निरीक्षण संबंधी दायित्वों की लापरवाही करने वाले पुलिसकर्मियों और अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। पुलिस बल में लिंग संवेदनशीलता बनाए रखने की निरंतर आवश्यकता है, खासकर बीट ड्यूटी अथवा पुलिस स्टेशन पर तैनात सिपाही के स्तर पर। यह बात पुलिसकर्मियों के दिमाग में बिठाने की आवश्यकता है कि महि‍लाओं पर असंवेदनशील टिप्पणियां पूरी तरह बंद होनी चाहिए। इसके लिए पुलिस द्वारा नियमित आधार पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता है।महिलाओं से पक्षपात करने वाले किसी भी कर्मचारी/अधिकारी के विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इस बारे में प्रत्येक स्तर पर की जाने वाली कार्रवाई को रिपोर्ट करना होगा। यदि यह पता चलता है कि गलती करने वाले किसी व्यक्ति पर कार्रवाई नहीं की गई है तो निरीक्षण अधिकारी को जवाबदेह ठहराया जाएगा। इस बारे में निर्देश जारी किए जाएंगे और उनका पालन सुनिश्चित कराया जाएगा।
सभी स्तरों पर रिपोर्टिंग अधिकारी के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह पुलिसकर्मी की वार्षिक निष्पादन मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करते समय उसकी महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता के बारे में टिप्पणी करें। इस बात पर जोर दिया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस बारे में टिप्पणी उसके व्यवहार के विशिष्ट अवसरों पर आधारित हों और मात्र रस्मी हां या ना तक सीमित नहीं रखी जाए। पुलिसकर्मी की तैनाती अथवा पदोन्नति पर विचार करते समय महिलाओं के प्रति उसके रवैये को खासतौर पर ध्यान में रखा जाना चाहिए। पुलिस बल में अधिक महिलाओं को भर्ती करने की अत्‍यधिक आवश्‍यकता है। महिलाओं को दिल्‍ली पुलिस में बड़ी संख्‍या में भर्ती करना होगा। गृह मंत्रालय इस वित्‍त वर्ष में इस बारे में आवश्‍यक स्‍वीकृति प्राप्‍त करने की कार्रवाई करेगा। इसी प्रकार राज्‍यों में भी पुलिस बल में अधिक महिलाओं को भर्ती करने की कार्रवाई करने की आवश्‍यकता होगी। इस बारे में राज्‍यों को प्रेरित करने के लिए गृह मंत्रालय चार सप्‍ताह के भीतर उचित प्रस्‍ताव/योजना तैयार करेगा और उसके लिए आवश्‍यक स्‍वीकृति प्राप्‍त करेगा।
दिल्‍ली में अतिरिक्‍त पीसीआर वैनों की आवश्‍यकता होगी। इस प्रकार की 370 वैन प्राप्‍त करने का प्रस्‍ताव दिल्‍ली पुलिस ने भेजा है। इस बारे में स्‍वीकृति इसी वित्‍त वर्ष के भीतर देने की योजना है। खास इलाकों जैसे शिक्षा संस्‍थानों, सिनेमा घरों, मॉल और बाजारों के आस-पास के इलाकों में पीसीआर वैनों में महिला पुलिसकर्मियों को तैनात करने का प्रस्‍ताव है। इसके अलावा बीपीओ में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के रात के समय काम से लौटने के मार्गों पर भी पीसीआर वैनों में महिला कर्मियों को तैनात किया जाएगा। समय के साथ कुछ ऐसे थाने भी बनाए जाएंगे जहां सिर्फ महिलाएं काम करेंगी। समुदाय के लोगों को पुलिस के काम में हाथ बंटाने को प्रोत्साहन की भी योजना है। इससे न केवल पुलिस की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकेगा बल्कि प्रत्‍येक मोहल्‍ले में जिम्‍मेदार लोगों को नागरिकों के रूप में अपनी ड्यूटी निभाने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा।
दिल्‍ली में अनेक कैमरे लगाए जा रहे हैं और इस समय 34 बाजारों और चार सीमावर्ती चौकियों पर सीसीटीवी प्रणालियां काम कर रही हैं। तथापि सार्वजनिक स्‍थानों में सीसीटीवी प्रणालियों की संख्‍या और बढ़ाने की अत्‍यधिक आवश्‍यकता है। इसके लिए पुलिस व्‍यापारिक संघों, आरडब्‍ल्‍यूए, व्‍यवसायिक, कार्यालय भवनों के प्रबंधकों, मॉल, सिनेमाघरों, एनजीओ आदि सभी हितधारकों का सहयोग लेगी। उन्‍हें अपने परिसरों के बाहर स्‍वीकृत नमूनों के सीसीटीवी लगाने के लिए प्रोत्‍साहित किया जाएगा। सभी राज्‍यों में भी इसी प्रकार की कार्रवाई करने की आवश्‍यकता है। सार्वजनिक स्‍थानों में सड़कों पर प्रकाश की व्‍यवस्था करने पर ज्यादा ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है। नगर निकायों को मौजूदा सुविधाओं की समीक्षा करनी चाहिए तथा जहां कही आवश्‍यक हो इन्‍हें मजबूत बनाना चाहिए।
महिला और बाल विकास विभाग यौन हिंसा पीड़ितों को मुआवजा देने की योजना तथा यौन हिंसा पीड़ितों को मनोवै‍ज्ञानिक एवं अन्‍य सहायता उपलब्‍ध कराने के लिए चुनिंदा अस्‍पतालों में आपदा राहत केंद्र स्‍थापित करने की योजना भी लागू करेगा। प्रस्‍तावित योजना 2013-14 से प्रायोगिक आधार पर देश के 100 जिलों में लागू की जायेगी। सरकार ने सभी आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए देशव्‍यापी तीन अंकों का नंबर (100 नंबर की तरह) शुरू करने का प्रस्‍ताव किया है। यह 911 या 990 की तरह जैसे आपातकालीन प्रबंध प्रणालियों जैसी व्‍यवस्‍था होगी। इस तरह की व्‍यवस्‍था अनेक विकसित देशों में उपलब्‍ध है। ऐसी सेवा सभी टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं के ग्राहकों को उपलब्‍ध होगी, क्‍योंकि फिलहाल विभिन्‍न स्थितियों से निपटने या लक्षित समूहों की सुविधा के लिए अलग-अलग टेलीकॉम नंबर इस्‍तेमाल किये जा रहे है। इसलिए ऐसी व्‍यवस्‍था बनाने का प्रस्‍ताव है जहां किसी भी तरह की मुसीबत में फंसा व्‍यक्ति एक ही नंबर पर सम्‍पर्क कर सकेगा। इस नंबर पर कॉल करने के बाद कॉलर को किसी अन्‍य विशेष अथवा आपातकालीन नंबर पर संपर्क करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। इसके बजाय कॉल बिना किसी बाधा के मुसीबत संबंधी उचित लाइन पर कनेक्‍ट की जानी चाहिए। गृह मंत्रालय, दूरसंचार विभाग के साथ मिलकर फरवरी 2013 के आखिर तक इस संबंध में व्‍यवस्‍था करने और उसे संचालित के बारे में मूल परिकल्‍पना तैयार करेगा।
सामान्‍य आपातकालीन हेल्‍पलाइन के अतिरिक्‍त एक ऐसी हेल्‍पलाइन भी होगी जो मुसीबत में फंसी महिलाओं के लिए ही समर्पित होगी। यह हेल्‍पलाइन देशभर में तीन अंक के विशिष्‍ट नंबर की होनी चाहिए। इसके लिए पूरे देश में 181 नंबर पर यह सुविधा शुरू की जा सकती है। फिल्‍मों, टेलीविजन धारा‍वाहिकों और विज्ञापनों में महिलाओं का नकारात्‍मक, फूहड़ और अथवा अश्‍लील चित्रण लंबे समय से चिंता का कारण रहा है। यदि इस संबंध में सभी हितधारकों को निरंतर संलग्‍न रखा जाए तो यह सहायक होगा। सार्वजनिक हित के विज्ञापनों के मीडिया अभियान को भी बनाये रखने की आवश्‍यकता है। स्‍कूलों में जीवन मूल्‍यों से संबंधित शिक्षा की भूमिका बहुत महत्‍वपूर्ण मानी जा रही है। हालांकि सिर्फ पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा शामिल करना पर्याप्‍त नहीं है। शिक्षकों को भी जीवन मूल्‍यों की शिक्षा में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। स्‍त्री–पुरूष समानता के बारे में स्‍थायी जागरूकता अभियान को सभी स्‍कूलों, कॉलेजों में चलाये जाने की आवश्‍यकता है तथा शिक्षा के हर स्‍तर पर स्‍त्री-पुरूष समानता से संबंधि‍त विषय शामिल करने की जरूरत है। शिक्षण संस्‍थाओं में लड़कियों को आत्‍म रक्षा/मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण देना भी उपयोगी होगा।

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