Saturday 5 July 2025 05:34:02 PM
दिनेश शर्मा
मुंबई। महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना की लोकप्रियता वर्चस्व और सरकार के चलते बीस साल की आपसी दुश्मनी भुलाकर आज उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे आखिर उस तरह साथ आ गए हैं, जैसे सांप मेंढक छछूंदर बाढ़ से अपनी जान बचाने केलिए बाढ़ में बहते छप्पर पर एक साथ आ बैठते हैं। राजनीतिक विफलताओं से जूझ रहे उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को ट्रैक पर आने का कोई तो बहाना चाहिए था। इन्होंने पहले मराठी भाषा के नामपर हिंदी और हिंदीभाषियों पर हिंसात्मक हमला कराया, उसके बाद मुंबई में मराठी विजय दिवस मनाने के नामपर दोनों महाप्रभुओं की तरह एक साथ सभा के मंच पर प्रकट हो गए। हिंदी और हिंदीभाषियों पर दोनों ने जमकर ज़हर उगला और राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को अपना नेता मानकर भाजपा के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और शिवसेना के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को मिलकर मिटा देने की कसमें खाईं। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की यह जोड़ी कितनी सफल और कितनी विफल होगी, सोशल मीडिया और राजनीतिक क्षेत्रों में इसपर चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं।
मुंबई में हिंदू ह्रदय सम्राट कहे जानेवाले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे और उनके भतीजे राज ठाकरे को 20 साल बाद आज एकसाथ देखकर महाराष्ट्र और देश ने निष्कर्ष निकाल लिया हैकि चूंकि यह परिवार महाराष्ट्र में राजनीतिक रूपसे खत्म हो चुका है और एक पीढ़ी इनको लगभग भूल चुकी है तो इनको कुछ तो करना ही था। हिंदुत्व का मार्ग छोड़कर महाराष्ट्र में मुस्लिम तुष्टिकरण से सरकार बनाना उद्धव ठाकरे को बहुत भारी पड़ा। पिताश्री बाल ठाकरे के ही शिष्य एकनाथ शिंदे ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाया और न केवल उद्धव ठाकरे की सरकार गिराई, अपितु उद्धव ठाकरे के पिता की सर्वदा बपौती रही शिवसेना भी चुनाव चिन्ह सहित छीन ली। उद्धव ठाकरे और उनके पुत्र आदित्य ठाकरे को सड़क पर ला दिया। महाराष्ट्र में भाजपा और एकनाथ शिंदे की शिवसेना का वर्चस्व स्थापित हो गया। एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की राजनीतिक और सामाजिक उपयोगिता सीमित कर दी। दूसरी तरफ मनसे के अध्यक्ष राज ठाकरे का भी ऐसा ही हाल हुआ, जो महाराष्ट्र की राजनीति में इस हदतक सिमट गए कि वे अपने पुत्र को भी विधानसभा चुनाव तक नहीं जिता पाए। इनके लिए भी यह ह्दयविदारक झटका था। उद्धव ठाकरे से अलग होने के बाद राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने केलिए कई बार मराठी भाषा मराठी मानुष का अभियान चलाकर हिंदी भाषा-भाषियों पर हमले करवाए, लेकिन उनका यह कार्ड कोई काम नहीं आया। कुछ समय से बयानों के जरिए सुना जा रहा थाकि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के फिरसे एकसाथ आने का विचार बन रहा है, जोकि आज दोनों में एकता के रूपमें सामने आ गया।
मराठी भाषा के नामपर हुई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की मराठी विजय दिवस सभा में यूं तो महाराष्ट्र के कुछ राजनीतिक और गैर राजनीतिक लोग भी शामिल हुए हैं, जैसे शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले शामिल हुईं। मराठी और हिंदी भाषा के विरोध के नामपर हुई यह सभा इस बात की गारंटी नहीं कही जा सकती हैकि ये दोनों भाई भाजपा और एकनाथ शिंदे की शिवसेना केलिए कोई संकट खड़ाकर पाएंगे। इन दोनों केसाथ आने से इनकी यह चुनौती और ज्यादा बढ़ गई हैकि ये भाजपा और शिंदे की शिवसेना का विकल्प बनके दिखाएं और यदि ये ऐसा नहीं कर पाए तो उद्धव और राज का महाराष्ट्र की राजनीति में पैर रखना भी मुश्किल हो जाएगा। फिलहाल तो यह परीक्षा हैकि बीएमसी के चुनाव में इनकी क्या तस्वीर सामने आएगी। कहने वाले कह रहे हैंकि राज ठाकरे की पार्टी मनसे खत्म ही हो चुकी है, इसलिए राज ठाकरे का उद्धव ठाकरे के सामने आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं था। कहने को मराठी विजय दिवस मनाया जा रहा था, लेकिन दूसरी तरफ ये भाजपा, नरेंद्र मोदी, फड़नवीस और शिंदे पर अनवरत हल्ला बोले हुए थे, मुंबई में अपने समर्थकों को अराजकता गुंडागर्दी और हिंसा केलिए उकसा रहे थे।
भाजपा और शिवसेना गठबंधन की सरकार और उसमें शामिल बाल ठाकरे के परम शिष्य एकनाथ शिंदे से अपना बदला चुकाने केलिए ये दोनों कुछ भी करने को तैयार होंगे, जैसाकि उद्धव ठाकरे ने कहा हैकि हमें हिंदू मुसलमान मान्य हैं, लेकिन हिंदी मान्य नहीं है, हम ग़ुंडागर्दी भी करेंगे। इसका मतलब साफ हैकि उनकी राजनीतिक दिशा क्या होगी यानी वह मुस्लिम तुष्टिकरण भी चाहते हैं और हिंदुत्व की बात भी कर रहे हैं। सवाल हैकि तो फिर मुसलमान इनके साथ कैसे चलेगा? केवल मराठी भाषा के नामपर क्या सारे मराठा राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे केसाथ चले जाएंगे? एकनाथ शिंदे की शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में जो अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं, उनको ये किस फार्मूले से उखाड़ेंगे? यह इनके एजेंडों से संभव है? तबजब इस मराठी विजय दिवस की जनसभा में उद्धव ठाकरे ने अपना मुस्लिम प्रेम भी प्रकट कर दिया है। हिंदुत्ववादी मराठे क्या करेंगे? मंच पर भीमराव अंबेडकर और ज्योतिबा फुले के चित्र लगाकर क्या यह दोनों महाराष्ट्र के दलित और पिछड़ों को अपने साथ ला पाएंगे? तबजब एकनाथ शिंदे उनके बीच एक शक्तिशाली नेता के रूपमें स्थापित हो चुके हैं।
देश और महाराष्ट्र यह अच्छी तरह जान चुका हैकि एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे को हर प्रकार से पराजित किया है और हर तरह से यह बात मान ली गई हैकि असली शिवसेना एकनाथ शिंदे की ही है, जिसका सामना करना अब उद्धव ठाकरे या राज ठाकरे केलिए बेहद मुश्किल है। उद्धव ठाकरे ने यह कह तो दिया हैकि उन्हें हिंदू और मुसलमान मान्य हैं, लेकिन अपवाद को छोड़कर जिस प्रकार भाजपा को मुसलमान वोट नहीं करता है और ना ही भविष्य करेगा, तो क्या महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के गठबंधन को मराठी हिंदूवादियों और हिंदीभाषियों का वोट मिल पाएगा? और अगर नहीं तो फिर इस गठबंधन ने क्या हासिल किया है? इस समय देश का जो मिजाज है, उसमें ये एकनाथ शिंदे की शिवसेना और भाजपा का कैसे मुकाबला कर पाएंगे? मराठी विजय दिवस के नामपर यह मराठी भाषा केलिए हिंदी विरोध और भाजपा, नरेंद्र मोदी, फड़नवीस और शिंदे के विरुद्ध ही सभा थी। पूरी दुनिया इसी मुंबई में बनीं हिंदी फिल्में देखती है। मुंबई को छोड़कर बाकी जगहों पर मराठी फिल्में नहीं देखी जाती हैं। महाराष्ट्र को सबसे ज्यादा राजस्व भी हिंदी फिल्मों से मिलता है, मुंबई की हिंदी सिनेमा के नाम से पहचान है नाकि मराठी सिनेमा के नाम से पहचान है। मराठी भाषा और मराठी मानुष को लेकर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने जो भी तर्क दिए हैं, वास्तविकता यह हैकि हिंदी और हिंदी भाषियों के बिना न कभी मराठियों का काम चला है और ना चलेगा। इनके हिंदी भाषी विरोधी अभियान से एकनाथ शिंदे को और ज्यादा ताकत जरूर मिल गई है, क्योंकि एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की जो हालत बनाई है, वह पूरे देश ने देखी है।
कौन नहीं जानता हैकि मुंबई में अंडरवर्ल्ड और दाऊद इब्राहिम को इसी परिवार ने पाला है और उद्धव ठाकरे की सरकार में भी अंडरवर्ल्ड कनेक्शन सामने आता रहता था। यह तथ्य किसी से छुपा नहीं हैकि मुंबई के सिनेमाघरों पर फिल्म चलाने केलिए, उद्योग-धंधे चलाने केलिए, फिल्म निर्माण केलिए, फिल्म रिलीज करने केलिए, फिल्म कलाकारों का संगठन बनाकर फिल्म निर्माताओं को दबाव में लेने केलिए, फिल्मों के सेट को आग लगाने से बचाने के बदले गुंडा टैक्स की वसूली और गली के गुंडे तैयार करना कभी इनका मूल धंधा रहा है। उत्तर भारतीयों और हिंदी भाषियों पर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के अलावा मुंबई के या महाराष्ट्र के मराठी लोगों ने हमला नहीं किया है, हां, बाल ठाकरे के देहावसान के बाद इन दोनों के राजनीतिक एजेंडे एक ब्लैक मेलर की तरह चलते पाए गए हैं। ऐसे कई कारणों से इनकी राजनीति खत्म होती गई। बाल ठाकरे के चाहने वाले निराश होते गए या राजनीतिक रूपसे उजड़ गए, इसीलिए अलग शिवसेना बनी। इन्होंने जान लिया हैकि भाजपा और शिवसेना ने उन्हें खत्म कर दिया है, महाराष्ट्र और मुंबई में हिंसा अराजकता गुंडागर्दी कर मराठियों को भाषा के नामपर साथ लाने के प्रयास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, मगर अब इनका भाजपा और शिवसेना गठबंधन की शक्तिशाली सरकार से सामना है। देखना हैकि इनकी यह रणनीति इनका क्या भलाकर पाएगी।
राज ठाकरे ने अपने समर्थकों से हाल ही में मुंबई में हिंदीभाषियों पर सुनियोजित हमले शुरू कराए हैं, जिनकी महाराष्ट्र में भाजपा के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एवं और भी दूसरे मराठी नेताओं ने कड़ी निंदा की है और हमलावरों पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी दी है। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की सभा का एक ही मतलब हैकि मराठी भाषा के नामपर मराठियों का समर्थन हासिल करना, लेकिन ये भूल गए हैंकि जमाना बदल गया है और यह नया भारत है, नया मुंबई है, जहां ठाकरे परिवार का सिक्का कभी चला करता था, जो अब नहीं चलने वाला है। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की शिवसेना सारे हिंदी भाषियों हिंदीवादियों, हिंदुओं मराठाओं और जातियों को साथ लेकर चल रही है। उद्धव ठाकरे के प्रवक्ता संजय राउत आदि के बयानों से निष्कर्ष निकाला जा सकता हैकि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे अपनी राजनीतिक जमीन गंवा चुके हैं। इन दोनों को अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने केलिए एकसाथ आना मजबूरी है, लेकिन यह मजबूरी क्या उन्हें फिरसे वही राजनीतिक अवसर प्रदान कर पाएगी, इसमें भारी संशय है। उद्धव ठाकरे ने कहा हैकि वह गुंडागर्दी भी करेंगे, इसलिए यह जान लेना भी जरूरी हैकि मुंबई में दाऊद इब्राहिम को पालने वाले कौन थे और मुंबई में बम धमाकों से पहले अंडरवर्ल्ड कहां से संरक्षण पाता रहा है। इसका उत्तर मराठी और मुंबई वासियों पर छोड़देना चाहिए। उद्धव ठाकरे कह रहे हैंकि देश के हिंदी बोलने वाले राज्य पिछड़े हैं तो सवाल हैकि उद्धव ठाकरे के पास ऐसा कौन सा डाटा है, जो मराठी नहीं बोलने से हिंदी भाषी राज्य पिछड़ गए हैं।
मुंबई में बीएमसी के चुनाव होने हैं, जहां अभी इन ठाकरों का प्रभाव है और महाराष्ट्र की भाजपा शिवसेना एनडीए गठबंधन सरकार बीएमसी पर प्रभुत्व स्थापित करने की रणनीतियों पर काम कर रही है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की रणनीति यही हैकि बीएमसी में भारतीय जनता पार्टी या शिवसेना बहुमत में नहीं आने पाए। इसके लिए इन्होंने यह रणनीति अख्तियार की हैकि किसी प्रकार से मराठी लोगों को अपने पक्ष में एकजुट करने केलिए कुछ ऐसा किया जाएकि जिससे वह मराठियों में अपना भावनात्मक लगाव स्थापित कर सकें और वह भावनात्मक लगाव फिलहाल मराठी भाषा हो सकती है, उसमें यह जरूरी हैकि मुंबई में हिंदीभाषियों पर हमले कराए जाएं, जोकि लोकप्रियता हासिल करने का एक सस्ता तरीका है, जो उन्होंने एकसाथ आने की रणनीति केसाथ शुरू कर दिया है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को इसमें कितनी सफलता मिलेगी यह देखना होगा, लेकिन यह भी एक सच्चाई हैकि महाराष्ट्र की भाजपा शिवसेना गठबंधन सरकार को भी मराठियों और हिंदी भाषियों का उनसे ज्यादा समर्थन है, जिससे उद्धव ठाकरे एवं राज ठाकरे का महाराष्ट्र में मराठी बोली का कार्ड धरा रह जाएगा।