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आप तय करेंगे तो देश चल पड़ेगा-मोदी

आईएएस प्रक्षिशुओं को प्रधानमंत्री की प्रेरणाएं

ईगो छोड़ें और जिम्मेदारियों को निभाएं!

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 19 November 2015 04:53:33 AM

pm narendra modi

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2013 बैच के युवा आईएएस अधिकारियों के साथ एक परिचर्चा सत्र का आयोजन किया। इन अधिकारियों ने सहायक सचिवों के रूप में भारत सरकार के साथ तीन महीने का कार्यकाल पूरा किया है। आईएएस अधिकारियों का ऐसा यह पहला बैच है, जिसने अपने कैरियर की शुरूआत केंद्र सरकार में एक कार्यकाल के साथ की है। अधिकारियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वे अपनी सेवा के पहले 10 वर्ष का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करें, जब वे क्षेत्र में काम करेंगे, तब उन्हें जनता की भलाई के लिए अधिक से अधिक योगदान करने का मौका मिलेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि अक्सर ऐसा होता है कि आपके नए विचारों और नए विजन को पुरानी पीढ़ी का प्रतिरोध सहन करना पड़े, लेकिन आगे बढ़ने का रास्ता यही है कि कड़ी मेहनत की जाए और लोगों को साथ लेकर चला जाए, यही लोगों को जोड़ने की कुंजी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आज यहां सहायक सचिव 2013 बैच के आईएएस स्‍तर के अधिकारियों ने प्रदर्शन सत्र में हिस्‍सा लिया। इस दौरान उन्‍होंने जिन विषयों पर विचार-विमर्श किया, उनमें प्रमुख हैं-प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, सरकार की परिष्‍कृत संचार व्‍यवस्‍था, नागरिक केंद्रित सेवा निगरानी, एक भारत-श्रेष्‍ठ भारत, मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड स्‍कीम और राष्‍ट्रीय खनिज खोज नीति सहित छह प्रेज़ंटेशन। पहली प्रस्‍तुति शैलेश यादव और विजय कुलांजे की थी। यह प्रधानमंत्री मुद्रा योजना पर केंद्रित थी। दूसरी प्रस्‍तुति अजीत वसंत, एस अस्‍वथी और निलेंगथांग तेलन की थी, जो परिष्‍कृत संचार व्‍यवस्‍था पर थी। नागरिक केंद्रित सेवा निगरानी पर तीसरी प्रस्‍तुति नीति आयोग की दिव्‍या मित्‍तल की ओर से थी। चौथी प्रस्‍तुति ‘एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत’ की थी, जो पार्थ गुप्‍ता, के शशांक और डॉ नवल किशोर की ओर से थी। पांचवीं प्रस्‍तुति मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड स्‍कीम पर थी, जिसे हरप्रीत सिंह सूदान और राजेंद्र कटारा ने प्रदर्शित की थी। राष्‍ट्रीय खनिज खोज नीति पर छठी और आखिरी प्रस्‍तुति हिमांशु शुक्‍ला की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिचर्चा सत्र में कहा कि जीवंत व्यवस्था अगर समयानुकूल परिवर्तन को स्वीकार नहीं करती है, तो उसकी जीवंतता समाप्त हो जाती है और जो व्यवस्था में जीवंतता न हो, वो व्यवस्था अपने आप में बोझ बन जाती है। उन्होंने कहा कि जैसे व्यक्ति के विकास की जरूरत होती है, व्यवस्थाओं के विकास की भी आवश्यकता होती है, समयानुकूल परिवर्तन की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि आज यहां दो प्रकार के लोग हैं, एक वो हैं जो जानदार हैं, दूसरे वो जाने की तैयारी में हैं, वो इंतजार करते होंगे कि अब 16 में जाना है तो फिर क्या करेंगे, 17 में जाना है तो क्या करेंगे और आप लोग सोचते होंगे कि यहां से जाने के बाद जहां पोस्टिंग हो तो पहले क्या करूंगा और फिर क्या करूंगा, कैसे करूंगा। यानि दोनों उस प्रकार के समूहों के बीच में आज का ये अवसर है। उन्होंने कहा कि जब आप लोग मसूरी से निकले होंगे तब तो बिल्कुल एक ऐसा मिजाज होगा कि अब तो सब कुछ हमारी मुट्ठी में है और फिर अचानक पता चला होगा कि नहीं-नहीं और पता नहीं यहां से जाकर क्या होगा, यह समय ही बताएगा।
प्रधानमंत्री ने प्रक्षिशुओं से कहा कि अगर उनके तीन महीने के अनुभव काम आए तो फील्ड में उनके काम करने की सोच बदल जाएगी। उन्होंने कहा कि आप जिस क्षेत्र में जाएंगे और उसके अंदर अगर दो गांव ऐसे होंगे जहां बिजली का खंभा भी नहीं लगा होगा तो आपको लगेगा कि ये हिंदुस्तान के वो 18 हजार गांव हैं, जहां बिजली के खंभे नहीं लगे हैं, इसलिए वो दो गांव मुझे पूरे करने हैं, मैं नहीं देर करूंगा, मैं पहले काम पूरा करूंगा, इसलिए एक समग्रता को किताबों के द्वारा नहीं, लेक्चर के द्वारा नहीं, अकादमिक विमर्श के द्वारा नहीं, प्रत्यक्ष रोजमर्रा के काम में काम करते-करते, अलग तरीके से सीखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि एक तीन महीने वाला प्रयोग कैसे हो, कितने समय का हो, कैसे उसमें बदलाव लाया जाए औऱ अच्छा कैसे बनाया जाए या इसको न किया जाए, ये भी हो सकता है कि ये न किया जाए, इसका कोई लाभ नहीं है, ऐसा क्या किया जाए, इस पर आप लोग सुझाव देंगे तो अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि अब आप एक नई जिम्मेवारी की ओर जा रहे हैं, आपके मन में दो प्रकार की बातें हो सकती हैं, जिनमें एक तो ईगो और दूसरी सफल होने की इच्छा, लेकिन संकट तब शुरू होता है कि जब किसी को लगता है कि मैं वहां जाकर के कुछ कर दूंगा, उसे एहसास नहीं होता कि वहां पैंतीस साल से बैठा है मैं आईएएस अफसर बन के आया हूं, लेकिन ध्यान रहे कि आप सपने लेकर के गए हैं और वो परंपरा लेकर के जी रहा है। आपके सपने और उसकी परंपरा के बीच टकराव उचित नहीं होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने जो प्रशासनिक व्‍यवस्‍थाएं विकसित की होंगी, वो निकम्‍मी नहीं होंगी, यह मानकर चलिए कि उसके पीछे कोई न कोई लॉजिक होंगे, कोई न कोई कारण होंगे, मूलभूत बातों का अपना सामर्थ्‍य होता है। हम उसको निरंतर फॉलो कर सकते हैं? हम फॉलो करें, लेकिन बुद्धिशक्ति को जोड़ करके उस दिशा में हम प्रयास करें और अगर यह हम करेंगे तो हमें लगेगा कि हम सचमुच में परिणाम ला रहे हैं। उन्होंने प्रक्षिशुओं से कहा कि वे हिंदुस्‍तान का भाग्‍य बदलने वाले हैं और मैं नहीं मानता हूं कि हिंदुस्‍तान को बदलने में फिर कोई रूकावट आ सकती है, आपके पास व्‍यवस्‍था है, आपके पास निर्णय करने का अधिकार है, आपके पास टीम है, संसाधन हैं, क्‍या कुछ नहीं है? उन्होंने कहा कि जिलों में दूसरे के अनुभवों का लाभ उठाएं, एक मनुष्‍य के जीवन से उसकी विशेषताओं का फायदा भी लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार और समाज के बीच की खाई केवल राजनीतिज्ञ ही नहीं भर सकते, उनको भी अपना स्‍वभाव बदलना पड़ेगा, हमारी व्‍यवस्‍था का सीधा संवाद समाज के साथ होना चाहिए, नागरिकों के साथ सीधे-सीधे संवाद करें, आप देखिए कि इतनी ताकत बढ़ जाएगी, इतनी मदद मिलेगी, जिसकी आप कल्‍पना भी नहीं कर सकते।
नरेंद्र मोदी ने प्रेरणा दी कि अगर उनको शिक्षा में काम लेना है तो उन्हें अपने सरकारी अधिकारियों के माध्‍यम से टीचर के साथ बैठना होगा, तब आप देखेंगे कि बदलाव आना शुरू हो जाएगा, हमें अच्छे परिणाम देने पर ध्यान देना चाहिए, अपने को शक्तिशाली अनुभव करानेभर से परिणाम नहीं मिल सकते, आप शक्ति दिखाने नहीं, बल्कि अपनी जिम्‍मेवारियां निभाने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्‍ट्र के जीवन में कभी-कभी ऐसे अवसर आते हैं, जो हमें कहां से कहां पहुंचा देते हैं, आज वैश्विक परिवेश में मैं स्वयं अनुभव करता हूं कि इस कालखंड के वैश्विक अवसर को खोने नहीं देना है, ऐसे अवसर वैश्विक परिवेश में बहुत कम आते हैं, जो आया है, वह हाथ से निकल न जाए। मौके का उपयोग भारत को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए कैसे करें? स्थितियों का हम फायदा कैसे उठाए? और हम जहां है वहां, जितनी जिम्‍मेदारी है, जितनी उसकी ताकत है, हम उसका अगर भरपूर उपयोग करेंगे और तय करेंगे तो आप देखिए कि देश चल पड़ेगा।

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