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Saturday 26 July 2025 06:06:13 PM
द्रास। करगिल में 1999 में पाकिस्तान से भारत के युद्ध में भारतीय सेना की विजय सैनिकों की वीरता और सर्वोच्च बलिदान उसके सम्मान और याद में गर्व एवं राष्ट्रव्यापी भागीदारी केसाथ राष्ट्र आज करगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ मना रहा है। मुख्य कार्यक्रम द्रास में करगिल युद्ध स्मारक पर आयोजित किया गया, जिसमें थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी, श्रम एवं रोजगार तथा युवा कार्य और खेल मंत्री डॉ मनसुख मंडाविया, रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ और लद्दाख के उपराज्यपाल कविंद्र गुप्ता उपस्थित थे। इस अवसर पर वरिष्ठ सैन्य और असैन्य गणमान्य व्यक्तियों ने करगिल युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की तथा शहीदों की स्मृति में 545 दीप प्रज्वलित किए। वीर नारियों और उनके परिजनों का सम्मान किया गया। सेना ने समावेशिता के एक मार्मिक संकेत के रूपमें भारत और नेपाल के 545 शहीद परिजनों से संपर्क किया।
सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने इंडस व्यूपॉइंट, ई-श्रद्धांजलि पोर्टल और क्यूआर आधारित ऑडियो गेटवे सहित विरासत परियोजनाओं का उद्घाटन किया। इस दौरान क्षमता प्रदर्शन में गतिशीलता, निगरानी व मारक क्षमता में अत्याधुनिक स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया गया, जो आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता की दिशामें सेना के प्रयासों को रेखांकित करता है। सांस्कृतिक प्रदर्शन, धार्मिक प्रार्थनाएं और इंटरैक्टिव आउटरीच कार्यक्रमों ने राष्ट्र की अपने सैनिकों केप्रति अटूट कृतज्ञता तथा गहरे भावनात्मक जुड़ाव को प्रतिबिंबित किया गया। स्मारक कार्यक्रम की शुरुआत द्रास के लामोचेन व्यूप्वाइंट पर बैटल ब्रीफिंग और एक समारोह केसाथ हुई। पूर्व सैनिकों और सेवारत कार्मिकों ने उन्हीं चोटियों पर अपने अनुभव सुनाए, जहां पर करगिल युद्ध लड़ा गया था। इसके बाद एक भावपूर्ण दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति के माध्यम से बलिदान, साहस और लचीलेपन की कहानियों को जीवंत कर दिया गया। कारगिल विजय दिवस न केवल इतिहास केप्रति एक श्रद्धांजलि है, बल्कि यह इस बात की पुनः पुष्टि भी हैकि सैनिकों की आत्मा राष्ट्र की आत्मा में सदैव जीवित रहती है। ‘एक कृतज्ञ राष्ट्र अपने नायकों को स्मृति में उकेरता है, नकि केवल पत्थर पर।’
केंद्रीय मंत्री डॉ मनसुख मांडविया और रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ ने एक विशेष कार्यक्रम में करगिल नायकों के परिजनों को सम्मानित किया और उनके अटूट साहस तथा बलिदान की सराहना की। उन्होंने विजय भोज में भाग लिया, जो एक स्मारक सामुदायिक कार्यक्रम है और एकता व कृतज्ञता का प्रतीक है। सैनिकों, एनसीसी कैडेटों और आर्मी गुडविल पब्लिक स्कूलों के विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्ण क्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं, जिससे इस अवसर पर देशभक्ति का जोश और भी बढ़ गया। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण विशिष्ट प्रौद्योगिकी प्रदर्शन था, जिसमें स्वार्म ड्रोन, लॉजिस्टिक्स ड्रोन और एफपीवी ड्रोन का प्रदर्शन किया गया, जिससे अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में परिचालन परिदृश्यों में सेना के अत्याधुनिक समाधानों के एकीकरण को दर्शाया गया। करगिल युद्ध स्मारक पर शाम के समय शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि के रूपमें 'शौर्य संध्या' कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसकी शुरुआत सेना के बैण्ड की प्रस्तुत ‘गौरव गाथा’ से हुई, जिसमें संगीत के माध्यम से वीरता की गाथाएं सुनाई गईं।
कारगिल विजय दिवस कार्यक्रम में प्रमुख धर्मों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पांच धार्मिक गुरुओं ने दिवंगत शहीदों की आत्मा की शांति केलिए प्रार्थना की, कुल 545 दीप जलाए गए, जिनमें से प्रत्येक दीपक ऑपरेशन विजय में अपने प्राणों की आहुति देने वाले एक सैनिक का प्रतीक था। कारगिल विजय दिवस के सबसे हृदयस्पर्शी क्षणों में एक सम्मान समारोह था, जहां उत्तरी कमान के लेफ्टिनेंट जनरल प्रतीक शर्मा ने नौ वीर सैनिकों के परिजनों को सम्मानित किया। इसमें 400 से अधिक अतिथियों ने भाग लिया, जिनमें असैन्य और सैन्य गणमान्य व्यक्ति, वीर नारियां, वीर माताएं, स्थानीय नागरिक शामिल थे, जो सामूहिक आभार व्यक्त करने केलिए एकत्र हुए थे। करगिल युद्ध स्मारक पर मुख्य कार्यक्रम की शुरुआत पुष्पांजलि समारोह केसाथ हुई। केंद्रीय मंत्री डॉ मनसुख मांडविया, रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ, लद्दाख के उपराज्यपाल कविन्द्र गुप्ता और सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, वीरता पुरस्कार विजेता, वीर नारियां तथा शहीदों के परिवार उसमें शामिल हुए। करगिल के दिल को छू लेने वाले स्वर घाटी में गूंज रहे थे, जिससे शक्तिशाली भावनाएं और स्मृतियां जागृत हो रही थीं।
सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने 1999 में भारतीय सेना की ऐतिहासिक जीत और हालही में पाकिस्तान पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान राष्ट्रीय संप्रभुता की दृढ़ रक्षा पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहाकि भारत शांति चाहता है, लेकिन उकसावे की कार्रवाई का निर्णायक जवाब देगा। उन्होंने नागरिकों को नुकसान पहुंचाए बिना आतंकवादी ढांचे के खिलाफ सेना के सफल व सटीक अभियानों का उल्लेख किया। सेना प्रमुख ने ‘रुद्र’ सभी शस्त्र ब्रिगेड, ‘भैरव’ लाइट कमांडो बटालियन, ‘शक्तिबाण’ आर्टिलरी रेजिमेंट और ‘दिव्यास्त्र’ बैटरियां, ड्रोन से सुसज्जित पैदल सेना बटालियन तथा स्वदेशी वायु रक्षा प्रणालियों के माध्यम से सेना को भविष्य केलिए तैयार बल में बदलने की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने राष्ट्रीय निर्माण में सेना की भूमिका की भी सराहना की, विशेष रूपसे सीमावर्ती बुनियादी ढांचे, पर्यटन, अर्थव्यवस्था और पूर्व सैनिक कल्याण में तथा 2047 तक विकसित भारत के निर्माण में सैनिकों की स्थायी भूमिका की पुष्टि की। जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने युवाओं से ईमानदारी और समर्पण केसाथ राष्ट्र की सेवा करने का आह्वान करते हुए भारत की एकता, संप्रभुता एवं सम्मान की रक्षा केलिए दृढ़ प्रतिबद्धता केसाथ अपने भाषण का समापन किया।
जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने बटालिक सेक्टर में इंडस व्यूपॉइंट पुल जो पाकिस्तान के कब्जे वाले बाल्टिस्तान में प्रवेश करने वाली सिंधु नदी का दृश्य प्रस्तुत करता है और जो युद्ध क्षेत्र पर्यटन को बढ़ावा देता है का उद्घाटन किया। ई-श्रद्धांजलि पोर्टल नागरिकों को करगिल शहीदों को वर्चुअल माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित करने में सक्षम बनाता है, जिससे राष्ट्रव्यापी भागीदारी को बढ़ावा मिलता है। क्यूआर-आधारित ऑडियो गेटवे, युद्ध स्मारक पर एक तकनीक-सक्षम कथा मंच है, जो डिजिटल उपकरणों के माध्यम से ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने चयनित कार्मिकों को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ प्रशंसा पत्र प्रदान किए। उन्होंने सैनिकों, वीर नारियों तथा शहीदों के परिवारों से बातचीत की। विशेष आउटरीच अभियान केतहत भारतीय सेना की 37 टीमों ने 27 राज्यों, दो केंद्रशासित प्रदेशों और नेपाल में 545 शहीदों के परिजनों से मुलाकात की, इससे परिवारों को सांत्वना मिली और उनमें गर्व की भावना जागृत हुई। ऑन दिस डे अभियान में युवाओं में जागरुकता के उद्देश्य से डिजिटल कहानी के माध्यम से करगिल युद्ध की प्रमुख लड़ाइयों को पुनः प्रस्तुत किया गया। भारतीय सेना ने इस पवित्र स्मृति समारोह के अवसर पर क्षमता प्रदर्शन भी किया, जिसमें आधुनिकीकरण और युद्धक परिचालन तत्परता, विशेष रूपसे उच्च ऊंचाई वाले युद्ध केलिए अपनी प्रगति को प्रदर्शित किया गया। जिस समय द्रास की ऊबड़-खाबड़ चोटियों के पीछे सूर्य अस्त हुआ, तभी कारगिल युद्ध स्मारक तिरंगे की चमक में दमक उठा, जो राष्ट्रीय गौरव और बलिदान का प्रतीक बनकर खड़ा था।