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Saturday 17 May 2025 12:51:41 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय सनातन परंपराओं के श्रेष्ठतम व्याख्याता, देववाणी संस्कृत के विद्वान, शिक्षाविद, बहुभाषाविद, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्मगुरु जगद्गुरु रामभद्राचार्य को समारोहपूर्वक 58वां प्रतिष्ठित भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान प्रदान किया है। राष्ट्रपति ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य की श्रेष्ठता के प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहाकि वे प्रतिभा सम्पन्न और उनके योगदान अनुकरणीय व बहुआयामी हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने शारीरिक दृष्टि से बाधित होनेके बावजूद अपनी दिव्यदृष्टि से साहित्य और समाज की असाधारण सेवाएं की हैं। राष्ट्रपति ने उल्लेख कियाकि जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने पाणिनि की अष्टाध्यायी की अतिविशिष्ट व्याख्या की है, ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और प्रमुख उपनिषदों पर सारगर्भित भाष्य लिखे हैं, रामचरितमानस पर उनकी टिप्पणियां और समालोचना नितांत मौलिक हैं। जगद्गुरु रामभद्राचार्य आशुकवि हैं, उनके रचित संस्कृत साहित्य विपुल भी और श्रेष्ठ भी हैं। राष्ट्रपति ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य की बहुमुखी प्रशंसा करते हुए विश्वास व्यक्त कियाकि उनके यशस्वी जीवन से प्रेरणा लेकर आनेवाली पीढ़ियां साहित्य सृजन, समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण के मार्ग पर आगे बढ़ती रहेंगी।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य के दिव्यांगजनों के कल्याण हेतु किए गए अमूल्य योगदान की भी प्रशंसा की, उन्होंने चित्रकूट में दिव्यांगजन की शिक्षा केलिए विश्वविद्यालय की स्थापना की है। राष्ट्रपति ने भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान केलिए निर्देशक, गीतकार, पटकथा लेखक, चलचित्र निर्माण और कवि गुलज़ार को भी बधाई दी, जो इस समारोह में शामिल नहीं हो सके। राष्ट्रपति ने शुभकामनाए कींकि गुलज़ारजी जल्दही स्वस्थ और सक्रिय होकर कला, साहित्य, समाज और देश केलिए अपना योगदान देते रहें। उन्होंने कहाकि गुलजार साहब ने दशकों से साहित्य सृजन केप्रति अपनी निष्ठा को जीवंत बनाए रखा है, यह कहा जा सकता हैकि वे कठोरता केबीच कोमलता को स्थापित करने वाले साहित्यकार हैं, उनकी कला और साहित्य की साधना से इन क्षेत्रों में सक्रिय लोगों को शिक्षा और प्रेरणा लेनी चाहिए। राष्ट्रपति ने कहाकि भारतीय ज्ञानपीठ शब्दों में भारत भूमि में विकसित ज्ञान तथा सृजन की परम्पराओं की मूलभूत एकता व्यक्त होती है, यह एकता भारतभर में व्याप्त भावनात्मक, सांस्कृतिक और साहित्यिक एकता की अभिव्यक्ति है, भारतीय भाषाओं के साहित्य में देश की मिट्टी की महक होती है। राष्ट्रपति ने कहाकि वर्ष 1965 से विभिन्न भारतीय भाषाओं के उत्कृष्ट साहित्यकारों को पुरस्कृत करके भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान ने साहित्य सेवा के माध्यम से देश की सेवा की है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित साहित्यकारों की कृतियों को समग्र रूपसे देखा जाए तो उनमें देशके सभी कालखंडों, क्षेत्रों, सामाजिक वर्गों, चुनौतियों और आकांक्षाओं के गहन शब्द चित्र दिखाई देते हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान केलिए चयनकर्ताओं ने श्रेष्ठ साहित्यकारों का चयन करके इस सम्मान की गरिमा का संरक्षण और संवर्धन किया है। राष्ट्रपति ने इसके लिए चयनकर्ताओं, प्रवर परिषद के अध्यक्षों तथा भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट के प्रबंधन की सराहना की। उन्होंने कहाकि वर्तमान प्रवर परिषद की अध्यक्ष प्रतिभा राय स्वयं एक साहित्यकार हैं और उन्हें बताया गया हैकि उनके उपन्यास ‘याज्ञ सेनी’ के अबतक लगभग 120 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि प्रतिभा राय की पुस्तक की ऐसी लोकप्रियता, अच्छे साहित्य केप्रति पाठकों में उत्साह को रेखांकित करती है और साहित्य की अस्मिता के बारेमें आश्वस्त करती है। प्रतिभा राय को वर्ष 2011 में ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया था, इनके अलावा ज्ञानपीठ से सम्मानित महिला रचनाकारों में आशापूर्णा देवी, अमृता प्रीतम, महादेवी वर्मा, कुर्रतुल ऐन हैदर, महाश्वेता देवी, इंदिरा गोस्वामी और कृष्णा सोबती प्रमुख हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि इन महिला रचनाकारों ने भारतीय परंपरा और समाज को विशेष संवेदना केसाथ देखा है, अनुभव किया है और भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है। राष्ट्रपति ने कहाकि मैं चाहूंगीकि इन श्रेष्ठ महिला रचनाकारों से प्रेरणा लेकर हमारी बहनें और बेटियां साहित्य सृजन में बढ़-चढ़कर भागीदारी करें और हमारी सामाजिक सोच को और अधिक संवेदनशील बनाएं। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि साहित्य समाज को जोड़ता भी है और जगाता भी है, 19वीं सदी के सामाजिक जागरण से लेकर 20वीं सदी के हमारे स्वतंत्रता संग्राम तक कवियों और रचनाकारों ने जन-जन को जोड़ने में महानायकों की भूमिका निभाई है। उन्होंने उल्लेख कियाकि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के रचित 'वंदे मातरम' गीत लगभग 150 वर्ष से भारत माता की संतानों को जागृत करता है और सदैव करता रहेगा। उन्होंने कहाकि महर्षि वाल्मीकि, वेदव्यास और कालिदास से लेकर रवींद्रनाथ ठाकुर जैसे शाश्वत कवियों की रचनाओं में हमें जीवंत भारत का स्पंदन महसूस होता है, यह स्पंदन ही भारतीयता का स्वर है।